चमोली आपदा में अब तक 58 शव एवं 26 मानव अंग अलग-अलग स्थानों से बरामद हो चुके हैं। इसमें से 30 शवों और एक मानव अंग की शिनाख्त हो चुकी है। जिन शवों की शिनाख्त नहीं हो पाई है, उन सभी शवों का डीएनए संरक्षित किए गए हैं। जोशीमठ थाने पर अब तक कुल 204 लोगों की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज की जा चुकी है।
चमोली में आई आपदा से प्रभावित लोगों की मदद के लिए हर क्षेत्र से लोग आगे आ रहे हैं। डीआरडीओ की आईआरडीई, देहरादून लैब ने जनपद के आपदा प्रभावित सात गांवों- रैनी, पेंग, मुरुँडा, जूवगवाड, जुगजु, तोल्मा और फ़ागती में जीवन रक्षक किट जिनमें कंबल, जैकेट्स, खाने की सामग्रियां, दूध, दवाएं, सेनिटाजशेन किट, मास्क आदि वितरित किए।
दिल्ली से रक्षा अनुसंधान विभाग के सचिव डॉ. जी सतीश रेड्डी ने इस आपदा में हरसंभव सहायता देने का आश्वासन दिया है। इस सहायता कार्य का नेतृत्व IRDE देहरादून के निदेशक डॉ बी के दास ने किया।
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उत्तराखंड आपदा की इस विषम परिस्थिति में पहले दिन 7 फ़रवरी से ही डीआरडीओ का दिल्ली मुख्यालय तकनीकी सलाह देने का केंद्र बिंदु रहा है। सचिव रक्षा अनुसंधान विकास विभाग तथा डीआरडीओ अध्यक्ष के प्रौद्योगिकी सलाहकार डॉ. संजीव जोशी ने बताया कि हमारी प्रयोगशाला जो चंडीगढ़ में स्थित है इस पूरे आपदा स्थिति की गहन जांच कर रही है और तकनीकी नेतृत्व प्रदान कर रही है।
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ऋषिगंगा के रुकने से जो झील बन गई है उसके नियंत्रित बहाव के लिए भी आधुनिक तकनीकों को प्राकृतिक प्रक्रिया के साथ जोड़कर इस्तेमाल करने की कोशिश की जा रही है ताकि नुक़सान को टाला जा सके। भविष्य में ऐसी घटनाएं न हों और उनका पहले पता चल सके, इसके लिए भी केंद्रीय तौर पर गहन चिंतन चल रहा है।
डीआरडीओ की सासे लैब मुख्यतः सेना के लिए हिमस्खलन की भविष्यवाणी का कार्य करती है और मूलतः पश्चिमी तथा उत्तर पूर्वी हिमालयी क्षेत्रों में जहाँ सेना स्थित है, के लिए कार्य करती है। उत्तराखंड आपदा के समय डीआरडीओ को यहां की विषम परिस्थितियों तथा प्रयोगशाला के अनुभव को देखते हुए ये कार्य सौंपा गया है।
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