अगर किसी के मन में कुछ कर गुजरने की इच्छाशक्ति हो तो वह कितनी भी मुसीबतों के आने के बाद भी नहीं डगमगाता है और वह हमेशा आगे बढ़ता जाता है। यह कारनामा कर दिखाया है ढौंटियाल गांव के हवलदार मनोज नेगी ने। पौड़ी गढ़वाल के जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क के पास ढौंटियाल गांव में स्थित, ग्रीन हिल्स मॉडर्न स्कूल एक सेवानिवृत्त हवलदार मनोज नेगी की एक छोटी पहल के रूप में शुरू हुआ, जिन्होंने कारगिल युद्ध में सेवा की थी। 47 वर्षीय नेगी ने 2009 में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली थी। 16 साल तक सेना में सेवा की और उनकी बटालियन-17 गढ़वाल राइफल्स ने कारगिल में भाग लिया था।
हवलदार मनोज नेगी कहते हैं कि मैं हमेशा गांव में दी जा रही शिक्षा के बारे में चिंतित रहता था। उन्होंने अपने गांव के पास राजकीय प्राथमिक विद्यालय सिद्धपुर में पढ़ाई की और अपनी स्कूली शिक्षा राजकीय इंटर कॉलेज, सिद्धपुर से पूरी की। वह कहते हैं कि मैं 1993 में सेना में शामिल हुआ और सेना में शामिल होने के बाद उन्होंने अपना स्नातक पूरा किया। सेना से रिटायर होने के बाद मार्च 2011 तक दिल्ली की एक निजी फर्म में काम किया और जब वे अपने गांव लौटे तो उन्हें लगा कि उनके बेटों को बेहतर शिक्षा मिलनी चाहिए।
मनोज नेगी कहते हैं कि मैंने सोचा था कि अगर मैं एक स्कूल शुरू करता हूं, तो बहुत से बच्चों को फायदा होगा। उन्होंने 2012 में एक अनौपचारिक माहौल में एक पेड़ के नीचे पढ़ाना शुरू किया। उस समय, मेरे अपने पुत्रों सहित सात छात्र थे जो कक्षा 4 और अपर के.जी. में पढ़ रहे थे। आज इसमें 42 छात्र, प्रधानाचार्य सहित आठ शिक्षक और तीन कक्षाएं हैं। संघर्षों से भरी एक दशक की लंबी यात्रा में इसकी ताकत छह गुना बढ़ गई है और लड़कियों सहित इसके सभी छात्र स्नातक की पढ़ाई पूरी कर चुके हैं।
खास बात यह है कि तमाम दिक्कतों के बावजूद एक भी छात्र ने पढ़ाई नहीं छोड़ी। उनका अपना बेटा जिसने शुरुआती शिक्षा खुले आसमान के नीचे हासिल की, अब दिल्ली विश्वविद्यालय से पत्राचार के माध्यम से बीकॉम कर रहा है। उनका छोटा बेटा लैंसडाउन के केंद्रीय विद्यालय में दसवीं कक्षा में पढ़ता है। हवलदार मनोज नेगी याद करते हुए कहते हैं कि उन्होंने 2012 में मान्यता के लिए सीतापुर, कोटद्वार में विकास मेमोरियल पब्लिक स्कूल से संपर्क किया था। उस समय, हमारी मासिक फीस केवल 175 रुपये थी। चूंकि उस समय हमारे पास केवल सात छात्र थे, इसलिए मैं उन्हें प्रति माह 70 रुपये का भुगतान करता था।
तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल बिपिन सिंह रावत ने भी मनोज नेगी की 2019 में प्रशंसा की थी। मनोज नेगी ने उन्हें स्कूल के लिए संपर्क किया था। उन्हें साउथ ब्लॉक से एक पत्र मिला जिसमें कहा गया था कि भारतीय सेना पलायन को रोकने, पूर्व सैनिकों को प्रेरित करने और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए वह जो काम कर रहे हैं, उसकी वह सराहना करते है और उनके सामाजिक कार्यों के लिए उन्हें शुभकामना देते हैं।
मनोज नेगी, 17 वर्षीय ज़ोया की प्रशंसा करते हुए कहते हैं कि उन्होंने वंचित बच्चों के लिए धन जुटाने की पहल की। वह एक युवा लड़की है लेकिन उसने हमारे स्कूल के लिए धन जुटाने के जो प्रयास किए हैं, वे प्रशंसनीय हैं और इससे कई छात्रों को लाभ हो रहा है। ज़ोया ने मुझसे संपर्क किया और स्कूल के लिए धन जुटाने की इच्छा व्यक्त की। उसने कुछ बुनियादी जानकारी मांगी और वेबसाइट पर एक छोटा सा नोट डाला। जोया, दिल्ली के एक प्रतिष्ठित स्कूल संस्कृति की बारहवीं कक्षा की छात्रा है, जो मनोज नेगी को उसके गांव के दौरों से जानती थी, वह भी स्कूली बच्चों की मदद करना चाहती थी। उन्होंने क्राउडफंडिंग के जरिए फंड जुटाने का फैसला किया। चार महीनों में, ज़ोया 3,52,000 रुपये जुटाने में सफल रही। सोशल मीडिया पर मिलाप क्राउडफंडिंग प्लेटफॉर्म पर अपनी पोस्ट में उन्होंने अपील की, ’बच्चों को उत्तराखंड की पहाड़ियों में पढ़ने में मदद करें।’ जोया ने लोगों से अपील की कि, ’625 रुपए महीने में आप बच्चे की जिंदगी बदल सकते हैं। ज़ोया, स्वतंत्रता सेनानी उर्मिला शास्त्री की पड़पोती है, उसे पूरा करने के लिए भारत और विदेशों में संभावित दानदाताओं से बात करना शुरू किया और अकेले ही बच्चों के लिए धन जुटाया।
मनोज नेगी कहते हैं कि शुरुआत में मेरे भतीजे ने 1000 रुपये जमा किए। एक हफ्ते से भी कम समय में किसी और ने 30,000 रुपये दान किए। एक विदेशी ने पूरे शैक्षणिक वर्ष के लिए सभी 42 छात्रों की शिक्षा के लिए धन देने की पेशकश की। बेशक, वह यह सुनिश्चित करना चाहते थे कि उनका पैसा लक्षित लाभार्थियों तक पहुंचे। मैंने ज़ोया के मांगे गए दस्तावेज़ भेजे और जीवन दीप समिति के खाते में 3.15 लाख रुपये जमा किए गए, ट्रस्ट ने कहा कि मिलाप मंच के माध्यम से जुटाई गई कुल राशि 3.52 लाख रुपये थी। आयकर कटौती के बाद स्कूल चलाने वाले ट्रस्ट समिति को 3.33 लाख रुपये मिले। अक्टूबर में राशि मिलने के तुरंत बाद, हमने माता-पिता की एक बैठक बुलाई और उन्हें बताया कि उनके बच्चों को पूरे एक साल तक मुफ्त शिक्षा मिलेगी। अतीत में, स्कूल को कभी-कभी परोपकारी व्यक्तियों का समर्थन मिलता रहा है।
उसके बाद 2017 में, भाजपा विधायक, दिलीप सिंह रावत ने एक कमरे के निर्माण को प्रायोजित किया। इसके अलावा, एक इतालवी सामाजिक कार्यकर्ता, इडोर्सा, जिसने 2018 में हमारे स्कूल में एक सप्ताह के लिए पढ़ाने के लिए स्वेच्छा से भाग लिया, ने पूरे स्कूल के यूनिफॉर्म के लिए भुगतान किया। 2019 में मेरी बड़ी बहन दीपा बिष्ट, जो दिल्ली में रहती हैं, ने पूरे स्कूल की यूनिफॉर्म का भुगतान किया। उसी वर्ष, मेरे छोटे भाई दीपक नेगी, जो दिल्ली में एक निजी फर्म में काम करते हैं, ने स्कूल परिसर में सीसीटीवी लगवाया। जून 2022 में, मेरे भतीजे, नवीन बिष्ट ने स्कूल के नवीनीकरण के लिए तीन लाख रुपये दिए। कुछ और पैसों से हम चमत्कार कर सकते हैं।
यह पूछे जाने पर कि स्कूली बच्चों के लिए धन जुटाने का विचार उनके दिमाग में कैसे आया, ज़ोया कहती हैं, मैं इस क्षेत्र में तब से आ रही हूं जब मैं केवल दो साल की थी। जब हम केवल दो वर्ष के थे तब मेरे नाना ने कॉर्बेट नेशनल पार्क के दक्षिणी छोर पर हमारे लिए एक घर बनवाया था। वर्षों से, मैंने गांव के बच्चों से दोस्ती की। हम अपने हाउस केयरटेकर के बच्चों के साथ बड़े हुए हैं। मनोज नेगी इसी गांव में पले-बढ़े हैं। मेरे लिए, यह एक ऐसी जगह है जहां मैंने अपना सारा समय दिल्ली से दूर रहकर बिताया। उस गांव से मेरा इतना गहरा नाता है। मैं बस उस जगह को कुछ वापस देना चाहती थी मुझे लगा कि मैं कुछ कर सकती हूं। कुछ समय से मेरे दिमाग में यह विचार चल रहा था। फिर उन्हें स्कूल में क्राउड फंड साइट्स के बारे में पता चला और उसके बाद उन्होंने इस पर काम शुरू किया और वह इस मुकाम तक पहुंच गई है।
मनोज नेगी की यह पहल गांव वालों को खूब भा रही है और पहले गांव से जैसे ही बच्चा तीन साल को होता था तो लोग अपने बच्चे को पढ़ाने के लिए गांव से पलायन कर जाते थे लेकिन अब गांव के लोग गांव में ही रहकर अपने बच्चों को पढ़ा रहे हैं और गांव से पलायन भी अब काफी हद तक रूक चुका है। गांव के लोगों का भी मानना है कि यहां पर पढ़ाई काफी अच्छी तरह से हो रही है।
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