देश के वीर नायकों का जब नाम लिया जाता है उसमें एक नाम वीर चंद्र सिंह गढ़वाली का भी आता है उन्होंने आजादी से पहले अंग्रेजों के सामने निहत्थे लोगों पर गोलियां चलाने से मना कर दिया था और इसके बाद उन्हें सजा भी दी गई। आज देश पेशावर कांड के नायक वीर चंद्र सिंह गढ़वाली को नमन कर रहा है।
इस अवसर पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने पेशावर कांड के नायक वीर चन्द्र सिंह ‘गढ़वाली‘ की जयंती पर उनके चित्र पर श्रद्धासुमन अर्पित कर श्रद्धांजलि दी। मुख्यमंत्री ने कहा कि वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली ने देश की आजादी के लिये आन्दोलनरत निहत्थी जनता पर गोली चलाने के आदेश को न मानकर महान देशभक्ति और साहस का परिचय दिया था। उन्होंने कहा कि भारत की आजादी के लिए ‘पेशावर कांड‘ एक महत्वपूर्ण पड़ाव था। भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के आंदोलन में यह घटना मील का पत्थर साबित हुई, जिसने भविष्य के लिए एक क्रांतिकारी आधार तैयार किया।
23 अप्रैल 1930 को स्वाधीनता आंदोलन के दौरान पेशावर में जब पठान लोग आंदोलन कर रहे थे तब अंग्रेज अफसर रिकेट ने हुक्म दिया, “गढ़वाली श्री राउंड फायर”, अर्थात् गढ़वाली तीन राउंड गोली चलाओ। हवलदार चन्द्र सिंह रिकेट की बायीं ओर खड़े थे।
उन्होंने रिकेट के हुक्म के तुरन्त बाद हुक्म दिया, “गढ़वाली सीज फायर” अर्थात् गढ़वाली गोली मत चलाओ। सैनिकों ने चन्द्र सिंह का ही हुक्म माना और जुलूस की ओर बन्दूकें नीचे जमीन पर खड़ी कर दी। चन्द्र सिंह ने रिकेट से कहा “हम निहत्थों पर गोली नहीं चलाते।”
वीर चंद्र गढ़वाली का जन्म 25 दिसम्बर, 1891 में पीठसैंण के निकट रोणैसेर ग्राम (पौड़ी गढ़वाल) के एक साधारण कृषक जथली सिंह के घर में हुआ था। उन्होंनें प्रारम्भिक शिक्षा अपने गांव के आस-पास के गांवों में ही अर्जित की और 11 सितम्बर 1914 को लैंसडौन छावनी में 2ध्36 गढ़वाल राइफल्स में भर्ती हो गये।
सन् 1926 में महात्मा गांधी के कुमाऊं में आगमन पर वह महात्मा गांधी से मिलने बागेश्वर गये और गांधी जी के हाथ से टोपी लेकर पहनी और उसकी कीमत चुकाने का प्रण किया। इसके पश्चात् साठ गढ़वालियों पर बगावत का आरोप लगाया गया। 12 जून, 1930 की रात को चन्द्र सिंह एवटाबाद जेल में भेज दिये गये। जेल से रिहा होने के पश्चात गढ़वाली स्वाधीनता आंदोलन में कूद पड़े। 1948 में उन्होंने टिहरी आन्दोलन का नेतृत्व किया। 1 अक्टूबर 1979 को चन्द्र सिंह गढ़वाली का लम्बी बीमारी के बाद देहान्त हो गया।
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