संघ का आरोप है कि न तो उन्हें तकनीकी स्टाफ मुहैया कराया गया है, न ही आवश्यक सॉफ्टवेयर या डाटा इंट्री की पर्याप्त सुविधा। ऐसे में बिना किसी तैयारी के इतने बड़े पैमाने पर खतौनी तैयार करना न केवल असंभव है, बल्कि लेखपालों पर अनुचित दबाव भी है। घिल्डियाल ने कहा कि जब तक शासन उनकी मांगों पर गंभीरता से विचार नहीं करता वो अपना विरोध प्रदर्शन जारी रखेंगे।
लेखपाल संघ के आह्वान पर प्रदेशभर के पटवारी और लेखपाल तीन दिवसीय हड़ताल पर बैठ गए हैं। मंगलवार से शुरू हुई इस हड़ताल का असर जिला व तहसील स्तर पर राजस्व से जुड़े कार्यों पर साफ़ दिखाई दे रहा है। पटवारियों की हड़ताल के चलते भूमि अभिलेखों का सत्यापन, वरासत, नामांतरण, भू-नक्शा व खतौनी अद्यतन जैसे अहम कार्य पूरी तरह से ठप हो गए हैं।
लेखपाल संघ का कहना है कि वे पुरानी लंबित मांगों को लेकर बार-बार सरकार से संवाद कर चुके हैं, लेकिन अब तक कोई ठोस समाधान नहीं निकला है। यदि जल्द वार्ता न हुई तो आंदोलन को और तेज़ किया जाएगा। इस हड़ताल से राजस्व विभाग के दैनिक कार्यों पर सीधा असर पड़ा है, जिससे आम नागरिकों को भी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
उत्तराखंड लेखपाल संघ के आह्वान पर प्रदेशभर के पटवारी और लेखपाल तीन दिवसीय हड़ताल पर चले गए हैं। इस हड़ताल से राजस्व विभाग के महत्वपूर्ण कार्य ठप हो गए हैं और आम जनता को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। हड़ताल का मुख्य कारण सरकार द्वारा दिए गए खतौनी अद्यतन के निर्देश हैं, जिसे लेकर लेखपालों में भारी नाराजगी है।
लेखपाल संघ के जिलाध्यक्ष देवेश घिल्डियाल का कहना हैं कि सरकार ने लेखपालों को तत्काल प्रभाव से वह खतौनी तैयार करने का आदेश दिया है, जिसमें सामान्य रूप से तीन से चार साल का समय लगता है। उन्होंने कहा कि यह कार्य बिना किसी अतिरिक्त तकनीकी सहयोग, स्टाफ या संसाधनों के असंभव है।
लेखपालों का कहना है कि वे राजस्व प्रबंधन में तकनीकी सुधारों के पक्ष में हैं, लेकिन बिना तैयारी और संसाधन के इस तरह का दबाव जमीनी स्तर पर कार्य को असंभव बना देता है। लेखपाल संघ ने चेतावनी दी है कि अगर सरकार ने जल्द ठोस वार्ता नहीं की, तो हड़ताल को अनिश्चितकालीन रूप दिया जा सकता है।
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