उत्तराखंड के लोकगीत, संगीत, लोकगाथाओं, परंपराओं व लोक संस्कृति की विधाओं के संरक्षण व संवर्धन पर 54 साल से जुटा है पर्वतीय कला केन्द्र

उत्तराखंड के लोकगीत, संगीत, लोकगाथाओं, परंपराओं व लोक संस्कृति की विधाओं के संरक्षण व संवर्धन पर 54 साल से जुटा है पर्वतीय कला केन्द्र

उत्तराखंड के लोकगीत, संगीत, नृत्य विधा, लोकगाथाओं, रीति-रिवाजों, परंपराओं व लोक संस्कृति से जुडी अन्य विधाओं के संरक्षण व संवर्धन पर पर्वतीय कला केन्द्र दिल्ली, उत्तराखंड के प्रवासियों की एक मात्र वैश्विक फलक पर ख्याति प्राप्त सांस्कृतिक संस्था है, जो विगत 54 वर्षों से निरंतर राष्ट्रीय व अंतर राष्ट्रीय फलक पर कार्य कर रही है।

पर्वतीय कला केन्द्र की स्थापना
(1968 से 1980)

सन् 1968, दिल्ली प्रवास में निवासरत, उत्तराखंड के प्रवासी प्रबुद्ध बंधुओं में प्रमुख, लोकगायक व संगीतकार प्रो. मोहन उप्रेती, दिल्ली कमिश्नर बीआर टम्टा, अकादमी सचिव डॉ नारायण दत्त पालीवाल, प्रो. (डॉ) नारायण कृष्ण पंत, दिल्ली विश्वविद्यालय, लोकगायिका व दूरदर्शन प्रोड्यूसर नईमा खान उप्रेती, एलआईसी अधिकारी एचएस राना इत्यादि इत्यादि द्वारा, पर्वतीय कला केन्द्र की स्थापना की गई थी। देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री, इंदिरा गांधी द्वारा, आईफैक्स सभागार में, संस्था का विधिवत उद्घाटन किया गया था। केन्द्र द्वारा मंचित, उत्तराखंड पर्वतीय अंचल के विविधता से ओत-प्रोत गीत-संगीत व नृत्यों का लुफ्त उठा, श्रीमती गांधी द्वारा, केन्द्र के उज्ज्वल भविष्य की कामना की गई थी।

विदेशी अतिथियों के सम्मान में विभिन्न मान्य संगठनों व संस्थाओं द्वारा आयोजित आयोजनों में, केन्द्र के कलाकारों द्वारा, अंचल के गीत-संगीत व नृत्यों की अनेकों प्रस्तुतियों का मंचन किया गया। 1971 में, भारत सरकार द्वारा, पर्वतीय कला केन्द्र के 18 कलाकारों के सांस्कृतिक दल को, सिक्कम (गंगटॉक), भारत का प्रतिनिधित्व करने हेतु भेजा गया।

तत्कालीन राष्ट्रपति फखूरुद्दीन अली अहमद, द्वारा कमानी सभागार में केन्द्र द्वारा आयोजित कार्यक्रम में, मुख्य अतिथि के रूप में शिरकत कर, अंचल के लोकगायक मोहन सिंह ’रीठागाड़ी’ व लोक ढोल वादक कालीराम को सम्मानित गया। कुमाऊं रेजीमेंट की लालकिला में आयोजित डायमंड जुबली में, केन्द्र के गीत-संगीत व नृत्य के कार्यक्रम आयोजित किये गए। लोकगायक मोहन उप्रेती द्वारा गाया व संगीत बद्ध लोकगीत, बेडू पाको बारा मासा… को कुमाऊं रेजीमेंट द्वारा पहली बार अपनी बैंड धुन बना, प्रति वर्ष 26 जनवरी गणतंत्र दिवस पर राजपथ पर बजाया जाने लगा। यह गीत व इसकी धुन, दशकों से, हर उत्तराखंडी का पसंदीदा लोकगीत बना हुआ है।

अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर के भारत आगमन पर, उनके राजकीय स्वागत समारोह में, केन्द्र द्वारा उत्तराखंड के गीत-संगीत व नृत्यों का मंचन किया गया।

प्रगति मैदान, बिडला मिल, गांधी दर्शन, यूएसएसआर कल्चरल सेंटर, तालकटोरा स्टेडियम, तीन मूर्ति, मुंबई, जयपुर, उत्तराखंड के कई शहरों इत्यादि में, गीत-संगीत व नृत्य के अनगिनत प्रभावशाली कार्यक्रम केन्द्र द्वारा मंचित किए गए।

(1980 से 2020)

उत्तराखंड के गीत-संगीत व नृत्यों के साथ-साथ पर्वतीय कला केन्द्र द्वारा, 1980 से, उत्तराखंड की लोक संस्कृति, रीति-रिवाजों, परंपराओं, प्रेम गाथा, वीर गाथा इत्यादि इत्यादि से जुडी सु-विख्यात लोकगाथाओं, लोक परंपराओ से जुडी दंत कथाओं, अंचल के जीवन दर्शन व रामलीला इत्यादि पर गीत नाट्य मंचित कर, देश की एक मात्र ऐसी संस्था के रूप में पहचान बनाई, जो गीत-संगीत विधा में निरंतर ख्याति अर्जित करती चली गई। यह देश की एक मात्र ऐसी संस्था है, जो गीत-संगीत आधारित गीत नाट्यां का मंचन करती है।

केन्द्र द्वारा मंचित गीत नाट्यों में, राजुला मालूशाही, अजुबा बफोल, रामलीला, गढ़वाल की पांडव जागर शैली आधारित, ’महाभारत’, रसिक रमोल, जीतू बगडवाल, हिल-जात्रा, भाना गंगनाथ, स्वतंत्रता संग्राम पर आधारित ’वंदेमातरम’, रामी, गोरिया, नंदादेवी, कुली बेगार, हरुहित इत्यादि इत्यादि गीत नाट्यां के अनगिनत मंचन, दिल्ली सहित देश कई शहरां व महानगरां में मंचित किए गए हैं।

राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित अनेकों महोत्सवों में पर्वतीय कला केन्द्र को, दिल्ली और उत्तर प्रदेश का प्रतिनिधित्व करने का अवसर मिला।

1983 में पर्वतीय कला केन्द्र के 18 कलाकारों को, आईसीसीआर, भारत सरकार द्वारा, ट्युनिशिया, जोर्डन, अल्जीरिया, इजिप्ट और सीरिया में आयोजित, अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक समारोहों में, भारत का प्रतिनिधित्व करने का अवसर प्रदान किया गया।

1988 में उत्तरी कोरिया में आयोजित, ‘Spring Friendship Art Festival’ जिसमें विश्व के 50 देशां द्वारा प्रतिभाग किया गया, आईसीसीआर, भारत सरकार द्वारा, पर्वतीय कला केन्द्र के 24 सदस्यीय कलाकारों के दल को, भारत का प्रतिनिधित्व करने को भेजा गया। उत्तर कोरिया में देश का प्रतिनिधित्व कर, यात्रा के अगले पडाव में, भारतीय दूतावास चीन व थाईलैंड के सहयोग से, भारतीय दूतावास थिएटर, बीजिंग और बैंकाक द्वारा, पर्वतीय कला केन्द्र द्वारा प्रस्तुत उत्तराखंड के गीत-संगीत व नृत्यों के कार्यक्रम, उक्त देशां की राजधानियों के अपार जनसमूह के मध्य मंचित करवाए गए।

भारत में आयोजित अनेक अंतरराष्ट्रीय रंगमंच महोत्सवों में, केन्द्र द्वारा उत्तराखंड की अनेकों लोकगाथाओं का मंचन तथा, विश्व के सबसे बडे रंगमंच महोत्सव, ‘ओलंपिक थिएटर-2018’ में पर्वतीय कला केन्द्र को, भारत सरकार, संस्कृति मंत्रालय द्वारा, प्रतिभाग करने का अवसर प्रदान किया गया।

1974 से 2016 तक, श्रीराम भारतीय कला केन्द्र द्वारा, प्रतिवर्ष दिल्ली में आयोजित, एक म’त्र राष्ट्रीय होली महोत्सव में, पर्वतीय कला केन्द्र द्वारा, खडी होली का मंचन किया गया। प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के निवास पर, अटल सरकार की कैबिनेट व विपक्ष के प्रमुख लीडरों की उपस्थिति में, पर्वतीय कला केन्द्र द्वारा खडी होली का मंचन किया गया।

उत्तराखंड के लोकगीत, संगीत, नृत्य विधा, लोकगाथाओं, रीति-रिवाजां, परंपराओं व लोक संस्कृति से जुडी अन्य विधाओं के संरक्षण व संवर्धन पर पर्वतीय कला केन्द्र दिल्ली, दिल्ली प्रवास में, उत्तराखंड के प्रवासियों की एक मात्र, वैश्विक फलक पर ख्याति प्राप्त सांस्कृतिक संस्था है, जो विगत, 54 वर्षों से निरंतर, राष्ट्रीय व अंतर राष्ट्रीय फलक पर कार्य कर रही है।

1968 से 2022 तक पर्वतीय कला केन्द्र के अध्यक्ष पदों पर, स्व. मोहन उप्रेती, स्व. नईमा खान उप्रेती, स्व. भगवत उप्रेती, स्व. प्रेम मटियानी तथा सीडी तिवारी विराजमान रहे हैं। वर्तमान में सीएम पपनैं इस अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त संस्था के अध्यक्ष हैं।

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