देश के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कारों में से एक पद्मश्री पुरस्कार की घोषणा कर दी गई है। उत्तराखंड की अल्मोड़ा की रहने वाली राधा बहिन भट्ट को पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया जायेगा।
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
राधा बहिन भट्ट बागेश्वर समेत प्रदेश और देश में पर्यावरण संरक्षण और महिला सशक्तिकरण का चेहरा रही हैं। उन्हें पहाड़ की गांधी तक की उपाधि प्राप्त है। गांधीवादी मूल्यों के जरिए पर्यावरण संरक्षण, बालिका शिक्षा और महिला सशक्तिकरण को मजबूत बनाने में उन्होंने बड़ी भूमिका निभाई। लक्ष्मी आश्रम कौसानी, बागेश्वर की अध्यक्ष राधा बहिन भट्ट के योगदान को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित करने की घोषणा की है। मई में होने वाले कार्यक्रम में उन्हें यह सम्मान दिया जाएगा।
राधा बहिन भट्ट का जन्म 16 अक्टूबर 1933 को उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के धुरका गांव में हुआ। उनका बचपन से ही शिक्षा के प्रति गहरा लगाव था। इसी प्रेरणा ने उन्हें 1951 में सरला बहन द्वारा कौसानी में स्थापित लक्ष्मी आश्रम में शिक्षिका बनने के लिए प्रेरित किया। यह आश्रम महात्मा गांधी के आदर्शों पर आधारित था और महिलाओं के उत्थान के लिए समर्पित था। 1957 से 1961 के बीच राधा भट्ट ने सर्वोदय और भूदान आंदोलनों में सक्रिय भाग लिया। उन्होंने बौगाड़ क्षेत्र में 1961 से 1965 के बीच ग्रामीण पुनर्निर्माण का कार्य किया। इसके बाद, उन्होंने नशाबंदी, वन संरक्षण, टिहरी बाँध, खनन विरोधी आंदोलनों और नदी बचाओ आंदोलन जैसे कई जनांदोलनों में हिस्सा लिया।
उन्होंने भारत के बाहर भी गांधीवादी विचारों और सामाजिक विकास के क्षेत्र में काम किया। डेनमार्क, स्वीडन, नॉर्वे, फिनलैंड, कनाडा, मैक्सिको, और अमेरिका जैसे देशों में उन्होंने कभी शिक्षिका तो कभी विद्यार्थी के रूप में योगदान दिया। उन्होंने डेनमार्क में वयस्क शिक्षा और लोक हाई स्कूल प्रणाली में डिप्लोमा किया। 1966 से 1989 तक राधा भट्ट ने लक्ष्मी आश्रम की सचिव के रूप में काम किया। उन्होंने बालिका शिक्षा, महिला सशक्तिकरण, ग्राम स्वराज, शराब विरोधी आंदोलन और वन संरक्षण के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण कार्य किए। 1975 में सरला बहन के 75वें जन्मदिन पर उन्होंने 75 दिनों की पदयात्रा की, जिसमें चिपको आंदोलन और ग्राम स्वराज के संदेश को जन-जन तक पहुंचाया।
राधा भट्ट ने पहाड़ों में 25 बाल मंदिरों के द्वारा लगभग 15000 बच्चों को शिक्षा का लाभ दिला चुकी हैं। राधा अपने जीवन में लगभग डेढ़ लाख पेड़ लगाकर पर्यावरण संरक्षण की अलख जला चुकी है। राधा भट्ट को उनके अद्वितीय योगदान के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। इनमें जमनालाल पुरस्कार, बाल सम्मान, इंदिरा प्रियदर्शनी पर्यावरण पुरस्कार, और गौदावरी गौरव पुरस्कार प्रमुख हैं और अब उन्हें देश के सर्श्रेष्ठ सम्मानों में से एक पद्मश्री सम्मान के लिए चयनित किया गया है। 1980 में उन्होंने खनन के खिलाफ मोर्चा खोला और 2006 से 2010 तक उत्तराखंड के हिमालय और नदियों का सर्वेक्षण किया। उन्होंने हाइड्रो पावर परियोजनाओं और सुरंगों में नदियों को डालने के विरोध में जनजागरूकता फैलाने का कार्य किया।
आज, 91 वर्षीय राधा भट्ट महिला सशक्तिकरण, पर्यावरण संरक्षण, और ग्राम स्वराज के लिए प्रेरणा बनी हुई हैं। लक्ष्मी आश्रम कौसानी की अध्यक्ष के रूप में वे उत्तराखंड के पहाड़ों और ग्रामीण समुदायों के लिए निरंतर काम कर रही हैं। उनका जीवन गांधीवादी मूल्यों और हिमालय के प्रति अटूट प्रेम का प्रतीक है। वर्ष 2006 से 2010 तक राधा बहिन ने उत्तराखंड के हिमालय और नदियों के सर्वेक्षण का काम किया। इस दौरान नदियों पर बनने वाली हाइड्रो पॉवर परियोजनाओं का विरोध भी किया। राधा बहिन ने ’हिमालय की बेटियां’ पुस्तक भी लिखी है। इसे जर्मन और डेनिस में प्रकाशित किया गया है। अभी वह नौला यानी जलस्रोत बचाव अभियान चला रही हैं। उनका उद्देश्य कौसानी के आसपास के नालों को पुनर्जीवित करना है।
राधा भट्ट को गांधीवादी विचारधारा के प्रसार और उन्हें साकार करने में योगदान के लिए जमनालाल बजाज पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। उन्हें शांति के लिए प्रतिष्ठित नोबल पुरस्कार के लिए भी नामांकित किया जा चुका है। राधा भट्ट का जीवन संघर्ष, समर्पण और सेवा की मिसाल है, जो न केवल उत्तराखंड बल्कि पूरे भारत के लिए प्रेरणादायक है। उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित करने की घोषणा की है। मई में होने वाले कार्यक्रम में उन्हें यह सम्मान दिया जाएगा। उन्हें देश के सर्वश्रेष्ठ सम्मानों में से एक पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया जा रहा है, यह प्रत्येक उत्तराखंडी के लिए सम्मान का विषय है। स्वयं राधा दीदी किसी भी तरह के पुरस्कारों से ऊपर उठ चुकी हैं। 91 साल की राधा बहिन हमारे बीच एक गरिमामयी प्रेरणा की तरह उपस्थिति हैं इसलिए उनको पद्मश्री मिलने को हम इसे बड़े निरपेक्ष ढंग से ले रहे हैं। हां इससे पद्मश्री की गरिमा ज़रूर बढ़ेगी।
लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।
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