‘सृष्टि की शुरुआत से है और अंत तक रहेगा सनातन धर्म, हम ज्ञान की परंपरा’

‘सृष्टि की शुरुआत से है और अंत तक रहेगा सनातन धर्म, हम ज्ञान की परंपरा’

भ्रम तब पैदा होता है जब संस्कृत भाषा के शब्द की अलग भाषा में व्याख्या की जाती है और उसका भाव नहीं समझ पाते। भाषा का अध्ययन किए बिना अनुवाद करने वालों के लिए परेशानी पैदा हो जाती है। यहां तक कि धर्म रिलिजन का समानार्थी नहीं है। रिलिजन फेथ है। हमारे धर्म शब्द का मतलब होता है ड्यूटी, जिसे आपको करना है।

विशेष आलेख 

स्वामी परमात्मानंद सरस्वती
महासचिव, हिंदू धर्म आचार्य सभा

 हमारे सनातन और वैदिक धर्म में, जिसे हिंदू धर्म के नाम से जाना जाता है… पर आगे बात करने से पहले हमें कुछ चीजों पर स्पष्टता होनी जरूरी है। लोकप्रिय हिंदू धर्म और चुनाव के समय में जो हिंदू नहीं हैं, वे भी हिंदू और हिंदुत्व की बातें कर रहे हैं। ऐसे में, मैं आपके सामने आम धारणा और मंदिर के साथ उसके कनेक्शन की बात करूंगा और फिर समस्या की चर्चा करूंगा। मैं धर्म शब्द का इस्तेमाल नहीं करना चाहता। सनातन धर्म ऐसा नहीं है कि किसी ने एक समय पर इसकी स्थापना की। यह सृष्टि के शुरुआत से है और आखिर तक रहेगा। नया चक्र शुरू होगा तो यह भी शुरू होगा इसीलिए इसे सनातन धर्म कहा जाता है।

यहां राम और कृष्ण के रूप में मनुष्य अवतार हुए हैं। लेकिन उन्होंने किसी समय पर इस धर्म की शुरुआत नहीं की। वे इस धर्म में जन्मे और सनातन धर्म के अनुसार जीवन जिया। इसके जरिए मैं यह बात स्पष्ट करना चाहता हूं, जो काफी लोगों में गलत धारणा के रूप में बस गई है, हमारे सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि यह जीवन जीने का तरीका है, जो सत्य नहीं है। हिंदू धर्म सत्य का दृष्टिकोण है और उसके लिए यह हमें जीवन जीने का दृष्टिकोण और तरीका बताता है लेकिन जीवन जीने का तरीका अपने आप में धर्म नहीं है। ‘वे ऑफ लाइफ’ सत्य के दृष्टिकोण का एक साधन है। सत्य क्या है। भौतिक विज्ञानी पार्टिकल के जरिए सत्य को पा सकता है, केमिस्ट किसी केमिकल में सत्य पा सकता है। हमारे ऋषि और वेदों ने हर सत्य को उजागर किया है। इसे तीन श्रेणियों के मॉडल के जरिए परिभाषित किया गया है। पहला, शास्त्रिक भाषा में मैं जीव हूं और जो कुछ दिख रहा, नहीं दिख रहा वह जगत है। दूसरा, किसी भी आंख ने इस दुनिया को नहीं बनाया है। तीसरा, सृष्टिकर्ता ईश्वर है। सत्य का दृष्टिकोण यह है कि जीव, जगत और ईश्वर ब्राह्मण के रूप में व्यक्त होते हैं।

हम विश्वास की परंपरा नहीं, ज्ञान की परंपरा हैं। जब मैं एक अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस में गया तो वहां लिखा मिला कि ‘लीडर्स फ्रॉम द वेरिएस फेथ्स’…. नहीं, हम ज्ञान की परंपरा वाले लोग है। अगर कोई अध्यापक शिक्षण संप्रदाय को जानता है और इस विजन को विद्यार्थियों तक पहुंचाता है। वेदव्यास जी के पास वो विजन था और उन्होंने इसे अपने शिष्यों को दिया। वह शंकराचार्य और मेरे गुरु को दिया। एक प्रसिद्ध उदाहरण हमारे पास है। जब स्वामी विवेकानंद पूछते हैं कि क्या आपने ईश्वर को देखा है तो रामकृष्ण परमहंस कहते हैं न केवल मैंने देखा है बल्कि मैं आपको भी वह दृष्टि दे सकता हूं। यह विश्वास पर आधारित धर्म में ऐसा संभव नहीं है, यह तभी संभव हो सकता है जब ज्ञान की परंपरा हो।

अध्यापक को अगर अपने विषय का ज्ञान है और वह अपने छात्रों को कम्युनिकेट करता है और विद्यार्थी तैयार हैं तो टीचर निश्चित रूप से विजन को कम्युनिकेट करता है। यमराज नचिकेता से कहते हैं कि इस बात की कोई संभावना नहीं है कि आप इस विजन से बच या छोड़ सकें। इस विजन को हासिल करने के लिए हमारे वेदों ने धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के रूप में जीवन दृष्टि सामने रखी है। इसे चतुर्विद पुरुषार्थ कहते हैं और जीवन जीने का तरीका है वर्णाश्रम धर्म और सामान्य धर्म और विशेष धर्म। अंग्रेजी भाषा की अपनी सीमाएं हैं। हर भाषा के पास अपनी सीमाएं हैं। जब समाज के पास विजन, ज्ञान, या अवधारणा नहीं है तो उनके पास दूसरी संस्कृति की चीजों के लिए उचित शब्द नहीं होंगे।

हमारे यहां भी पंजाबी, हरियाणवी से लेकर मलयाली, गुजराती से बंगाली भाषा तक में वाई-फाई के लिए कोई समानार्थी शब्द नहीं है। वाई-फाई और मोबाइल को वाई-फाई और मोबाइल ही कहते हैं क्योंकि हमारे पास इसका कॉन्सेप्ट नहीं है। भ्रम तब पैदा होता है जब संस्कृत भाषा के शब्द की अलग भाषा में व्याख्या की जाती है और उसका भाव नहीं समझ पाते। भाषा का अध्ययन किए बिना अनुवाद करने वालों के लिए परेशानी पैदा हो जाती है। यहां तक कि धर्म रिलिजन का समानार्थी नहीं है। रिलिजन फेथ है। हमारे धर्म शब्द का मतलब होता है ड्यूटी, जिसे आपको करना है।

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आप मनुस्मृति, वाल्मीकि रामायण, महाभारत कुछ भी खोलिए, आपको चैप्टर में मिलेंगे ब्राह्मण धर्म, क्षत्रिय धर्म, गृहस्थ धर्म, वानप्रस्थ धर्म…हम अब भी कहते हैं कि धर्म जीवन जीने का तरीका है इसीलिए विवाह में सहधर्मचारी और सहधर्मचारिणी शब्द आता है। लोग कहते हैं कि स्वामी जी यह मेरी धर्मपत्नी है। धर्म का एक और मतलब सत्य है। पाप के लिए सिन शब्द है लेकिन पुण्य के लिए कोई शब्द नहीं है। लोग कह देते हैं पुण्या… योग के लिए क्या शब्द है योगा… मतलब यह है कि वे हमारे धर्म को नहीं समझते हैं। हिंदू जीवन जीने का तरीका सृष्टि की शुरुआत से मानता आया है कि हर चीज पवित्र है। हमारे लिए जगत भोग्य नहीं है, हमारे लिए जगत पूज्य है।

हमारे यहां भजन है, ओम जय जगदीश हरे…. स्वामी सब कुछ है तेरा, क्या लागे मेरा। यह विजन हमारी संस्कृति में रचा बसा है। आप रामायण देखिए तुलसीदास जी कहते हैं

सिया राम मय सब जग जानी,
करहु प्रणाम जोरी जुग पानी।

अर्थात् पूरे संसार में श्री राम का निवास है, सबमें भगवान हैं और हमें उनको हाथ जोड़कर प्रणाम करना चाहिए। आप सभी स्थानीय कवियों को पढ़िए, उन्होंने जो भी धार्मिक कविता, गीत लिखे हैं हमारा मानना है कि सब कुछ दैवीय है। यहां तक कि जिस इमारत में आप रहते हैं वह भी दैवीय है इसलिए आप वास्तु पूजन करते हैं। गर्भाधान संस्कार भी देवत्व से जुड़ा है। हमारे लिए लक्ष्मी जी भी देवत्व हैं। हम यह नहीं कहते कि ईश्वर ने मनुष्यों के उपभोग के लिए दुनिया बनाई है। हम दृढ़ता के साथ मानते हैं कि जो कुछ भी मेरे से जुड़ा है या मेरे पास है वो मेरा नहीं है आखिर में यह ईश्वर का दिया हुआ है। इस व्यवहार को विकसित करने के लिए हम सब कुछ ईश्वर को समर्पित करते हैं। इसीलिए हमारे धार्मिक स्थलों पर हुंडी की अवधारणा मिलती है जो किसी और धर्म में नहीं मिलता है। अगर आप अमेरिका जाइए तो वहां जहां भी मंदिर या धार्मिक स्थल हैं वहां पार्किंग लॉट बना है। किसी दूसरे पब्लिक प्लेस में पहला लॉट दिव्यांग के लिए होता है। लेकिन आप न्यूजर्सी, कैलफोर्निया और अन्य जगहों पर पाएंगे कि वहां कारपूजा पार्किंग स्लॉट बने हैं। अगर हम कार भी खरीदते हैं तो हम इसे ईश्वर को अर्पित करते हैं। जब कोई शिशु जन्म लेता है तो उसे ईश्वर को समर्पित करते हैं। यही व्यवहार हमारे राजाओं का भी रहा है। रामायण की कहानी में यह साफ दृष्टिगोचर होता है। राजा भरत श्री राम की पादुका को सिंहासन पर रखकर राज्य चलाते हैं। इसका भाव यही है कि हे भगवान, यह राज्य आपका है। आप मालिक हो, हम तो मैनेजर हैं। यही वजह है कि पुरी में रथयात्रा राजा खुद सड़क साफ करते हैं। मैं ईश्वर का नौकर हूं। भगवद्गीता में भगवान कहते भी यही कहते हैं…. शासन करना भी ईश्वर को समर्पित करना है। वह ऐसा नहीं सोचता कि राज्य उसका अपना है। जो भी राजा के पास था वह ईश्वर के लिए था क्योंकि वही प्रधान है। राजाओं के पास हाथी थे तो आप दक्षिण भारत में देखिए सभी मंदिरों में भगवान के लिए हाथी हैं। राजा के पास रथ होता था, भगवान के पास सोने का रथ है। राजा के पास कुक था, ईश्वर के पास एक से बढ़कर एक कुक हैं… इस तरह से हमारे मंदिर काफी समृद्ध हैं।

स्वतंत्रता से पहले ऐसा नरैटिव तैयार किया गया था कि हिंदू मंदिरों में भेदभाव होता है। जस्टिस वेंकटचलैया ने बिल्कुल सही कहा है कि स्टेट का काम रेग्युलेट करना है उस पर नियंत्रण करना है। हम दुर्भाग्यशाली हैं कि भारत में भी हिंदू धर्म के अलावा दूसरे धर्म के धार्मिक स्थल का न तो प्रबंधन होता है और न ही रेग्युलेट किया गया। कई ऐसे केस हैं जिसमें आपको पता चलता है कि जब सरकार ने हिंदुओं के पैसे का गलत इस्तेमाल किया। वह पैसा जो पवित्र है, जो ईश्वर के नाम पर रखा पैसा है, समानता और न्याय के वादे के तहत वे मंदिरों को अपने नियंत्रण में ले रहे हैं और पैसे का गलत इस्तेमाल हो रहा है… इसका हिंदुओं के अलावा दूसरों के लिए उपयोग हो रहा है।

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