जो लोग यह कहते हैं कि बड़ा मुश्किल है। गांव में रहकर कुछ नहीं किया जा सकता है या कितनी मेहनत करें, सफलता तो मिल नहीं रही है… उन्हें यह कहानी प्रेरित करेगी। अपने पिता के साथ चाय की दुकान चलाने वाले ने कैसे खड़ा किया पहाड़ में मॉल… हिल-मेल #UttarakhandPositive में पढ़िए।
थोड़ी देर हो सकती है, पर मेहनत कभी बेकार नहीं जाती। आज हम आपको उत्तराखंड के एक ऐसे युवा की कहानी बताने जा रहे हैं, जिसने दिल्ली में धक्के खाए और गांव लौट आया। आगे चलकर उसके कठिन परिश्रम का फल मिला और उसने ग्रामीण इलाके में ही मॉल खोल दिया। अब लोगों के लिए वह युवा एक प्रेरणा बन चुका है।
1998 से शुरू होती है कहानी…
नाम – करन बिष्ट। अपने पिता के साथ वह 1998 में गांव से 18 किमी दूर मुक्तेश्वर आ गए और एक छोटी सी चाय की दुकान खोली। ‘हिल-मेल’ से बातचीत में करन ने बताया कि उस समय के हालात काफी मुश्किल थे, पानी की भी व्यवस्था नहीं थी तो 2-3 किमी दूर से पानी लाना पड़ता था। दिनभर दुकान में काम करते और रात में पानी भरने की आपाधापी लगी रहती। अक्सर रात में 2 बजे, 3 बजे हम पानी लाया करते थे। जाहिर सी बात है कि चाय की दुकान थी तो पानी की खपत भी काफी ज्यादा थी।
चाय के बाद खोली मिठाई की दुकान
कई साल तक ऐसे ही काम चलता रहा। उसके बाद करन ने मिठाई की दुकान खोली। उन्हें अपने पिताजी के साथ काम करते-करते बोरियत होने लगी। पापा के काम में हाथ बंटाते हुए ग्रेजुएशन किया और फिर दिल्ली चले गए, जैसा कि वहां के दूसरे लड़कों ने किया था।
वहां कोई अच्छी जॉब थी नहीं, तो कैटरिंग लाइन में काम किया। जो काम किया जा सकता था, वह दिल्ली में करन ने किया लेकिन मन नहीं लगा क्योंकि प्रदूषण भी काफी ज्यादा था। करन कहते हैं कि बस यूं समझिए दिल्ली की आबोहवा कुछ जमी नहीं।
‘चायवाले’ ने अपने दम पर गांव में खोला मॉल, उत्तराखंड के इस युवा का संघर्ष सिखाता है बहुत कुछ
दिल्ली से वापस लौटे गांव और खोली किराने की दुकान
उन्होंने बताया, ‘मैं वापस आ गया और फिर एक छोटी सी किराने की दुकान खोल ली। मैं दिल्ली में काफी परेशान हो गया। पापा को अच्छा नहीं लगता था कि बेटा दिल्ली में धक्के खा रहा है।’ करन बातों ही बातों में कहते हैं कि मेरे लिए पिता ही भगवान हैं। उन्होंने ही मुझे आगे बढ़ने का रास्ता दिखाया।
उन्होंने ही सलाह दी कि एक छोटी सी किराने की दुकान खोल देते हैं। तुम मुझे कुछ मत देना, बस अपना खर्चा निकाल लेना और बचाना। बचपन से चाय की आदत भी नहीं पड़ी तो उसका भी कोई खर्चा नहीं था। उन्होंने यह भी कहा था कि यहां जमी हुई मार्केट है, कई सालों से लोग काम कर रहे हैं, ज्यादा तुम कुछ नहीं कर पाओगे लेकिन बुरे व्यसनों से बचे रहना और अपना काम ईमानदारी से करना तो गाड़ी चल पड़ेगी।
सुबह 5 बजे से रात 1 बजे तक काम
करन कहते हैं कि सामने ही पिताजी की चाय की दुकान थी। मैंने देखा कि 30-30 साल से लोग किराने का काम कर रहे थे तो मैंने सोचा कि मुझे कुछ अलग करना चाहिए। मैंने टोटल ग्रोसरी पर फोकस किया। सुबह 5 बजे से काम शुरू हो जाता था और रात के 12-1 बज जाते थे। धीरे-धीरे लोग आने लगे। मैंने किसी को मना नहीं किया। लोगों के दूर-दूर से सामान मंगवाए और ऑन रेट दिया।
शुरू में तो असफलता ही मिलती है…
ग्राहकों में भरोसा पैदा किया कि जो आपको कहोगे सब उपलब्ध होगा। ग्रॉसरी का काम चला तो मैंने सब्जी का काम भी बढ़ा लिया। पहले तो पापा ने मना किया और कुछ दिनों तक सब्जियों को फेंकना भी पड़ा। शुरुआत में तो असफलता ही मिलती है और मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ। 10 किलो सामान रखता था तो बिकता केवल 2 किलो था। धीरे-धीरे लेकिन वह भी जम गया।
सब्जी के बाद डेयरी
फिर मैंने डेयरी प्रोडक्ट बढ़ा दिए। आंचल दूध की एजेंसी ले ली, पिताजी ने फिर मना किया। मार्केट में दो एजेंसी पहले से थी लेकिन फिर भी रिस्क लिया। पहले दिन 12 लीटर दूध रखा तो सारा बिक गया। हौसला बढ़ा तो दूसरे दिन मैंने 24 लीटर रख लिया और केवल ढाई लीटर दूध बिका। पापा ने डांटा पर मैंने हिम्मत नहीं हारी और धीरे-धीरे दूध का काम भी चल पड़ा।
ऐसे आया मॉल का आइडिया
करन कहते हैं कि मैंने अपनी दुकान को ऐसा बना दिया कि शायद ही कोई सामान ऐसा हो जो न मिलता हो। कई सिलेब्रिटी, नेता, मंत्री भी दुकान पर आते थे। भीड़ होने पर लाइन में खड़ा होना पड़ता था। ये लोग कहते थे कि बड़ी शॉप खोल लो, हमें खड़ा रहना पड़ता है। मेरे दिमाग में आइडिया आया कि मार्केट तो बन ही गई है क्यों न गांव में मॉल शुरू करूं।
कई लोगों ने मॉल के बारे में काफी मदद की थी। रिजॉर्ट में सामान जाता था तो होटल संघ ने भी काफी मदद की थी। कुछ पैसा अपना लगाया और कुछ लोन लिया। पिछले साल दिवाली पर मॉल खोला। मैं जितना सोच रहा था उससे अच्छा चल रहा है। ग्रॉसरी, हाउसकीपिंग, डेयरी, फ्रोजन, सब्जियां, फल रखे हैं। यह मॉल नैनीताल-मुक्तेश्वर रोड पर मुक्तेश्वर से 6 किमी पहले भटेलिया मेन मार्केट से 400 मीटर पहले सड़क पर ही है।
प्रॉफिट के बारे में जब पूछा तो करन ने बताया कि उनका महीने का 20-25 लाख रुपये का बिजनस हो जाता है। उन्होंने बताया कि मेरा सब काम कानूनी रूप से वैध है। जीएसटी पंजीकरण कराया है और टैक्स भी चुकाते हैं। इस मार्केट में उनकी जीएसटी पंजीकरण वाली पहली शॉप है। बस ऊपर वाले की कृपा से गाड़ी दौड़ पड़ी है…
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अपने एक और सपूत पर आज गर्व कर रहा पहाड़ - Hill-Mail | हिल-मेल
August 2, 2020, 4:56 pm[…] 'चायवाले' ने अपने दम पर गांव में खोला मॉ… […]
REPLYरक्षाबंधन पर आज उत्तराखंड की बहनों की बस यात्रा फ्री, आंगनबाड़ी-आशा कार्यकर्ताओं को भी तोहफा - Hill-Mai
August 3, 2020, 9:25 am[…] […]
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