गढ़वाली नाटक ‘अपणु-अपणु सर्ग’ का सफल मंचन

गढ़वाली नाटक ‘अपणु-अपणु सर्ग’ का सफल मंचन

3 अक्टूबर की सायं मंडी हाउस स्थित एलटीजी सभागार में उत्तराखंड के प्रवासियों की दिल्ली स्थित ख्यातिरत सांस्कृतिक संस्था ‘दि हाई हिलर्स’ ग्रुप द्वारा गढ़वाली, कुमांऊनी एवं जौनसारी भाषा अकादमी दिल्ली सरकार के संयुक्त तत्वाधान में हरि सेमवाल निर्देशित व सुरेश नौटियाल एवं दिनेश बिजल्वाण द्वारा उत्तराखंड की पृष्ठभूमि में नवरचित गढ़वाली नाटक ‘अपणु-अपणु सर्ग’ का सफल मंचन खचाखच भरे सभागार में किया गया।

सी एम पपनैं

मंचित नाटक का श्रीगणेश गढ़वाली, कुमांऊनी एवं जौनसारी भाषा अकादमी दिल्ली सरकार सचिव संजय गर्ग तथा ‘दि हाई हिलर्स’ ग्रुप संस्था सदस्यों में प्रमुख दिनेश बिजल्वाण, रमेश घिल्डियाल, रविंद्र रावत, राजेन्द्र चौहान, संयोगिता ध्यानी इत्यादि द्वारा दीप प्रज्वलित कर तथा नाटक रचयिता सुरेश नौटियाल द्वारा मंचित नाटक के संक्षिप्त सार के बावत अवगत करा कर किया गया।

सीमित परिवेश में मंचित नाटक ’अपणु-अपणु सर्ग’ का मुख्य पहलू मौलिक रूप में उत्तराखंड की विभिन्न समस्याओं व पीड़ाओं के इर्द-गिर्द घूमता नजर आता है। प्रवास में निवासरत अंचल के एक पत्रकार व अन्य प्रबुद्ध लोगों की विभिन्न प्रकार की सोच, बाल्यकाल में अंचल मे बिताए दिनों की याद, अंचल के प्रवासी युवाओं व युवतियों के प्रेम प्रसंग व उच्च व्यवसाय की ओर बढती सोच तथा ग्रामीण अंचल के लोगों की नशे की लत तथा बढती आकांशाओं व प्रवास में निवासरत अपने ही कुल कुटम्बियों की गांव वापसी की चाहत पर उनको झूट व फरेब का पाठ पढ़ा कर गुमराह करने की महारथ तथा अंचल के अभाव ग्रस्त जीवन व बुढ़ापे के दंश को नाटक में बडी खूबी से पिरोया गया है।

मंचित नाटक में सूत्रधार के माध्यम से नाटक की आत्मा को अभिव्यक्त करने का प्रयास सराहनीय कहा जा सकता है। सूत्रधार के माध्यम व्यक्त गूढ़ व प्रभावशाली विचारों में नव गठित राज्य उत्तराखंड की विभिन्न प्रकार की दुर्दशा व अभावां की असलियत बया होती दिखती है जो खचाखच भरे सभागार में बैठे प्रवासी श्रोताओं का ध्यान आकर्षित करने व दिलो दिमांग को झकझोरने वाला कहा जा सकता है।

‘दि हाई हिलर्स’ ग्रुप द्वारा गढ़वाली बोली के इस पहली बार मंचित नाटक के पात्रां में बृजमोहन वेदवाल (अचलानंद सती), सविता पंत (अन्नपूर्णा सती), कुसुम बिष्ट (कुसुमलता रावत), रवीन्द्र (गौरी) सिंह रावत (संपूर्णानंद सती), रमेश ठंगरियाल (सचलानंद सती), मुस्कान भंडारी (लगुली सिंह), दर्शन सिंह रावत (प्रो. राम सिंह रावत), ममता कर्नाटक (रेन्जरबोडी), गिरधारी रावत (गोपाल सिंह व वेटर) तथा उमेश बंदूनी (सूत्रधार) द्वारा व्यक्त संवादो व अभिनय ने मंचित गढ़वाली बोली-भाषा के नाटक को सफलता प्रदान की है।

खास तौर पर दर्शकों का ध्यान नाटक के मुख्य पात्रों बृजमोहन वेदवाल (पत्रकार), सविता पंत (पत्रकार पत्नी) व रमेश ठंगरियाल द्वारा व्यक्त संवादों व अभिनय पर केन्द्रित रहा। उक्त कलाकार अपनी अदा से श्रोताओं पर विशेष छाप छोडने में सफल रहे।
मंचित नाटक की अन्य छोटी-छोटी भूमिकाओं में शशि बडोला, लक्ष्मी शर्मा जुयाल, इंदिरा प्रसाद उनियाल, सुधा सेमवाल, धर्मवीर सिंह रावत द्वारा अपने अभिनय तथा व्यक्त संवादों से श्रोताओं को प्रभावित किया।

नाटक के सफल मंचन मे निर्देशक हरि सेमवाल की मेहनत रंग लाती दिखी है। श्रोताओं द्वारा नाटक निर्देशन की भुरि-भुरि प्रशंसा की गई। नाटक के नाटककार सुरेश नौटियाल एवं दिनेश बिजल्वाण के संयुक्त प्रयास के बल बहुत हद तक अंचल के मूलभूत मुद्दों पर गहराई व निपुणता से प्रकाश डाला गया है, गढ़वाली रंगमंच को एक नया मौलिक नाटक व जनमानस को एक नई दिशा देने का प्रयास किया गया है, जो सराहनीय प्रयास है। रचित इस मौलिक नाटक के माध्यम से प्रवासी जनो पर गांव वापसी व उठाए गए मुद्दों से कितना प्रभाव पडेगा! शायद एक शो से नहीं। इस सफल आंचलिक नाटक के अनेको शो करने के बाद ही नाटक लेखन का मूल औचित्य व महत्व अंचल के लोगों की समझ में आयेगा, समझा जा सकता है।

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