• ‘ठुल बाज्यू! मैं तुमर लीजी सिकार ली बै आनूं

    ‘ठुल बाज्यू! मैं तुमर लीजी सिकार ली बै आनूं0

    उंगलियों से ईजा की धोती के पल्लू को लपेटकर सिसकियां भरने वाले दृश्य जेहन में उभर आते हैं। ईजा जितनी बार गुस्सा होती, सिर फोड़ने और कमर तोड़ने की ही बात करती! पहाड़ की संस्कृति में इन दो गालियों का अपना ही रसास्वादन है। विरला ही होगा जिसकी ईजा ने उस पर इन गालियों का स्नेह न बरसाया हो।

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