उत्तराखंड के चमोली जिले के जोशीमठ में टनल में फंसे लोगों को बाहर निकालने के लिए राहत और बचाव कार्य चल रहा है। ग्लेशियर टूटने से रैणी पावर प्रोजेक्ट पूरा बह गया और तपोवन भी क्षतिग्रस्त हुआ। पहले प्रोजेक्ट से 32 लोग लापता हैं और दूसरे प्रोजेक्ट से 121 लोग लापता हैं। इनमें से 10 शव बरामद हो गए हैं। आगे पढ़िए आखिर हुआ क्या था…
उत्तराखंड के चमोली जिले की ऋषिगंगा घाटी में रविवार को अचानक आई विकराल बाढ़ ने भारी तबाही मचाई। डैम को नुकसान पहुंचा, सुरंग में काम कर रहे 100 से ज्यादा लोगों की जान खतरे में है। प्रभावित क्षेत्रों में दिन-रात बचाव और राहत अभियान जारी है। सेना के जवान, वायुसेना के विमान, ITBP के हिमवीर फंसे लोगों को सुरक्षित निकालने के लिए काम कर रहे हैं। हादसे को 24 घंटे बीत चुके हैं लेकिन एक सवाल अब भी लोगों के मन में होगा कि कड़ाके की ठंड में अचानक ग्लेशियर कैसे टूट गए। ‘हिल मेल’ ने विशेषज्ञों से यह समझने की कोशिश कि रविवार 7 फरवरी को आखिर हुआ क्या था। आइए एक-एक करके समझते हैं।
ग्लेशियर की प्रकृति और पहाड़ की संरचना को गहराई से समझने वाले विशेषज्ञ प्रोफेसर एपी डिमरी का मानना है कि रैणी क्षेत्र में इस आपदा में हिमस्खलन की बड़ी भूमिका है। हिल मेल से विशेष बातचीत में उन्होंने कहा कि यह समझना होगा कि अभी बारिश का मौसम नहीं है तो ऊपर पानी कहां से आया। इसका मतलब कहीं से तो पानी का जमावड़ा ऊपर हुआ होगा। ऐसे में ग्लेशियर लेक के फटने से तबाही आई होगी। ग्लेशियर लेक बढ़ने के कई कारण हो सकते हैं। तापमान बढ़ ही रहा है, प्राकृतिक कारण भी होते हैं। ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण ऊंचाई वाले इलाके निचले की तुलना में तेजी से गर्म हो रहे हैं।
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प्रोफेसर डिमरी ने बताया कि 1-2 दिन पहले उस इलाके में काफी बर्फबारी हुई है तो हो सकता है कि हिमस्खलन बड़े पैमाने पर हुआ जो आगे फ्लैश फ्लड का रूप ले लिया। हिमस्खलन के कारण ही इलाके में ग्लेशियर लेक फटी होगी। उत्तराखंड के पहाड़ों में स्ट्रीम की उतनी क्षमता नहीं होती है कि वह ज्यादा पानी को सहन कर सके। ऐसे में होता यह है कि जो भी ऊपर से आता है कुछ भी रास्ते में रुकता नहीं, सब कुछ नीचे चला आता है, जिससे तबाही मचती है।
प्रोफेसर डिमरी ने आगे कहा कि आपदा की असली वजह तो विस्तृत विश्लेषण के बाद ही पता चलेगी। वैज्ञानिक जांच शुरू हो गई है।
बताया जा रहा है कि उस इलाके में पिछले दिनों बर्फबारी के साथ बारिश भी हुई थी। ऊपरी क्षेत्रों में बर्फ जमा हो गई। कुछ जानकार यह भी कह रहे हैं कि जैसे ही तापमान कम हुआ तो ग्लेशियर सख्त हो गए और फिर ऊपरी सतह के कटाव के चलते बर्फ खिसक गई। उत्तराखंड में पहले भी कई बार आपदा आ चुकी है। ग्लेशियर के लिहाज से देखें तो यमुनोत्री, गंगोत्री, द्रोणगिरी, बद्रीनाथ, भागीरथी ही नहीं काली, नरमिक, पिनौरा समेत कई जगहों पर बड़े ग्लेशियर हैं।
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शोध बताते हैं कि ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से ग्लेशियर पीछे खिसक रहे हैं। हालांकि पर्यावरण में बदलाव हमारी धरती को कई तरह से प्रभावित करता है।
गौर करने वाली बात यह है कि उत्तराखंड में ज्यादातर ग्लेशियर अल्पाइन ग्लेशियर हैं। जी हां, पर्वतों पर होने की वजह से इन्हें अल्पाइन ग्लेशियर की श्रेणी में रखा जाता है। वैज्ञानिकों के मुताबिक अल्पाइन ग्लेशियर हिमस्खलन और टूटने के लिहाज से बेहद खतरनाक होते हैं। ठंड के मौसम में पर्वतीय क्षेत्रों में होने वाली बारिश और बर्फबारी से अल्पाइन ग्लेशियर पर बर्फ का भार बढ़ जाता है। ऐसे में ग्लेशियर के खिसकने और टूटने का बड़ा खतरा रहता है।
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