ये साल आधी आबादी के लिए बेहद अहम बन गया है। इस साल में सेना में महिलाओं को स्थायी कमीशन का रास्ता खुल गया है। फरवरी महीने में सुप्रीम कोर्ट ने महिला अफसरों के पक्ष में फैसला दिया। सेना में स्थायी कमीशन की मांग को लेकर लंबे समय से अदालत में ये मामला चल रहा था। इस जीत के पीछे हैं विंग कमांडर (रिटा.) अनुपमा जोशी।
सैन्यबलों में महिलाओं को समान भागीदारी मिले, समान जिम्मेदारी मिले विंग कमांडर रिटायर्ड अनुपमा जोशी ने इसके लिए आवाज उठाई और आज कई महिलाओं को समानता का हक दिला दिया। अनुपमा जोशी कहती हैं कि जब आपको ट्रेनिंग के दौरान कूदने को कहा जाए तो ये मत पूछिए कि क्यों, ये पूछिए कि कितना ऊंचा। अपने अनुभव साझा करती हुई वह बताती हैं कि अपनी पहली पोस्टिंग के दौरान जब वह ऑफिसर्स कॉरीडोर में पहुंची और अपने कमरे की चाबी मांगी, तो सामने खड़े पुरुष ने पूछा कि साहब कहां हैं, उन्होंने जवाब दिया कि मैं ही साहब हूं, उस व्यक्ति के चेहरे से लग रहा था कि उस समय पुरुष महिलाओं को एक ऑफिसर के रूप में देखने के लिए तैयार नहीं हैं। उनके खुद के अनुभवों में ऐसा एक नहीं, कई बार हुआ। उस समय आपके वरिष्ठ हों या साथ के लोग हों, उन्हें ये समझ नहीं आता था कि आपके साथ कैसा व्यवहार करना है। जिस हॉल में पुरुष ऑफिसर्स के ठहाके गूंज रहे होते, एक लेडी ऑफिसर के दाखिल होते ही सन्नाटा पसर जाता, क्योंकि उन्हें नहीं मालूम था कि लेडी ऑफिसर के साथ कैसे व्यवहार करना है। एयरफोर्स में शुरू में आईं महिलाओं को खुद को स्वीकार किए जाने के लिए संघर्ष करना पड़ा। अनुपमा कहती हैं कि वह आपके साथ एक महिला की तरह ही व्यवहार करते रहे एक महिला ऑफिसर की तरह नहीं।
अनुपमा बताती हैं कि एयरफोर्स में महिलाओं के लिए राह खुलने के बावजूद प्रमोशन, प्लेसमेंट, पोस्टिंग में महिलाओं को समान अवसर नहीं मिल रहे थे। शुरुआत में महिलाओं को महज 5 वर्ष की सेवाओं को मंजूरी दी गई। इस एक तरह से प्रयोग के तौर पर रखा गया। इस सबको देखते हुए अनुपमा जोशी ने ये संघर्ष छेड़ा कि जिस तरह पुरुषों को परमानेंट कमीशन मिलता है, महिलाओं को क्यों नहीं। इस दौरान महिलाओं को चार साल का एक्सटेंशन दिया गया। जिससे एयरफोर्स की महिलाएं बहुत ख़ुश हुईं। लेकिन जब एयरफोर्स में उनकी पारी की दूसरी मियाद पूरी होने को आई तब उन्होंने पूछा कि आर्म्ड फोर्सेस में महिलाओं के लिए क्या करियर प्रॉसपेक्ट्स है। लेकिन इस सवाल का लंबे समय तक जवाब नहीं मिला। फिर उन्हें बताया गया कि ये मामला रक्षा मंत्रालय में लंबित है। काफी लंबे समय तक जवाब नहीं मिलने पर एक बार फिर उन्होंने चीफ ऑफ एयर स्टाफ को एक पत्र लिखा है। वहां भी उन्हें यही जवाब मिला। उन्होंने पूरा एक साल इंतज़ार में बिताया। इसके बाद उन्होंने फिर एक पत्र लिखा। उसका भी उन्हें जवाब नहीं मिला, लेकिन उनकी सेवाओं को 6 साल का विस्तार जरूर मिला। लेकिन अनुपमा अब भी परेशान थीं कि महिलाओं को स्थायी कमीशन क्यों नहीं दिया जा रहा। वे अपने पुरुष सहभागी की ही तरह अपना कार्यकाल पूरा क्यों नहीं कर सकतीं। साथ ही महिलाओं के पास देश की सेवा करने का अधिकार क्यों नहीं है, जो कि उनका संवैधानिक अधिकार है।
इसके बाद अनुपमा जोशी ने सैन्य बलों के अध्यक्ष यानी देश के राष्ट्रपति को पत्र लिखा। वहां से भी उन्हें निराशा मिली। जिसके बाद उन्होंने सूचना के अधिकार का इस्तेमाल करते हुए आरटीआई दाखिल की। जिसका जवाब मिला कि मिलिट्री में नियुक्तियों का मामला राष्ट्रीय महत्व का है और ये सूचना के अधिकार के दायरे में नहीं आता। अनुपमा कहती हैं कि इसके बाद अदालत का दरवाजा खटखटाने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा। उनके इस संघर्ष के दौरान बहुत सारी महिलाएं एयरफोर्स में आ चुकी थीं। उन्होंने उन महिलाओं को साथ लेने की कोशिश की लेकिन सिर्फ एक महिला स्क्वॉर्डर्न लीडर उनके साथ आईं। तब अनुपमा ने अदालत में अपील की कि लिंग के आधार पर नहीं बल्कि योग्यता के आधार पर महिलाओं को भी एयरफोर्स में स्थायी कमीशन दिया जाए। एयरफोर्स जैसी मज़बूत संस्था के साथ एक महिला का ये संघर्ष निश्चित तौर पर मुश्किलभरा था। तीन साल बाद वर्ष 2010 में दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला दिया कि महिलाओं को इंडियन एयरफोर्स में स्थायी कमीशन दिया जाएगा। दिल्ली हाईकोर्ट के इस ऐतिहासिक फैसले के बाद केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट गई। जहां सरकार का तर्क था कि सेना के पुरुष जवान किसी महिला अफसर से आदेश लेने को तैयार नहीं, इसलिए सेना में इनको स्थायी कमीशन नहीं दिया जा सकता। इस मामले में 17 फरवरी 2020 को सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया और कहा कि केंद्र सभी महिला अफसरों को स्थायी कमीशन दे। ये भी कहा कि कमांड पोजिशन में महिलाओं को तैनाती देने से रोका नहीं जा सकता। (टेड टॉक्स में अनुपमा जोशी की बातचीत के आधार पर)
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