आज राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के संघचालक डॉ. मोहन भागवत की उपस्थिति में राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत द्वारा प्रकाशित पुस्तक ’भारत वैभव’ का विमोचन किया गया। इस अवसर पर डॉ. सत्यपाल सिंह, माननीय संसद सदस्य, केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान, प्रो गोविंद प्रसाद शर्मा और युवराज मलिक भी उपस्थित थे।
राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत द्वारा प्रकाशित पुस्तक ’भारत वैभव’ में भारत की गौरवपूर्ण सभ्यता एवं संस्कृति के विभिन्न आयामों को दर्शाने के अतिरिक्त वैश्विक विद्वानों द्वारा भारतीय ज्ञान परंपरा की प्रशस्ति में व्यक्त किये गए उद्गारों को समावेषित किया गया है।
पुस्तक का विमोचन करते हुए, डॉ मोहन भागवत, सर संघचालक, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने कहा कि स्वगौरव के अलावा कोई गौरव नहीं है और भारत का गौरव है उसकी ज्ञान परम्परा।
भारत का जन्म पूरे विश्व में अपनी ज्ञान परम्परा को बांटने के लिए ही हुआ है और आत्मा से लेकर अनात्मातक का ज्ञान इस पुस्तक में विस्तार से प्रस्तुत किया गया है। गागर में सागर बांधने वाली इस पुस्तक का अनुवाद राष्ट्र की सभी भाषाओं में किया जाना चाहिए और व्यापक प्रचार होना चाहिए।
केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने कहा कि किसी भी राष्ट्र का मनोबल और आत्मविश्वास अपनी संस्कृति के सहारे से ही जागृत हुआ है। भारतीय संस्कृति आज भी सनातन संस्कृति है और यह हमारा सामूहिक दायित्व है की हम इसे जानने की पूर्ण कोशिश करें।
डॉ सत्यपाल सिंह ने पुस्तक की प्रशंसा में कहा कि इस पुस्तक का मूल तत्व एक भारत श्रेष्ठ भारत है और देश को जिस परम वैभव को छूने का निरंतर प्रयास करना चाहिए उसके लिए यह पुस्तक पहला कदम है।
भारत अपनी ज्ञान और विज्ञान परम्परा के लिए विश्व गुरु माना जाता रहा है और इसी गौरवशाली परम्परा से आने वाली पीढ़ियों को परिचित करने की आवश्यकता है।
प्रो गोविन्द प्रसाद शर्मा, अध्यक्ष राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत ने विमोचन समारोह में अतिथियों का स्वागत करते हुए न्यास के बहुसंख्यक पुस्तक प्रोन्नयन सम्बन्धी गतिविधिओं के बारे में संक्षेप में जानकारी दी। पुस्तक के बारे में उन्होंने कहा कि भारत की ज्ञान परम्परा विश्व में सब से प्राचीन है और यह पुस्तक इन्ही भारतीय मूल्यों को विश्व में पुनः स्थापित करने में अहम भूमिका निभाएगी।
पुस्तक के लेखक एवं संपादक ओम प्रकाश पांडेय ने “भारत वैभव” का वर्णन करते हुए कहा कि संस्कृति राष्ट्ररुपी देह की आत्मा होती है और भारत की संस्कृति अपनी गौरवशाली परम्पराओं के साथ आज भी जीवंत है। यह पुस्तक नई पीढ़ियों में जो की भारतीय ज्ञान परम्परा से वंचित हैं, उनमें राष्ट्रीय चेतना को जागृत करने का प्रयास है। अंत में उन्होंने पुस्तक के दर्शनीय प्रकाशन के लिए न्यास का धन्यवाद किया।
युवराज मलिक, निदेशक, राष्ट्रीय पुस्तक न्यास ने अतिथिओं का आभार प्रकट करते हुए आश्वासन दिया की आने वाले समय में इस प्रकार का साहित्य और मिलेगा व ज्ञान आधारित समाज के निर्माण में न्यास हमेशा अग्रणी रहेगा।
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