जैविक खेती से अपेक्षाकृत लाभ तो कम है लेकिन धीरे धीरे इसे फायदे का सौदा के रूप में स्वीकार किया जाने लगा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी किसानों को रसायन और पेस्टीसाइड के कम से कम प्रयोग की सलाह दे चुके हैं। उन्होंने कहा कि हमें अपनी धरती मां को बीमार बनाने का हक़ नहीं है।
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड में ऑर्गेनिक फार्मिंग यानी जैविक खेती में इजाफा देखा जा रहा है। अब लोग अपने खान पान में बदलाव कर ऑर्गेनिक प्रोडक्ट को तवज्जो दे रहे हैं। यही वजह है कि कोरोनाकाल के बाद ऑर्गेनिक सेक्टर में तेजी से उछाल आया है। कोरोनाकाल में गांव लौटे प्रवासियों ने ऑर्गेनिक खेती में रुचि दिखाई है। जिसके चलते अब उत्तराखंड में 34 फीसदी खेती ऑर्गेनिक हो रही है। ये रिवर्स पलायन में तो मदद कर ही रहा इसके साथ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उत्तराखंड के पारंपरिक जैविक उत्पादों को लोग खूब पसंद कर रहे हैं जैविक खेती से होने वाले फायदे और नुकसान एक बार फिर से चर्चा में है।
रासायनिक छिड़काव और पेस्टीसाइड से भले ही किसानों को अधिक पैदावार मिल जाती है, लेकिन अक्सर इसमें लाभ से कहीं अधिक नुकसान ही रहा है। एक तरफ जहां इससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति ख़त्म होती जा रही है वहीं दूसरी ओर यह भूजल में मिलकर प्राकृतिक जल स्रोतों को दूषित कर रहा है। इन दोनों सूरतों में खामियाज़ा इंसानी ज़िंदगी को गंभीर बीमारी के रूप में चुकाना पड़ रहा है।
दूसरी ओर जैविक खेती से अपेक्षाकृत लाभ तो कम है लेकिन धीरे धीरे इसे फायदे का सौदा के रूप में स्वीकार किया जाने लगा है। प्रधानमंत्री भी किसानों को रसायन और पेस्टीसाइड के कम से कम प्रयोग की सलाह दे चुके हैं। अपने संबोधन में प्रधानमंत्री ने अपील की थी कि हमें धरती मां को बीमार बनाने का हक़ नहीं है। प्रधानमंत्री के संबोधन से साफ़ है कि सरकार इस दिशा में किसी ठोस परिणाम के लिए गंभीर है। इससे पहले अपने पूर्ण बजट में वित्त मंत्री भी ज़ीरो बजट खेती का एलान कर जैविक खेती को बढ़ावा देने के सरकार मंशा को साफ़ कर चुकी हैं।
वर्त्तमान में केंद्र सरकार जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए अनेकों प्रयास कर रही है। जिसमें परंपरागत कृषि विकास योजना शामिल है। इसके तहत सरकार किसानों की आय बढ़ाने पर विशेष ज़ोर दिया जा रहा है। इस योजना के तहत तीन साल के लिए प्रति हेक्टेयर 50 हजार रुपये की मदद दी जाएगी। देश के किसानों का ध्यान जैविक खेती की तरफ आकर्षित करने के लिए 2004-05 में राष्ट्रीय परियोजना की शुरुआत की गई थी।
नेशनल सेंटर ऑफ आर्गेनिक फार्मिंग के मुताबिक, 2003-04 में भारत में जैविक खेती सिर्फ 76,000 हेक्टेयर में हो रही थी जो 2009-10 में बढ़कर 10,85,648 हेक्टेयर हो गई। केंद्रीय कृषि मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार अभी देश में कुल 27.70 लाख हेक्टेयर भूमि पर जैविक खेती की जा रही है। पिछले कुछ सालों में उत्तराखंड ने ऑर्गेनिक सेक्टर में अपनी विश्व पटल पर पहचान बनाई है। उत्तराखंड की ऑर्गेनिक कृषि और यहां के ऑर्गेनिक प्रोडक्ट की केवल देश में नहीं, बल्कि विदेशों में भी इसकी लोकप्रियता बड़ी है।
उत्तराखंड के मिलेट्स देश में अन्य जगहों पर पाए जाने वाले मिलेट्स से बेहद खास माने जाते हैं, क्योंकि इनमें हाय न्यूट्रिशन प्रॉपर्टीज पाई गई है। यह सब उत्तराखंड में मौजूद हिमालय इकोलॉजी की वजह से यहां पर मौजूद रिच डाइवर्सिटी और हाई मिनरल्स युक्त भूमि को माना जाता है। संजीवनी बूटी वाला देवभूमि उत्तराखंड अपने हिमालय उत्पादों के लिए आदिकाल से ही बेहद खास माना जाता है, लेकिन अब उत्तराखंड ने इसे विश्व पटल पर लाने का काम किया है। एक करोड़ किसानों को अगले तीन सालों में जैविक खेती अपनाने के लिए 10 हजार बायो इनपुट रिसोर्स सेंटर बनाने का ऐलान किया गया। वहीं किसान क्रेडिट कार्ड की लिमिट बढ़ाने पर भी कुछ प्रावधान किया गया है।
इसके अलावा प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि की धनराशि 8000 रुपए करने के लिए बजट का प्रावधान किया गया। यही नहीं अंतरिम बजट में की गई घोषणाओं को पूरा करने के लिए भी एक बड़ा हिस्सा रखा गया है। जैसे कृषि-जलवायु क्षेत्रों में नैनो-डीएपी के इस्तेमाल के विस्तार का ऐलान किया गया। डेयरी विकास के लिए व्यापक कार्यक्रम बनाने के लिए भी बजट में प्रावधान किया गया है। घोषणाओं से उत्तराखंड में खेती-किसानी के दिन बहुरने की उम्मीद जगी है।
कृषि के लिए आधारभूत ढांचे की कमी झेल रहे इस राज्य में अब गोदाम, कोल्ड स्टोरेज, कलेक्शन सेंटर के साथ ही वेल्यू एडीशन को प्रोसेसिंग यूनिट, शर्टिग-ग्रेडिंग यूनिट लगने से किसानों को लाभ मिलेगा तो उन्हें कृषि उत्पादों के बेहतर दाम भी मिलेंगे। इसके साथ ही मंडुवा, झंगोरा, राजमा जैसे अन्य जैविक उत्पादों की ब्रांडिंग बड़े स्तर पर हो सकेगी तो हर्बल और संगध खेती को भी बढ़ावा मिलेगा। यही नहीं, गंगा के उद्गम स्थल गोमुख से लेकर हरिद्वार तक गंगा किनारे हर्बल कॉरीडोर विकसित होने से भी नए आयाम मिलने की उम्मीद परवान चढे़गी।
यह लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं और वह दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं।
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