जन्मदिन विशेष: गढ़वाल का भगतसिंह श्री देव सुमन

जन्मदिन विशेष: गढ़वाल का भगतसिंह श्री देव सुमन

जब पूरा भारत ब्रिटिश सरकार के शासन से मुक्त होने की लड़ाई लड़ रहा था, उस सुमन इस बात की वकालत कर रहे थे कि टिहरी रियासत को गढ़वाल के राजा के शासन से मुक्त किया जाए । वह गांधी के बहुत बड़े प्रशंसक थे और उन्ही को आदर्श मान श्री देव सुमन ने टिहरी की स्वतंत्रता के लिए अहिंसा के रास्ते का इस्तेमाल किया ।

स्वाधीनता की लड़ाई लड़ना इतना आसान कहां था। ये वो संग्राम था जिसमे न जाने कितने लोगो ने  क्या क्या खोया है। आजादी शब्द जितना छोटा नजर आता है उसका मर्म उतना ही ज्यादा बड़ा है। आजादी को पाने वाले वो सैनानी बड़े ही मतवाले थे जिन्हें न मौत का भय था न हार का डर। जो चाहते थे बस आजादी और इन्ही मतवालों में शामिल है ” टिहरी” का भगत सिंह यानी श्री देव सुमन।

बात उस दौर की है जब देश अपनी स्वाधीनता की लड़ाई लड़ रहा था। जहां एक तरफ देश में ब्रिटिशों की हुकूमत थी। वही दूसरी तरफ उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल में राजतंत्र के खिलाफ चिंगारी धीरे धीरे लौ बनती जा रही थी। इस चिंगारी को जलाने वाले थे एक युवा जिन्हें श्री देव सुमन के नाम से जाना जाता है।

25 मई 1916 में टिहरी गढ़वाल के चंबा शहर के पास जौल गांव पट्टी बामुंड में जन्मे श्री देव सुमन का नाम एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में उजागर हुआ था ।

जब पूरा भारत ब्रिटिश सरकार के शासन से मुक्त होने की लड़ाई लड़ रहा था, सुमन इस बात की वकालत कर रहे थे कि टिहरी रियासत को गढ़वाल के राजा के शासन से मुक्त किया जाए । वह गांधी के बहुत बड़े प्रशंसक थे और उन्ही को आदर्श मान श्री देव सुमन ने टिहरी की स्वतंत्रता के लिए अहिंसा के रास्ते का इस्तेमाल किया ।

जनता पर राज्य व अंग्रेजो द्वारा लगाये गये प्रतिबंधो से हमेशा आहत रहे, और उसी विषय में लगातार लोगो को जागरूक करने की कोशिश में लगे रहे, उनकव प्रभावी व्यक्तित्व को देख कर उन्हें 1939 में “टिहरी राज्य प्रजा मंडल” जो की राज्य सरकार अत्याचारों के विरुद्ध एक संस्था थी उसका अध्यक्ष बना दिया गया गया। अपने प्रभावी कार्य और कुशल नेतृत्व के कारण वह लोगो के बीच लोकप्रिय होने लगे थे। इसी डर से की जनता राज्य के खिलाफ आन्दोलन न कर दे, उन्हें आधिकारियों द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया और राज्य से निष्कासित कर दिया गया । उनके टिहरी आने पर पाबन्दी भी लगा दी गयी।

श्री देव सुमन ने 1942 में भारत छोड़ो आन्दोलन में हिस्सा लेकर टिहरी के अंदर कूच कर लिया, जहाँ एक बार फिर उनकी गिरफ़्तारी हुई और 209 दिनों के लिए हिरासत में ले लिया गया, जहाँ उन पर झूठे मुक़दमे चलाये गये और इन्ही मुकदमो के चलते उन्हें, 200 रूपए के जुर्माने के साथ 2 साल की सजा सुना दी गयी।

जेल के अंदर उनके साथ बहुत ही अमानवीय व्यवहार किया जाता। उनके खाने में कंकड़ पत्थर मिला दिए जाते, भूसे भरी रोटी दी जाती। इतनी यातनाएं झेलने के बाद और बार-बार कहने पर भी उनकी टिहरी के राजा के साथ सुनवाई न होने के कारण उन्होंने जेल में ही आमरण अनशन शुरू कर दिया। इस बात से बोखलाए शासन ने बहुत उनका अनशन तोड़ने की बहुत कोशिशें की लेकिन नकामयाब रहे।

उधर शासन को जनता का भी विद्रोह करने का डर था, इसलिए जेल के बहार खबर फैला दी गयी की सुमन ने अनशन तोड़ दिया है। और दूसरी तरफ 84 दिन के कठिन उपवास के बाद आख़िरकार 25 जुलाई 1944 को श्री देव सुमन ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। मरणोपरांत भी शासन ने उनको यातना देना कम नही किया। उनके शव को बिना जलाए रात के अँधेरे में एक कम्बल में लपेट कर भागीरथी नदी में फेंक दिया गया।

मात्र 29 साल में दुनिया को अलविदा कहने वाले श्री देव सुमन का बलिदान व्यर्थ नही गया। जब उनके शहादत की खबर टिहरी की जनता तक पहुंची तो उनमे एक आक्रोश पैदा हो गया, राज्य के खिलाफ आन्दोलन छिड गया। जिसका असर यह हुआ की 1 अगस्त 1949 लोगों को इस प्रकार के कुशासन को खत्म कर स्वयं को आजाद करने में सफल हुए। तब से लेकर आजतक उनकी पुण्यतिथि 25 जुलाई को प्रतिवर्ष “सुमन दिवस”के रूप में मनाया जाती  है।

श्री देव सुमन ने यह साबित कर दिया कि बड़े कामो के करने के लिए उम्र का बड़ा होना जरूरी नही। उन्होंने छोटी सी उम्र में ही इतनी बड़ी अलख जलाई की उनका नाम आज भी उत्तराखंड के इतिहास में दर्ज है।

Hill Mail
ADMINISTRATOR
PROFILE

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked with *

विज्ञापन

[fvplayer id=”10″]

Latest Posts

Follow Us

Previous Next
Close
Test Caption
Test Description goes like this