दयारा बुग्याल में खेली गई दूध, मट्ठा और मक्खन की होली

दयारा बुग्याल में खेली गई दूध, मट्ठा और मक्खन की होली

उत्तरकाशी जिले में स्थित दयारा बुग्याल में पौराणिक और धार्मिक बटर फेस्टिवल पर्यटकों की उपस्थिति में हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। इस दौरान भगवान सोमेश्वर देवता की डोली की पूजा अर्चना के साथ ग्रामीणों ने प्रकृति के प्रति आभार जताते हुए दूध, मट्ठा और मक्खन की होली खेली। इसके साथ ही ग्रामीणों ने क्षेत्र की सुख, समृद्धि और खुशहाली की कामना की।

लोकेंद्र सिंह बिष्ट, उत्तरकाशी

उत्तराखंड में पौराणिक, धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर से जुड़े तीज-त्योहारों की लंबी सूची है। यहां गढ़वाल और कुमाऊं में हर माह कोई न कोई त्यौहार मनाया जाता है। लेकिन पशुपालन और प्रकृति के अनूठे मिलन से जुड़े उत्तरकाशी के दयारा बुग्याल का ‘बटर फेस्टिवल’ दुनिया के अनोखे और पौराणिक त्यौहारों में अलग स्थान रखते हैं। आज दयारा बुग्याल त्यौहार धूमधाम से मनाया गया। दयारा बुग्याल में पहुंचे स्थानीय लोगों और देश दुनिया से जुटे पर्यटकों ने जमकर दूध, मक्खन और मट्ठा की होली खेली। साथ ही श्रीकृष्ण और राधा का शानदार नृत्य भी बटर फेस्टिवल में आकर्षण का केंद्र रहा।

बटर फेस्टिवल पर देश विदेश से पहुंचे पर्यटकों ने अनोखे पर्व पर एक दूसरे पर दूध, मक्खन और मट्ठा लगाते हुए जमकर होली खेली। भटवाड़ी ब्लॉक के पंचगई यानी रैथल, क्यार्क, बन्दरणी, नटिन और भटवाडी के ग्रामीणों ने 11 हजार फीट पर 28 वर्ग किमी क्षेत्र में फैले दयारा बुग्याल में बटर फेस्टिवल धूमधाम से मनाया। दयारा बुग्याल 28 वर्ग किलोमीटर में फैला है और स्कीइंग के लिए अंतरराष्ट्रीय मानकों को भी पूरा करता है। लेकिन आज भी दयारा स्कीइंग के लिए विकसित होने की बाट जोह रहा है।

डांगरी पर देवता ने नृत्य कर दिया आशीर्वाद

दयारा बुग्याल में आयोजित बटर फेस्टिवल के मौके पर पंचगई पट्टी के ईष्ट देवता सोमेश्वर ने डांगरी यानी लोहे के परसे पर नृत्य कर ग्रामीणों को सुख, समृद्धि और खुशहाली का आशीर्वाद दिया। करीब 50 मीटर तक देवता का पसुवा 100 बार लोहे के नंगे परसे पर चले और क्षेत्र की खुशहाली का आशीर्वाद दिया। इससे पहले देवता ने दयारा बुग्याल उत्सव स्थल पर जुटे ग्रामीणों और पर्यटकों को सुरक्षा के घेरे में लेते हुए सभी भक्तों को आशीर्वाद दिया। गौरतलब है कि सोमेश्वर देवता इंद्र देव को प्रसन्न करने से जुड़ा है। देवता से सूखा पड़ने पर बारिश और बारिश रोकने की भी मन्नतें ग्रामीण मांगते हैं। दयारा में भी सोमेश्वर देवता के जाने और वापस लौटने तक बारिश न होने पर ग्रामीणों ने देवता का आभार जताया है।

बटर फेस्टिवल दुनिया के तीज त्यौहारों में अनोखा

उत्तरकाशी के रैथल गांव से लगे दयारा बुग्याल में करीब 11 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित 28 वर्ग किमी क्षेत्र में फैले दयारा बुग्याल में मनाए जाने वाला बटर फेस्टिवल इस क्षेत्र में खुशी और सांस्कृतिक उत्साह की एक अलग झलक है। इस पर्व को पहले अंडूडी उत्सव के नाम से जाना जाता था, लेकिन अब इसको स्थानीय लोगों ने ‘बटर फेस्टिवल’ नाम दिया है। दयारा पर्यटन उत्सव समिति के बैनरतले यह फेस्टिवल पिछले 20 सालों से बड़े धूमधाम से मनाया जा रहा है।

इस साल भी दयारा बुग्याल की मखमली घास में इस पर्व का आयोजन ग्रामीणों ने पारंपरिक रूप से दूध, मक्खन, मट्ठा की होली खेलते हुए किया। साथ ही स्थानीय देवी देवताओं और दयारा गई सोमेश्वर देवता की डोली की पूजा अर्चना कर क्षेत्र की सुख, समृद्धि और खुशहाली की कामना की। प्रकृति का आभार जताने वाले यह उत्सव ग्रामीणों और प्रकृति के बीच के मधुर संबंध का भी प्रतीक है। यह त्यौहार दयारा बुग्याल के खुले घास के मैदानों में चरते समय मवेशियों को बुरी ताकतों से बचाने के लिए भगवान कृष्ण के प्रति आभार व्यक्त करने का एक तरीका है तथा समृद्ध पशुपालन की कामना का लोकपर्व है। इस पर्व पर दयारा पर्यटन उत्सव समिति रैथल के साथ नटीण, भटवाड़ी, क्यार्क, बंद्राणी पांच गांव के ग्रामीण भी शमिल हुए।

इस मौके पर समिति के अध्यक्ष मनोज राणा ने बताया कि अंडूडी यानी बटर फेस्टिवल देश और दुनिया में प्रकृति और पशुपालन के प्रति आभार जताने वाला अनोखा त्योहार है। इस दिन ग्रामीण भगवान श्रीकृष्ण का प्रकृति और पशुपालन की समृद्धि की कामना करते हैं।

ग्रामीण इसलिए मनाते बटर फेस्टिवल

रैथल गांव के ग्रामीण हर वर्ष अपने मवेशियों के साथ गर्मियों की दस्तक के साथ ही रैथल गांव से 7 किमी की पैदल दूरी पर स्थित दयारा बुग्याल स्थित छानियों में चले जाते हैं। बुग्याल में कई किमी तक फैले बुग्याल मवेशियों के आदर्श चारागाह होते हैं और यहां उगने वाले औषधीय गुणों से भरपूर पौधों से दुधारू मवेशियों के दुग्ध उत्पादन में गांव के मुकाबले अप्रत्याशित वृद्धि होती है। मानसून बीतने के साथ ही जब बुग्याल में सर्दियां दस्तक देने लगती है तो ग्रामीण अपने मवेशियों के साथ वापस गांव लौटने की तैयारियों में जुट जाते हैं लेकिन इससे पूर्व ग्रामीण दयारा बुग्याल में मवेशियों और उन्हें सुरक्षित रखने के लिए, दुधारू पशुओं के दूध में वृद्धि के लिए प्रकृति व स्थानीय देवताओं का आभार जताना नहीं भूलते। प्रकृति का आभार जताने के लिए ही ग्रामीण सदियों से इस परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं।

हर साल मनाया जाता अढूंडी पर्व

दयारा पर्यटन उत्सव समिति हर वर्ष भाद्रपद माह की संक्राति यानि अगस्त महीने के मध्य में दयारा बुग्याल में अढूंडी उत्सव का भव्य आयोजन करती आ रही है। पूरी दुनिया में मक्खन मट्ठा दूध की यह अनोखी व अनूठी होली का आयोजन सिर्फ दयारा बुग्याल में ही होता है। दयारा पर्यटन उत्सव समिति बिगत दो दशकों से दयारा बुग्याल में इसे भव्य रूप से ग्रामीणों के साथ मिलकर मना रही है जिस कारण इस अढूडी उत्सव को अपने अनाखे रूप के कारण बटर फेस्टिवल का नाम मिला तो देश विदेश से हजारों पर्यटक भी हर साल इस अनोखे उत्सव में हिस्सा लेने के लिए रैथल व दयारा बुग्याल पहुंचते हैं।

इस दौरान बड़ी संख्या में टिहरी, उत्तरकाशी, देहरादून आदि जिलों से पहुंचे देशी विदेशी पर्यटकों ने भी बटर फेस्टिवल का लुत्फ उठाया। प्रकृति के आभार जताने के इस पर्व के पीछे धार्मिक मान्यता है कि बुग्यालों में ग्रीष्मकालीन में ग्रामीण अपने पशुओं को रखते हैं। इस दौरान बुग्यालों में रहने वाले पशुधन की समृद्धि होती है। ग्रामीण पशुधन की समृद्धि पर यह पर्व मनाते हैं। आज संक्रांति के पर्व पर दयारा बुग्याल में बटर फेस्टिवल में सोमेश्वर देवता की डोली की मौजूदगी में पर्व मनाया गया। इस दौरान गंगोत्री विधायक सुरेश चौहान ने शामिल होकर ग्रामीणों को पर्व की शुभकामनाएं दी। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी दयारा बुग्याल के विकास को लेकर काफी चिंतित हैं। दयारा तक रोप-वे से लेकर आधारभूत सुविधाएं जुटाने का कार्य सरकार कर रही है।

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