भारत के कृषकों को वैज्ञानिकों द्वारा विकसित विभिन्न उत्पादों एवं पेटेन्ट के माध्यम से लाभ पहुंचाया जा सकता है जो कि प्रधानमंत्री के विकसित भारत की संकल्पना को साकार करने में महत्वपूर्ण होगा।
एग्रीविजन द्वारा जुलाई 20-21, 2024 को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के एन.ए.एस.सी., नई दिल्ली में आयोजित 8वें राष्ट्रीय सम्मेलन एग्रीविजन-2024 के द्वितीय सत्र ‘विकसित भारत में कृषि का योगदान विजन-2047’ विषय पर मुख्य अतिथि के रूप में विश्वविद्यालय के कुलपति डा. मनमोहन सिंह चौहान ने कान्कलेव में प्रतिभाग कर रहे 550 से अधिक भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद एवं कृषि विश्वविद्यालयों के वैज्ञानिकों एवं विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कुलपति ने 3-पी (प्रोडक्ट, पेटेन्ट एवं पब्लिकेशन) की अवधारणा जोर दिया और उन्होंने कहा कि भारत के कृषकों को वैज्ञानिकों द्वारा विकसित विभिन्न उत्पादों एवं पेटेन्ट के माध्यम से लाभ पहुंचाया जा सकता है जो कि प्रधानमंत्री के वर्ष 2024 तक विकसित भारत की संकल्पना को साकार करने में महत्वपूर्ण होगा।
उन्होंने पन्तनगर विश्वविद्यालय द्वारा विभिन्न क्षेत्रों तथा कृषि, पशुपालन, मत्स्य, अभियांत्रिकी एवं सामुदायिक विज्ञान में किये गये महत्वपूर्ण योगदानों के बारे में बताया। उनके द्वारा पूर्व में निदेशक, राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान, करनाल के रूप में किये गये देशी विधि से क्लोनिंग के माध्यम से भारत में प्रथम क्लोन्ड भैस के विकास के बारे में भी प्रकाश डाला, जिसका उद्देश्य विद्यार्थियों को शोध के प्रति रूझान और देश के लिए कुछ सार्थक योगदान करने हेतु प्रेरित करना था।
फंडामेंटल रिसर्च के ऊपर भी रूझान हेतु वैज्ञानिकों एवं विद्यार्थियों का आह्वान किया। प्रोडक्ट से जहां सीधे किसान एवं आम व्यक्ति को लाभ होता है वहीं जो टेक्नॉलजी पेटेन्ट हुई है उससे उद्यमिता विकास के नए अवसर प्राप्त होते हैं। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के अधिष्ठाता छात्र कल्याण डा. बृजेश सिंह एवं प्राध्यापक कीट विज्ञान डा. रवि मोहन श्रीवास्तव भी उपस्थित थे। एग्रीविजन कृषि में अध्ययरत विद्यार्थियों एवं भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के लिए समर्पित संगठन है।
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