जरूरतमंदों को व्यक्तिगत रूप से मदद करने और प्रतिभाओं को प्रोत्साहन देने के अतिरिक्त हंस फाउंडेशन ने उत्तराखंड में अनेक सामाजिक कार्य किए हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल, कृषि, वन, पर्यावरण संतुलन, महिला सशक्तीकरण तथा विकलांग कार्यक्रम चलाने के लिए फाउंडेशन ने उत्तराखंड सरकार के साथ समझौता पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं।
उत्तराखंड का शायद ही कोई ऐसा कोना होगा, जहां तक हंस फाउंडेशन की संस्थापक एवं संरक्षक और आध्यात्मिक गुरुमाता माताश्री मंगला के परोपकार की छाया नहीं पहुंची होगी। मंगला माता और भोलेजी महाराज के संरक्षण में ही उत्तराखंड का सबसे बड़ा समाजसेवी संगठन हंस फाउंडेशन चल रहा है।
हाल ही में इस फाउंडेशन ने अपनी स्थापना के दस वर्ष पूरे किए हैं। हंस फाउंडेशन उत्तराखंड में जरूरतमंदों की सेवा के साथ ही शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में कार्य कर रहा है। राज्य सरकार ने उन्हें उत्तराखंड रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया है। हंस फाउंडेशन सतपुली में एक सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल चला रहा है। हंस फाउंडेशन उत्तराखंड में आज एक ऐसी संस्था के रूप में जानी जाती है, जो हर समय दीन-दुखियों की सेवा और प्रतिभाओं के प्रोत्साहित करने के कार्य में आगे रहती है। कोई भी जरूरतमंद इस संस्था से संपर्क कर मदद ले सकता है।
हंस फाउंडेशन ने 2020 तक उत्तराखंड में 500 मॉडल स्कूल खोलने और 5590 विद्यालयों के मिड-डे मील के लिए गैस कनेक्शन उपलब्ध कराने का भी संकल्प लिया है। संस्थान ने राज्य में वकीलों और पत्रकारों के कल्याण के लिए 50-50 लाख के कोष की स्थापना भी की है।
माता मंगला जी का जन्म 16 अक्टूबर 1956 को टिहरी जिले में सरजूला पट्टी के पांगर गांव में हुआ था। उनका परिवार एक धर्मनिष्ठ परिवार था और माता मंगला के पिता मातवर सिंह सजवाण भारतीय सेना में थे। उन्हें शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया था। उनका विवाह भोले जी महाराज से हुआ जो सुप्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु हंस महाराज और माता राजराजेश्वरी देवी के दूसरे पुत्र हैं।
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