राइफलमैन गबर सिंह नेगी उस दल का हिस्सा थे जिसे 10 मार्च, 1915 को जर्मनी के मुख्य मोर्चे पर हमले का जिम्मा दिया गया था। वह हर बाधा को पार कर दुश्मन के ट्रेंच में घुसने वाले पहले व्यक्ति थे, जिस कारण दुश्मन आत्मसमर्पण के लिए मजबूर हो गया। इस कार्रवाई के दौरान गबर सिंह वीरगति को प्राप्त हो गए।
उत्तराखंड को दो नामों से जाना जाता है, देवभूमि और वीरभूमि। इस मिट्टी में ऐसे अनेक वीरों ने जन्म लिया है, जिन्होंने अपने अदम्य साहस और वीरता से कई पीढ़ियों को प्रेरित किया है। 21 अप्रैल को इस वीरभूमि के एक ऐसे ही सपूत की 125वीं जयंती है। विक्टोरिया क्रॉस राइफलमैन गबर सिंह नेगी।
21 अप्रैल, 1895 को उत्तराखंड के चंबा में जन्में गबर सिंह नेगी साल 1913 में वह गढ़वाल राइफल्स में भर्ती हुए थे। उसी दौरान पहला विश्व युद्ध छिड़ गया, जिसमें गढ़वाल राइफल्स के सैनिकों को फ्रांस भेजा गया। …वह उस समय की 39 गढ़वाल राइफल्स में शामिल थे। इस रेजीमेंट ने मार्च, 1915 में न्यू शैपल के युद्ध में हिस्सा लिया। उस समय उनकी आयु मात्र 21 साल थी। 10 मार्च, 1915 को उनकी सैन्य टुकड़ी ने जर्मन सैनिकों के एक ठिकाने पर हमला किया। गबर सिंह नेगी अपनी टुकड़ी के साथ मुख्य खंदक में प्रवेश कर गए। उन्होंने दुश्मन को सरेंडर करने पर मजबूर कर दिया। अंत में लड़ते हुए वह वीरगति को प्राप्त हुए। बहादुरी के इस असाधारण कारनामे के लिए उनको विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित किया गया था।
अमर शहीद गबर सिंह के प्रशस्तिपत्र में लिखा है:
10 मार्च, 1915 को न्यू शैपल में सबसे विशिष्ट बहादुरी के लिए। राइफलमैन गबर सिंह नेगी उस दल का हिस्सा थे जिसे जर्मनी के मुख्य मोर्चे पर हमले का जिम्मा दिया गया था। वह हर बाधा को पार कर दुश्मन के ट्रेंच में घुसने वाले पहले व्यक्ति थे, जिस कारण दुश्मन पीछे हटकर आत्मसमर्पण के लिए मजबूर हो गया। इस कार्रवाई के दौरान गबर सिंह वीरगति को प्राप्त हो गए।
1971 में गढ़वाल रेजीमेंट ने चम्बा में उनका एक स्मारक बनाया। उनके गृह नगर चंबा में प्रतिवर्ष 20 या 21 अप्रैल (हिंदू पंचांग के आधार पर) को आयोजित होने वाले गबर सिंह नेगी मेले के जरिये उन्हें याद किया जाता है।
पीएम मोदी ने न्यू शैपल में दी थी श्रद्धांजलि
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2015 न्यू शैपल में प्रथम विश्व युद्ध स्मारक पर श्रद्धांजलि अर्पित की थी। यह स्मारक प्रथम विश्व युद्ध के दौरान फ्रांस और बेल्जियम में हुई लड़ाइयों में प्राण न्यौछावर करने वाले करीब 4700 भारतीय सैनिकों के सम्मान में बनाया गया है।
प्रधानमंत्री ने स्मारक पर आगंतुक पुस्तिका में लिखा, ‘विश्वयुद्ध के दौरान विदेशी धरती पर लड़ने वाले हमारे सैनिकों ने अपने समर्पण, वफादारी, साहस और बलिदान के बल पर दुनिया भर से सराहना प्राप्त की। मैं उन्हें सलाम करता हूं।’ उन्होंने न्यू शैपल में स्मारक के बाहर एकत्र भारतीय मूल के युवाओं से भी मुलाकात की थी। उन्होंने युवाओं से अनुरोध किया था कि वे उनके साथ ‘शहीदों अमर रहो’ का नारा लगाएं।
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