नई शिक्षा नीति में कई घोषणाएं की गई हैं। विज्ञान सहित सभी विषयों की पाठ्यसामग्री उच्चतर गुणवत्ता के साथ स्थानीय बोलियों/घरेलू भाषाओं/मातृभाषा में उपलब्ध कराना एक महत्वपूर्ण कदम होगा। विस्तार से पढ़िए प्रो. मंजुला राना का विश्लेषण….
- प्रोफेसर मंजुला राना
‘शिक्षा’ सांस्कृतिक परिवर्तन, सामाजिक चेतना और मानसिकता के निर्माण का सशक्त माध्यम है। युवा भारत की उजली तस्वीर में आज साक्षरता दर, शिक्षा-संस्थानों की संख्या और नामांकित छात्रों का ग्राफ अपने उच्चतम् स्तर पर है किन्तु विद्यार्थियों की गुणवत्ता और ज्ञान का मूल्यांकन करें तो स्थिति चिंताजनक है। प्राइमरी, माध्यमिक तथा उच्च शिक्षा में अध्ययन-अध्यापन में व्याप्त असंतोष, विद्यार्थियों में जरूरी कुशलता का अभाव इन सबका दोष हमारी पुरानी शिक्षा नीति को जाता है, जहां एक रटी-रटाई शैली में बुद्धू बक्से की तरह विद्यार्थी के मस्तिष्क में उस शिक्षा को भरा जाता रहा है, जिसका उसके भविष्य निर्माण और रुचि से कोई संबंध नहीं रहा है।
अब 34 वर्षों के बाद 29 जुलाई 2020 को इक्कीसवीं सदी की आवश्यकताओं को पूरा करते हुए युवा भारत के सपनों के अनुकूल ऐसी शिक्षा-नीति का निर्माण किया गया है। वैश्विक ज्ञान के पावर हाउस की तरह भारतीय ज्ञान-परंपरा पर आधारित किंतु समूचे विश्व ज्ञान कोश को समेटती हुई यह शिक्षा-नीति विश्व मानव बनाने की संपूर्ण संरचनात्मक एवं प्रक्रियात्मक प्रणालियों का अनुपालन करती है।
नीतिकारों ने बड़ी संजीदगी से पर्याप्त रायशुमारी के साथ, जिसमें ग्राम पंचायत स्तर से लेकर शीर्ष तक के समस्त अंग-उपांगों को सम्मिलित किया गया है, उनको प्रजातांत्रिक पद्धति से सार्वजनिक क्षेत्र के गवाक्षों को खोलकर यह दस्तावेज तैयार किया गया है। नई राष्ट्रीय शिक्षा-नीति भविष्य के भारतीय समाज को निर्मित करने का मजबूत खाका प्रस्तुत करती है। इसमें उन समस्याओं को प्राथमिक रूप से पहचाना गया है जिनसे शिक्षा के स्वास्थ्य और शैक्षिक उपलब्धियों का पतन हुआ है। यह नीति रचनात्मकता और रुचि पर केंद्रित होने के कारण विद्यार्थी के चहुंमुखी विकास का ताना-बाना बुन रही है, जिसमें अवसरों के साथ जिज्ञासा उत्पन्न करते हुए यह भविष्य निर्माण की गारंटी का वादा करती है।
नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति की सबसे प्रभावशाली बात यह है कि इसमें विद्यार्थी के शैशवकाल अर्थात् जिसे उसका जिज्ञासाकाल भी कहा जा सकता है उस पर विशेष ध्यान दिया गया है क्योंकि इसी काल में उसके मस्तिष्क का 85 प्रतिशत विकास भी होता है। किसी भी देश का विकास इस बात पर निर्भर करता है कि उसकी शिक्षा की गुणवत्ता का मानक क्या है तथा उसमें कौशल को कितना स्थान दिया गया है। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में बच्चे को रुचि के अनुरूप शिक्षा के चयन का अधिकार देना सबसे बड़ी उपलब्धि है।
5-3-3-4 का फॉर्मूला बच्चे के मानसिक विकास के अनुकूल बनाया गया है। पहले पांच साल 3-8 साल के बच्चों के लिए, उसके बाद तीन साल 8-11 साल के बच्चों के लिए, उसके बाद तीन साल 11-14 साल के बच्चों के लिए और स्कूल में अंत के चार साल 14-18 साल के बच्चों के लिए निर्धारित किए गए हैं। बच्चे के मस्तिष्क के उचित विकास और शारीरिक वृद्धि की दृष्टि से उपर्युक्त आकलन संपूर्ण बाल्यावस्था देखभाल एवं पोषण के अनुकूल तैयार किया गया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि पहली कक्षा में प्रवेश पाने वाले सभी बच्चे स्कूली शिक्षा के लिए अपनी संपूर्ण जिज्ञासाओं एवं रुचियों के अनुरूप तैयार हो चुके हैं।
यह भी ध्यातव्य है कि उस अवधि में उसे बहुत अधिक बस्ते के बोझ से मुक्त रखकर कौशल आधारित शिक्षा प्रदान करने पर बल दिया गया है। इसके लिए भारत की सांस्कृतिक और सामाजिक प्रथाओं के उन्नत् स्वरूप को सम्मिलित करके बाल्यावस्था और शिक्षा के विकास को समृद्ध करने का प्रयास किया गया है जैसे – अनुकरणीय कला, कहानियां, कविता, गीत, खेल, नाटक अन्य दृश्य एवं श्रव्य सामग्री आदि। शिक्षा का यह मॉडल माता-पिता, आंगनबाड़ी शिक्षिका के लिए भी मार्गदर्शक भूमिका का निर्वहन करेगा।
5 वर्ष से पूर्व प्रत्येक बच्चे के लिए ‘‘बालवाटिका’’ की परिकल्पना एक स्वागत योग्य योजना है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में बच्चे में बचपन से ही शिक्षा के प्रति रुचि पैदा की गई है तथा उसके सर्वांगीण विकास के लिए माता-पिता, शिक्षकों की अपनी-अपनी सशक्त भूमिका निर्धारित है। निश्चित रूप से इस सुदृढ़ संकल्पना के उपरान्त पूर्ण विकसित मस्तिष्क के साथ जब बच्चा अपनी रुचि के अनुरूप शिक्षा ग्रहण करेगा तो वह देश की उत्कृष्टता में अपना अभिन्न योगदान प्रदान कर सकेगा। इस संदर्भ में डॉ. कस्तूरी रंगन के विचार उल्लेखनीय हैं ‘‘अब छठी कक्षा से ही बच्चे को प्रोफेशनल और स्किल की शिक्षा दी जाएगी। स्थानीय स्तर पर इंटर्नशिप भी कराई जाएगी। व्यावसायिक शिक्षा और कौशल विकास पर जोर दिया जाएगा। नई शिक्षा नीति बेरोजगार तैयार नहीं करेगी। स्कूल से ही बच्चे को नौकरी के जरूरी प्रोफेशनल शिक्षा दी जाएगी।’’
समग्र विकास के ताने-बाने का क्रियान्वयन देश में अभूतपूर्व परिवर्तन लाने में सक्षम होगा। दसवीं कक्षा की बोर्ड परीक्षा समाप्त करना बच्चे को परीक्षा के भय से मुक्ति देने वाला कदम है ताकि वह अंकों की दौड़ में शामिल न होकर मुख्य दृष्टि ज्ञान के परीक्षण, स्वमूल्यांकन एवं प्रयोगात्मक कौशल के संवर्द्धन पर केन्द्रित रख सके तथा किसी भी प्रकार का अवसाद उसके मन मस्तिष्क में प्रवेश न कर सके।
नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति की अहम् उपलब्धि यह भी है कि पांचवीं कक्षा तक तथा जहां तक संभव हो सके आठवीं कक्षा तक बच्चे को मातृ भाषा में शिक्षा दिलाई जाएगी। सार्वजनिक और निजी दोनों तरह के स्कूल इसका अनुपालन करेंगे। घर की भाषा को स्कूली भाषा बनाने के इस उपक्रम से बच्चे शीघ्र एवं सरल पद्धति से शिक्षा को रुचिकर बनाकर पढे़ंगे तथा जब वह छठी कक्षा में आएगा तो मानसिक रूप से पहले से ज्यादा मुकाबला कर पाएंगे।
किसी आरोपित भाषा के भय से मुक्त होकर बच्चा अपनी ऊर्जा, अपनी बोली या भाषा में अध्ययन करके भाषा सीखने में नष्ट होने वाले समय और क्षमता को बचा सकेगा। इसके लिए विज्ञान सहित सभी विषयों की पाठ्यसामग्री उच्चतर गुणवत्ता के साथ स्थानीय बोलियों/घरेलू भाषाओं/मातृभाषा में उपलब्ध कराना इस श्रृंखला की महत्वपूर्ण प्रक्रिया रहेगी।
ध्यातव्य है कि इस बिन्दु पर राष्ट्रीय एकता एवं सांस्कृतिक चेतना के संरक्षण पर दृष्टिपात करते हुए त्रिभाषा फॉमूले में पर्याप्त लचीलापन रखा गया है। किसी भी राज्य पर कोई भी भाषा थोपी नहीं जाएगी, यह विकल्प राज्यों, क्षेत्रों और छात्रों के स्वयं के होंगे, इसमें तीन में से दो भारतीय भाषाएं अपेक्षित हैं। घर की भाषा/मातृभाषा और दूसरी भाषा जैसे अंग्रेजी भाषा सीखने में उसकी क्षमता को विकसित कराया जाना अपने आप में एक स्तुत्य प्रयास है। यह हमारे देश का गौरव है कि भारत में शास्त्रीय भाषाओं जैसे तमिल, तेलगु, कन्नड़, मलयालम, उड़िया तथा अन्य समस्त भाषाओं का समृद्ध साहित्य उपलब्ध है। साथ ही पालि, प्राकृत, फारसी भाषाओं की संपन्नता भावी पीढ़ी को भारत की व्यापक सोच शास्त्रीय ज्ञान-परंपरा को सीखने में सहायक होगी।
इसके लिए ऑनलाइन मॉड्यूल तैयार कर भाषा को जीवन्त रखे जाने का प्रावधान किया गया है। इसके साथ-साथ इस पद्धति द्वारा स्थानीय बोलियों, उपबोलियों, उपभाषाओं का भी समुचित विकास होगा तथा जो बोलियां प्रयुक्त न होने के कारण मृतप्राय हो रही थीं उनका जीर्णोद्धार भी हो पाएगा। मूलभूत साक्षरता उपलब्ध कराने का राष्ट्रीय अभियान एक स्वागत योग्य कदम है अर्थात् मूलभूत स्तर पर पढ़ना, लिखना और अंकगणित का ज्ञान प्राप्त करने के उपरान्त ही बच्चे के लिए अन्य नीतियां प्रासंगिक होंगी।
इसके लिए शिक्षा मंत्रालय द्वारा प्राथमिक आधार पर आधारभूत साक्षरता एवं संख्यात्मकता पर एक राष्ट्रीय मिशन स्थापित करने की योजना प्रशंसनीय है। इसमें राज्य तथा केन्द्रशासित प्रदेशों की भागीदारी यह सुनिश्चित करेगी कि उनके राज्य में चरण-वार चिह्नित् कार्यों एवं लक्ष्यों की आपूर्ति तथा उनकी प्रगति का प्रतिशत क्या है अर्थात् निरन्तर मूल्यांकन की प्रवृत्ति से प्रत्येक व्यक्ति पूरी जिम्मेदारी एवं जबाबदेही के साथ कार्य करेगा।
इस क्षेत्र में राज्य एवं केन्द्र सरकार का यह दायित्व बढ़ गया है कि समयबद्ध तरीके से भारतीय एवं स्थानीय भाषाओं में रुचिकर एवं प्रेरणापरक बाल साहित्य निर्मित करवाएं तथा पूर्व में उपलब्ध बाल पाठ्य सामग्री को प्रत्येक विद्यालय विशेषरूप से दुर्गम एवं ग्रामीण अंचलों में स्थित स्कूलों में समय से उपलब्ध कराना सुनिश्चित करे। स्कूलों में सार्वजनिक पुस्तकालयों की व्यवस्था एक आवश्यक उपक्रम है ताकि बुक-क्लब का सदस्य बनकर बच्चे के साथ उसका समुदाय भी लाभान्वित हो सके तथा स्थानीय बोलियों, भाषाओं, स्तरों, शैलियों में पुस्तक तक पहुंच पाठक में गुणवत्तापरक संस्कारों को विकसित करने में सहायक हो। नीतिकारों का यह प्रयास निश्चित रूप से शिक्षा के संस्कारों का बीज-वपन करने में महती भूमिका का निर्वहन करेगा।
पढ़ाई के साथ बच्चे के पोषण, शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य की जिम्मेदारी लेना नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति का सबसे महान प्रयास कहा जा सकता है। पुष्टिकर भोजन उपलब्ध कराने के साथ पूर्ण प्रशिक्षित काउंसलरों, प्रशिक्षित सामाजिक कार्यकर्ताओं तथा स्कूली शिक्षा प्रणाली में समुदाय को पहली बार अवसर एवं स्थान प्रदान किया गया है ताकि सतत् तथा समयानुकूल उपायों के द्वारा सर्वांगीण विकास संभव हो सके। शैक्षिक कार्ड के साथ स्वास्थ्य कार्ड का विन्यास कर बच्चे को शारीरिक, मानसिक तथा शैक्षिक रूप से स्वस्थ रखना इस शिक्षा नीति की महत्वपूर्ण उपलब्धि कही जा सकती है।
कुल मिलाकर प्रत्येक दृष्टि से बच्चे में उन्नत भारतीय संस्कारों की पृष्ठभूमि पर आधुनिक एवं वैज्ञानिक सोच विकसित कर उसे समय की दौड़ में शामिल कराना नई शिक्षा नीति का मुख्य उद्देश्य प्रतीत होता है। शिक्षा की सार्वभौमिक पहुंच, समग्र, एकीकृत, आनंददायी और रुचिकर विषयों का मनोनुकूल चयन बच्चे में शिक्षा के प्रति आकर्षण उत्पन्न करेगा तथा कोर्स चयन में लचीलेपन से वह रुचि के अनुसार विषयों का अध्ययन कर पाएगा। आधुनिक भारत के निर्माण में भारत का ज्ञान तथा सफलताओं के लिए प्राचीन भारत के इतिहास के सूत्रों के योगदान को स्वीकार करते हुए स्वास्थ्य, पर्यावरण के मुद्दों को भारत के भविष्य की आकांक्षाओं के साथ समेटना एक बड़ा कार्य है। बच्चे का नैतिक विन्यास कराना संभवतः देश के लिए सच्चा नागरिक तैयार करने का आवश्यक चरण है। शैशवकाल से ही सही गलत के फैसले करने की तीक्ष्णता विकसित कर देने से भावी पीढ़ी में बुनियादी मानवीय और संवैधानिक मूल्यों को विकसित करने का प्रयास निश्चित रूप से प्रशंसनीय है।
नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के द्वितीय भाग में भारतीय उच्चतर शिक्षा व्यवस्था का भविष्योन्मुखी दृष्टिकोण विश्व मानव बनाने की आवश्यक पहल है। शिक्षा के माध्यम से सामाजिक रूपान्तरण, राष्ट्रीय विकास तथा राष्ट्र निर्माण में सहयोग प्रदान करने वाली भावी पीढ़ी का निर्माण करने की अभूतपूर्व योजनाओं का समन्वय उच्चतर शिक्षा के अन्तर्गत किया गया है। यह राष्ट्रीय नीति जिस उद्देश्य से, जिस विजन, जिन विषयों को लेकर बनाई गई है वह एक ओर जिम्मेदार और निष्ठावान नागरिक बनाने की बात करती है तो दूसरी ओर ग्लोबल सिटीजन विकसित करने की संकल्पना से संयुक्त है। यह नीति न केवल भारत की विश्व में अलग पहचान बनाने के लिए लाई गई है वरन् विश्व मानव बनाने की अवधारणा से परिपूर्ण है। वैश्विक पटल पर लीड नेशन, ग्लोबल लीडर के रूप में अपने को स्थापित करने की कलाओं से परिपूर्ण है।
इस नीति में बहुस्तरीय प्रवेश एवं निकासी (मल्टीपल एंट्री एवं एग्जिट) की सुविधा से यदि विद्यार्थी किसी पाठ्यक्रम के आधे सेमेस्टर पढ़ने के बाद किसी परिस्थितिवश आगे नहीं पढ़ पाता तो उसे एक साल के बाद सर्टिफिकेट, दो साल के बाद डिप्लोमा तथा 3-4 साल के बाद डिग्री मिल जाएगी। यह छात्रों के हित में एक अहम् निर्णय है। नेशनल मेंटरिंग के द्वारा शिक्षकों का उन्नयन किया जाएगा साथ ही शिक्षकों को प्रभावकारी एवं पारदर्शी प्रक्रियाओं के माध्यम से भर्ती किया जाएगा, पदोन्नति योग्यता आधारित होगी तथा शिक्षक के कार्य-प्रदर्शन का समय-समय पर आकलन एवं मूल्यांकन करने के उपरान्त ही उसका भविष्य सुनिश्चित किया जाएगा। कार्य संस्कृति को विकसित करने का यह विचार निश्चित रूप से शिक्षक की जवाबदेही सुनिश्चित करने में मददगार रहेगा।
स्कूल, कॉलेजों के शुल्क पर नियंत्रण एवं आकलन हेतु एक तंत्र विकसित किया गया है ताकि इंस्पेक्टर राज समाप्त हो सके। साथ ही अब पूरे देश में केन्द्रीय, राज्य, डीम्ड, प्राइवेट विश्वविद्यालयों के लिए एक नियामक संस्था होगी तथा शिक्षा के नियम सारे देश में एक समान होंगे। इस नीति की यह विशेष उपलब्धि मानी जाएगी कि इसमें विद्यार्थी-अभिभावक-शिक्षक-नियंत्रक की एक श्रृंखला बनाई गई है। पारदर्शिता के साथ यह तंत्र शिक्षा को समृद्ध करने में अपनी जिम्मेदारी निभाएगा। वंचित क्षेत्रों में पूर्ण उपलब्धता, न्यायसंगतता के समावेश के साथ उत्कृष्ट सार्वजनिक संस्थाओं की स्थापना से जो उच्चतर शिक्षा-संस्थान श्रेष्ठतम् प्रदर्शन करेंगे, उनकी क्षमताओं का विस्तार करके प्रोत्साहन दिया जाएगा। ये संस्थान स्टार्ट-अप, इन्क्यूबेशन सेंटर, प्रौद्योगिकी विकास केन्द्र, अनुसंधान के प्रमुख क्षेत्रों के केन्द्र, उद्योग-अकादमिक जुड़ाव, मानविकी एवं सामाजिक विज्ञान अनुसंधान सहित अंतर विषय अनुसंधान की स्थापना करके अनुसंधान एवं नवाचार पर विशेष दृष्टि रखेंगे। इसके अन्तर्गत शोध के समस्त प्रासंगिक विषयों को सम्मिलित गया है।
वास्तव में, नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 3 साल के शिशु से प्रारम्भ होकर उसके यौवन तक शैक्षिक विन्यास सुनिश्चित करने का एक असाधारण प्रयास है। उन्नत क्रियान्वयन के लिए समन्वित एवं व्यवस्थित तरीके से पहल की गई है, इसके लिए केन्द्र एवं राज्यों का सावधानीपूर्वक समन्वय, योजना निर्माण, संयुक्त निगरानी तथा संतोषप्रद निष्पादन के लिए मानव संरचनागत और संसाधनों को समय पर उपलब्ध कराना विशेष बिंदु बनाया गया है। संपूर्ण अध्ययन के उपरान्त यह विशेष उपलब्धि मिलती है कि अब हमारा विद्यार्थी भारत में रहकर पढ़ना चाहेगा।
भारत में पढ़ने वाले अन्तर्राष्ट्रीय छात्रों की संख्या भी बढे़गी तथा भारत में रहकर उन छात्रों को और अधिक अवसर प्राप्त होंगे जो विदेश के संस्थानों में शोध करने, क्रेडिट स्थानान्तरित करने तथा इसके बाहर शोध करने की इच्छा रखते हैं, यही पद्धति समस्त अन्तर्राष्ट्रीय छात्रों को भी भारत में उपलब्ध होगी। सामाजिक-आर्थिक रूप से वंचित पृष्ठभूमि के छात्रों को उच्चतर शिक्षा तक सफलतापूर्वक पहुंचाने में विशेष प्रोत्साहन और सहायता देना इस राष्ट्रीय शिक्षा नीति का प्रमुख लक्ष्य है। ओडीएल का विस्तार, ऑनलाइन शिक्षा की स्वीकार्यता, पारदर्शी नियुक्ति प्रक्रिया, कार्य-प्रदर्शन के आधार पर नियुक्ति एवं पदोन्नति, शिक्षण एवं शोध को अलग-अलग मानकों में वर्गीकृत कर शिक्षकों की नियुक्ति तथा प्रत्येक संबद्ध व्यक्ति की जिम्मेदारी एवं जवाबदेही नियमानुसार निर्धारित करना इस नीति का उद्देश्य दिखाई देता है।
पूर्ण मनोयोग के साथ अपने देश के प्रत्येक विद्यार्थी की शैशवकाल से लेकर उच्च शिक्षा तक के शैक्षिक एवं मनोवैज्ञानिक विन्यास का इस नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में ध्यान रखा गया है। राष्ट्र निर्माण में यह नीति विशेष लाभदायी होगी तथा हमारा नौजवान अपनी मेधा एवं प्रतिभा के कौशल से वैश्विक पटल पर विश्वमानव के विशेषण से विभूषित होगा। यह सपना तभी साकार हो पाएगा जब शैक्षिक जगत के लिए स्वायत्तता, दायित्वबोध और पारदर्शिता का संतुलन अनिवार्य रूप से नियमबद्ध किया जाएगा। हमें इस आधारभूत प्रतिज्ञा का भी स्मरण रखना होगा कि यह सब तभी संभव है जब शिक्षा के जी.डी.पी. का प्रस्तावित छह प्रतिशत शिक्षा को उपलब्ध होगा, यह निवेश ही देश में शैक्षिक योद्धा तैयार करने तथा देशहित में हमारी आकांक्षाओं को हकीकत का जामा पहनाने के लिए एक सशक्त कदम होगा।
(लेखक हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल (केंद्रीय) विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग की संयोजक-अध्यक्ष हैं)
4 comments
4 Comments
kapil panwar
August 14, 2020, 10:48 amनई शिक्षा नीति भारत को नई ऊँचाई पे ले जाएगी ये भारत की पीढ़ी के लिए ऊर्जा का कार्य करेगी, बहुत शानदार लेख है राणा मेम का। बहुत सारगर्भित विश्लेषण
REPLYतनुज बडोनी
August 14, 2020, 5:02 pmनयी शिक्षा निती में अति उत्कृष्ट सिफारिशें, जो व्यक्तिगत तौर पर सुझाई गई है इन सिफारिशों में शिक्षकों के प्रशिक्षण और स्कूली शिक्षा प्रणाली में सुधार से भारत में शिक्षा के नए आयाम स्थापित होंगे बहुत ही शानदार वर्णन…
REPLYDr. Madhu Bisht
August 15, 2020, 4:50 pmVery informative article with crystal clear explanation. Thanks for sharing your valuable analysis and in-depth knowledge on NEP 2020. Undoubtedly, the changes in NEP2020 that you have mentioned in your article such as the promotion of national inclusiveness through adoption of regional languages, extending RTE to 18 years, choice based discipline for ensuring universalization of education and skill oriented education from grade 6 onwards all are welcoming steps. In my opinion, multiple entry exit options by providing certificate, diploma and degree at UG level, flexibility regarding choice of subjects across streams are also appreciable reforms in this NEP2020. I am sure these steps will improve gross enrollment ratio and will definitely be helpful in attaining Sustainable Development Goal no.4.
REPLYKeerti Negi
August 17, 2020, 10:13 amThe New Education Policy 2020 has been explained so well , so precise by Prof. Manjula Rana. As you explains how NEP is to revamp the education system of 21st century.
REPLYAlong with it the article focuses how this education system that can shape the new India through real-world application-oriented education in all fields.