पिथौरागढ़ के मुनस्यारी का बंगापानी इलाका इन दिनों बारिश और भूस्खलन का कहर झेल रहा है। इस सबके बीच वहां के माणीधामी गांव के लाल की शहादत की खबर आई। माणीधामी के मूल निवासी हवलदार बिशन सिंह 17 कुमाऊं रेजीमेंट में थे।
15 अगस्त को एक के बाद एक दो ऐसी खबरें आईं जिसने हर उत्तराखंडी की आंख को नम कर दिया। पहले दोपहर में एलओसी पर ड्यूटी के दौरान 8 महीने पहले हिमस्खलन की चपेट में राजेंद्र सिंह नेगी का शव खोज लिए जाने की सूचना आई। इसके बाद शाम को लद्दाख में तैनात उत्तराखंड के वीर सपूत हवलदार बिशन सिंह माहरा ने लंबे इलाज के बाद दम तोड़ दिया। शहीद के पार्थिव शरीर को चंडीगढ़ से हल्द्वानी के कमलुवागांजा में उनके भाई जगत सिंह के आवास पर देर रात लाया गया। यहां चित्रशिला घाट पर उनका अंतिम संस्कार किया गया।
पिथौरागढ़ के मुनस्यारी का बंगापानी इलाका इन दिनों बारिश और भूस्खलन का कहर झेल रहा है। इस सबके बीच वहां के माणीधामी गांव के लाल की शहादत की खबर आई। माणीधामी के मूल निवासी हवलदार बिशन सिंह 17 कुमाऊं रेजीमेंट में थे।
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उनके भाई प्रकाश सिंह माहरा ने हिल-मेल को बताया कि बिशन सिंह ने कभी यह नहीं बताया कि मैं घायल हूं। बहुत पूछने पर इतना ही कहा कि कुछ हल्की-फुल्की चोटें हैं। उन्होंने बताया कि सात-आठ दिन पहले ही पता चला की उनकी तबियत बहुत ज्यादा बिगड़ गई है, जब आने की बात कही तो उन्होंने यही कहा क्वारंटीन हो जाओगे, मत आओ। सेना की ओर से 15 अगस्त को उनकी मौत की खबर दी गई। इसके बाद 15 अगस्त देर रात उनका पार्थिव शरीर यहां पहुंचा।
सेना की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है कि वह गलवान झड़प में शामिल नहीं थे। 43 साल के बिशन सिंह कोलोन कैंसर से पीड़ित थे और उनहें 29 जून को लेह में भर्ती कराया गया था। इसके बाद उन्हें तीन जुलाई को चंडीगढ़ शिफ्ट किया गया। 15 अगस्त को 1.30 बजे उन्होंने दम तोड़ दिया। दरअसल, पहले ऐसी सूचनाएं थीं कि बिशन सिंह गलवान में चीनी सेना के साथ हुई झड़प में घायल हुए थे।
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शहीद बिशन सिंह 31 अगस्त 2020 को सेवानिवृत्त होने वाले थे। उनका परिवार हल्द्वानी में किराए के घर में रहता है। वह अपना घर बनाने वाले थे। लेकिन होनी को शायद कुछ और ही मंजूर था। रिटायरमेंट से 15 दिन पहले उत्तराखंड का यह सपूत तिरंगे में लिपटा अपने गांव पहुंचा। वह अपने पीछे पत्नी सती देवी (40), पुत्र मनोज (19) और पुत्री मनीषा (16) को छोड़ गए हैं।
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