पतित पावनी मां गंगा का भारत और भारतीयों के लिए न सिर्फ सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व है बल्कि यह भी सच है कि देश की 40% आबादी गंगा नदी पर निर्भर है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की बागडोर संभालने के बाद कहा था कि अगर हम गंगा को साफ करने में सक्षम हो गए तो यह देश की 40 फीसदी आबादी के लिए एक बड़ी मदद साबित होगी। इससे साफ है कि गंगा की सफाई एक आर्थिक एजेंडा भी है।
गंगा की स्वच्छता और निर्मलता के लिए उत्तराखंड में नमामि गंगे परियोजना पर युद्ध स्तर पर काम चल रहा है। कुंभ मेले के दौरान गंगा का स्वच्छ और निर्मल स्वरूप देखने को मिले इसके लिए व्यापक स्तर पर काम किया जा रहा है। नमामि गंगे परियोजना साल 2014 में शुरू हुई थी लेकिन उत्तराखंड के सभी प्रोजेक्ट मार्च 2017 के बाद मंजूर हुए। इन तीन वर्षों में उत्तराखंड में गंगा को साफ करने के लिए शुरू हुए अधिकतर प्रोजेक्ट पूरे हो गए हैं।
नमामि गंगे परियोजना के तहत गोमुख, बदरीनाथ से लेकर हरिद्वार तक गंगा से सटे 15 शहरों, कस्बों में सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट निर्माण और गंदे नालों की टैपिंग पर फोकस किया गया है। इनमें से ज्यादातर काम पूरा हो चुका है। 32 एसटीपी, 135 नालों को टैप करने के प्रोजेक्ट मंजूर हुए। 1080 करोड़ का बजट भी मंजूर हुआ। 32 में से 29 सीवर ट्रीटमेंट प्लांट तैयार हुए। पुराने दो एसटीपी को दुरुस्त किया गया। पहली बार एसटीपी निर्माण क्षेत्र में पीपीपी मोड पर जगजीतपुर 68 एमएलडी का प्रोजेक्ट मंजूर किया गया। इसका निर्माण करने वाली कंपनी 15 साल तक संचालन भी करेगी।
आपको जानकर ताज्जुब होगा कि उत्तराखंड में गंगा में गिरने वाले कुल नालों की संख्या 135 है। इनमें 131 नालों को गंदा माना गया है। 128 नाले टैप कर एसटीपी तक पहुंचाए गए हैं। अब तीन नाले जोशीमठ और दो नाले श्रीकोट के हैं। अब सिर्फ तीन छोटे-छोटे एसटीपी तैयार होने हैं। श्रीकोट के दो एसटीपी का काम दिसंबर, जोशीमठ का प्रोजेक्ट मार्च 2021 तक पूरा होगा। नमामि गंगे से पहले गंगा नदी में गिरने वाले गंदे पानी को साफ करने की क्षमता 7 करोड़ लीटर थी। यह अब बढ़कर 15 करोड़ लीटर हो गई है। पहले 70.225 एमएलडी के सीवर ट्रीटमेंट प्लांट गंगा नदी के किनारे थे। अब यह क्षमता बढ़कर 152.51 एमएलडी पहुंच गई। अब अगले चरण में मंदाकिनी पर भी एसटीपी तैयार होंगे।
वैसे तो गंगा को साफ करने की मुहिम 35 साल से जारी है। सबसे पहले 1985 में गंगा एक्शन प्लान-वन से शुरुआत हुई थी। फिर ऐक्शन प्लान-2 के तहत काम हुए। 2009 के बाद नेशनल गंगा रिवर बेसिन अथॉरिटी के तहत काम हुए। 2014 में नमामि गंगे प्रोजेक्ट में काफी तेजी दिखाई गई।
नमामि गंगे प्रोजेक्ट के काम रिकॉर्ड समय में पूरे किए गए हैं। हाल ही में पीएम मोदी ने नमामि गंगे कार्यक्रम के तहत तैयार कई परियोजनाओं का लोकार्पण किया।
नमामि गंगे के तहत उत्तराखंड में पूरी हुई परियोजनाएं
उत्तराखंड में नमामि गंगे से जुड़ी इन परियोजनाओं के शुरू होने से अब प्रतिदिन 15.2 करोड़ लीटर दूषित पानी गंगा नदी में नहीं बहेगा। इन प्रोजेक्ट में जगजीतपुर हरिद्वार में 230 करोड़ रुपये की लागत से बना 68 एमएलडी क्षमता का एसटीपी, 20 करोड़ की लागत से बना 27 एमएलडी क्षमता का अपग्रेडेड एसटीपी, सराय हरिद्वार में 13 करोड़ की लागत से बना 18 एमएलडी क्षमता का अपग्रेडेड एसटीपी, चंडी घाट, हरिद्वार में गंगा के संरक्षण और जैव विविधता को प्रदर्शित करता ‘गंगा संग्रहालय’, लक्कड़ घाट, ऋषिकेश में 158 करोड़ की लागत से बना 26 एमएलडी क्षमता का एसटीपी, चंदे्रश्वर नगर-मुनि की रेती में 41 करोड़ की लागत से बना 7.5 एमएलडी क्षमता का एसटीपी, चोरपानी, मुनि की रेती में 39 करोड़ की लागत से बना 5 एमएलडी क्षमता का एसटीपी और बद्रीनाथ में 19 करोड़ की लागत से बना 1.01 एमएलडी क्षमता का एसटीपी शामिल हैं।
6 साल में चार गुना हुई सीवरेज ट्रीटमेंट क्षमता
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद कहा है कि उत्तराखंड में नमामि गंगे के अंतर्गत लगभग सभी प्रोजेक्ट पूरे हो गए हैं। राज्य में 6 साल में सीवेज ट्रीटमेंट की क्षमता को 4 गुना कर दिया गया है। लगभग सभी नालों को टैप कर दिया गया है। इनमें चंद्रेश्वर नाला भी शामिल है। यहां देश का पहला 4 मंजिला एसटीपी शुरू हो चुका है। अगले वर्ष हरिद्वार कुंभ मेले में श्रद्धालु गंगा की निर्मलता का अनुभव लेंगे। सैकड़ों घाटों का सौंदर्यीकरण किया गया है। साथ ही रिवर फ्रंट भी बनकर तैयार है। गंगा म्यूजियम से हरिद्वार आने वाले लोग गंगा से जुड़ी विरासत को समझ पाएंगे। गंगा के निकटवर्ती पूरे क्षेत्र की अर्थव्यवस्था और पर्यावरण पर फोकस किया जा रहा है। यहां जैविक खेती और औषधीय पौधों की खेती की योजना है। आर्गेनिक फार्मिंग कॉरिडोर विकसित किया जा रहा है। मिशन डॉल्फिन से उसके संवर्धन में मदद मिलेगी।
पीएम मोदी ने उत्तराखंडवासियों को बधाई देते हुए कहा कि मां गंगा हमारे सांस्कृतिक वैभव और आस्था से तो जुड़ी ही है, साथ ही लगभग आधी आबादी को आर्थिक रूप से समृद्ध भी करती है। नमामि गंगे मिशन, नई सोच और नई एप्रोच के साथ शुरू किया गया। यह देश का सबसे बडा नदी संरक्षण अभियान है। इसमें समन्वित रूप से काम किए गए। गंगा जी में गंदा पानी गिरने से रोकने के लिए एसटीपी का निर्माण किया जा रहा है, अगले 15 वर्षों की आवश्यकता के अनुसार एसटीपी की क्षमता रखी गई, गंगा के किनारे लगभग 100 शहरों और 5 हजार गांवों को खुले में शौच से मुक्त किया गया है और गंगा की सहायक नदियों को भी प्रदूषण से मुक्त रखने का काम किया जा रहा है।
राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) से नमामि गंगे में उत्तराखंड को 300 करोड़ की धनराशि मिल सकती है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के निर्देश पर शासन ने इस संबंध में प्रस्ताव भेज दिया है। नमामि गंगे में कुंभ के लिए मिलने वाली धनराशि से कुंभ मेला क्षेत्र में कूड़ादान, मूत्रालय, सेप्टिक टैंक, पेयजल और सीवरेज से संबंधित पंपिंग स्टेशनों की क्षमता बढ़ाने आदि कार्यों पर खर्च किया जाएगा। इससे कुंभ के दौरान कूड़ा-कचरा और गंदगी गंगा में जाने से रोकने में मदद मिलेगी।
दरअसल, गंगा संरक्षण की चुनौती बहुक्षेत्रीय और बहुआयामी है। इसके लिए समाज और सरकार के हर सेक्टर को साथ आना होगा। विभिन्न मंत्रालयों के बीच एवं केंद्र-राज्य के बीच समन्वय को बेहतर करने के साथ केंद्र एवं राज्य स्तर पर निगरानी तंत्र को बेहतर करने के प्रयास हुए हैं। इस कार्यक्रम के कार्यान्वयन के लिए तत्काल प्रभाव, 5 साल और 10 साल का समय तय किया गया है।
नमामि गंगे प्रोजेक्ट पर प्राथमिकता से काम
प्राथमिकता वाले 16 नगरों के लिए मंजूर 19 योजनाओं में से 15 पूरी हो चुकी हैं। चिन्हित किए गए 135 नालों में से 128 टैप किए गए हैं। शेष सभी काम कुंभ से पहले पूरे करने लिए जाएंगे। उत्तराखंड में गंगा किनारे विभिन्न स्थानों पर 21 स्नान घाटों और 23 मोक्षधामों का निर्माण किया गया है। इनमें भव्य चंडी घाट भी शामिल है। गंगा नदी के कैचमेंट एरिया में जो कार्य कराए गए हैं, उनका लाभ आने वाले समय में मिलेगा। गंगा के दोनों किनारों पर 5 से 7 किलोमीटर के क्षेत्र में जैविक खेती को विकसित करते हुए स्थायी कृषि प्रथाओं को भी नमामि गंगे कार्यक्रम के अंतर्गत प्रोत्साहन दिया जा रहा है। नमामि गंगे कार्यक्रम में निर्मित एसटीपी से निकलने वाले साफ जल को किसानों को सिंचाई के लिए उपलब्ध कराया जा रहा है। गंगा मे डॉल्फिन और महाशिर मछलियां फिर दिखने लगी हैं। गंगा के किनारे आर्गेनिक खेती व औषधीय पौधों की खेती को प्रोत्साहित किया जा रहा है।
– त्रिवेंद्र सिंह रावत, मुख्यमंत्री, उत्तराखंड
हरिद्वार कुंभ में आचमन योग्य होगा गंगा जल
वर्ष 2014 से नमामि गंगे मिशन मोड में काम कर रहा है। इसके लिए पर्याप्त बजट की व्यवस्था की गई। समन्वित एप्रोच पर काम किया गया। अभी तक इसमें गंगा प्रवाह क्षेत्र में 315 परियोजनाएं ली गई हैं। कुल 28,854 करोड़ रुपये की स्वीकृति दी जा चुकी है। इनमें से 9 हजार करोड़ की परियोजनाएं पूरी हो चुकी हैं। इनके परिणाम भी दिखाई देने लगे हैं। हाईब्रिड एन्यूटी प्रणाली अपनाई गई है। गंगा प्रहरी और अनेक संगठनों के माध्यम से नमामि गंगे को जन अभियान बनाया गया है। गंगा की शुचिता के साथ ही अविरलता पर भी ध्यान दिया गया है। इसके लिए ई-फ्लो अधिसूचना जारी की गई। अगले वर्ष हरिद्वार में कुंभ मेले के समय गंगा जल आचमन योग्य होगा। रिसाईकिल पानी को रियूज करने का भी प्रयास किया जा रहा है। गंगा की सहायक नदियों पर भी प्रभावी काम कर रहे हैं।
– गजेंद्र सिंह शेखावत, केंद्रीय जल शक्ति मंत्री
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