मैदानी इलाकों में कभी कोई परेशानी आए तो लोग फौरन अस्पताल पहुंच जाते हैं। 8-10 किमी दूर भी हो अस्पताल तो उन्हें पहुंचने में ज्यादा मुश्किल नहीं आती है। पर उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्य में सुदूर गांवों में अगर किसी को पेट दर्द भी उठता है तो उसे पैदल 10 किमी तक कंधे पर लेकर चलना पड़ता है।
उत्तराखंड की आबोहवा भला किसे मोहित नहीं करती। देवभूमि में कुछ पल बिताने की तमन्ना लिए लोग देश के कोने-कोने से खिंचे चले आते हैं, पर यहां की खूबसूरत प्राकृतिक वादियां अपने साथ चुनौती भी लाती है, जिससे स्थानीय लोग जूझते हैं। उत्तर प्रदेश से अलग राज्य बनने के बाद पिछले 20 वर्षों में उत्तराखंड प्रगति के पथ पर उत्तरोत्तर आगे बढ़ रहा है लेकिन दुर्गम इलाकों तक रास्ते तैयार करना टेढी खीर है।
उत्तराखंड के कुछ गांव तो ऐसे हैं जहां लोगों को पहाड़ के ऊबड़-खाबड़ रास्ते ही नहीं, जलधारा को भी पार करना पड़ता है। मुश्किल के समय जैसे अगर कोई बीमार होता है तो उसे अस्पताल पहुंचाने के लिए चारपाई कंधे पर लेकर जानी पड़ती है। यह स्थानीय लोगों का दर्द है जिससे वे रोज दो चार होते रहते हैं।
चमोली जिले में ऐसा ही एक गांव है इराणी। यहां से अक्सर ऐसी तस्वीरें आती रहती हैं जिसमें मरीजों को कंधे पर 8-10 किमी पैदल ले जाना पड़ता है। रास्ते का मतलब सड़क नहीं, पहाड़ काटकर बनाए गए ऊंच-नीच वाले रास्ते, जहां थोड़ी सी सावधानी हटी तो फिर कुछ भी हो सकता है।
ताजा मामला शुक्रवार रात का है। इराणी की रहने वाली 23 साल की भवानी देवी पत्नी रमेश सिंह को कल रात अचानक पेट दर्द उठा। पहले तो लगा कुछ देर में दर्द ठीक हो जाएगा पर घरेलू नुस्खे भी काम नहीं आए तो अस्पताल ले जाने की तैयारी शुरू हो गई। 6-7 किमी पैदल चलकर घरवाले भवानी देवी को कुर्सी पर बैठाकर पैदल लेकर आए।
यह वीडियो देखिए। 3 मिनट 46 सेकेंड का वीडियो अपने आप में पहाड़ों में बसे लोगों के अस्पताल पहुंचने की दास्तां को बयां करता है। इराणी गांव के लोग सड़क की मांग कर रहे हैं जिससे मुश्किल समय में इस तरह कंधे पर लेकर 10 किमी तक पैदल न चलना पड़े।
यह कोई पहली घटना नहीं है। हिल मेल ने पहले भी इराणी की इस समस्या की ओर ध्यान आकृष्ट किया है।
Leave a Comment
Your email address will not be published. Required fields are marked with *