मुश्किल थे हालात, मेहनत और लगन से हासिल की सेना की वर्दी…. उत्तराखंड को है नाज, ये हैं गुदड़ी के लाल

मुश्किल थे हालात, मेहनत और लगन से हासिल की सेना की वर्दी…. उत्तराखंड को है नाज, ये हैं गुदड़ी के लाल

आपका बैकग्राउंड क्या है, घर में कितने भौतिक संसाधन हैं, आप कितने अमीर हैं, आपके पास कितनी किताबें हैं…. सच मानिए, सफलता के लिए यह सब मायने नहीं रखता है। युवा की चाह, लगन और उसका परिश्रम ही काम आता है। IMA की पासिंग आउट परेड से निकल सेना की वर्दी पहनने वाले दो गुदड़ी के लाल की कहानी यही सिखाती है।

आईएमए पासिंग पाउट परेड से निकले उत्तराखंड के युवा अफसरों में कई बेहद गरीब परिवार से ताल्लुक रखते हैं। 37 परिवारों में आज खुशी की लहर है। उनके माता-पिता, मामा-मामी, दादा-दादी और आस पड़ोस के लोग गर्व का अनुभव कर रहे हैं। उनका बच्चा सेना की वर्दी पहनकर अब देशसेवा करेगा। ऐसे गुदड़ी के लाल भी हैं जिन्होंने मुश्किल परिस्थितियों में यह सफलता हासिल की है। आज पहाड़ उन पर गर्व कर रहा है।

किसान के बेटे हैं सचिन तिन्दोरी

रुद्रप्रयाग जिले के विकास खंड ऊखीमठ के एक छोटे से गांव रेल (फाटा) के एक साधारण किसान धीर सिंह तिन्दोरी और सावित्री देवी के बेटे सचिन तिन्दोरी भारतीय थल सेना में शामिल हो गए हैं। शनिवार को उन्होंने भारतीय सैन्य अकादमी (IMA) देहरादून से बतौर लेफ्टिनेंट पद की शपथ ली। एक सामान्य से पृष्ठभूमि से आने वाले सचिन विकट परिस्थितियों के बावजूद भारतीय सेना के लेफ्टिनेंट जैसे प्रतिष्ठित पद को हासिल किया है।

इससे एक बार फिर यह साबित हो गया है कि लाख परेशानियां आएं अगर सच्ची लगन और परिश्रम से अपने मिशन में जुट जाएं तो सफलता अवश्य मिलती है। नितिन जमलोकी ने अपने फेसबुक पेज पर यह जानकारी देते हुए घर और गांव के लोगों को बधाई दी है। उन्होंने कहा है कि सचिन की सफलता से युवाओं को प्रेरणा मिलेगी।

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पिता की तंगहाली, बेटे ने सीना किया चौड़ा

हर पिता की यह तमन्ना रहती है कि बेटा उससे आगे जाए। वह कुछ ऐसा करे जिससे उसके नाम से पिता की पहचान बने। बेटे की कामयाबी पर अनुज चौधरी के पिता राजेंद्र चौधरी की आंखें नम हैं। वह श्रीनगर की एक प्रिंटिंग प्रेस में काम करते हैं। पहले उनकी अपनी प्रेस थी लेकिन हालात ठीक न होने के चलते उन्होंने नौकरी करनी शुरू की। तंगहाली में होने के बाद भी अनुज के पिता ने उनका हर कदम पर साथ दिया।

नम आंखों से राजेंद्र चौधरी बताते हैं कि अनुज शुरू से ही पढ़ने लिखने में होशियार था। वह अपनी मेहनत के दम पर ही सेना में अफसर बन पाया है। अनुज की बहन ईशा ने मीडिया को बताया कि उनके दादा और नाना भी सेना में थे, जिनसे अनुज को सेना में जाने की प्रेरणा मिली। बेटे की सफलता से मां गदगद हैं।

अनुज बेहद गरीब परिवार से आते हैं। इसके बावजूद उन्होंने कभी अपनी गरीबी को राह में रोड़ा नहीं बनने दिया। ऐसे में उन युवाओं के लिए अनुज प्रेरणा हैं जो मुश्किलों और संसाधनों की कमी के चलते अपनी मेहनत से पीछे हट जाते हैं या थककर हार मान लेते हैं।

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