हो सकता है मैदानी इलाके के लोगों को लकड़ी के पुल का महत्व न पता हो पर पहाड़ या नदी के आसपास रहने वाले लोग इसे बखूबी जानते हैं। परेशानी के साथ-साथ इससे दूरी भी कम हो जाती है। उत्तराखंड के चमोली जिले में पिछले दिनों पुल बह गया तो लोगों की परेशानी बढ़ गई।
उत्तराखंड के चमोली जिला का सुदूर गांव है इराणी। जिले में वैसे तो अक्सर आपदा आती रहती है। इसी साल कई बार प्राकृतिक आपदा देखने को मिली। यहां के प्रधान मोहन सिंह नेगी ने ‘हिल मेल’ से बातचीत में बताया कि 18-19 जून की आपदा में वीरगंगा में लकड़ी की पैदल पुलिया बह गई। इसका इस्तेमाल हम आने-जाने के लिए करते थे। घोड़े और खच्चर भी एक तरफ से दूसरी तरफ आसानी से जा सकते थे।
भारी बाढ़ से बने हालात में वह बह गया था। इसके बाद लोगों को दिक्कत होने लगी, आने-जाने में काफी परेशानी सामने आने लगी। लोगों को 3 किमी की अतिरिक्त दूरी तय करनी पड़ रही थी। उन्होंने कहा कि हम लोगों ने 15-20 दिन में लोगों से खासतौर से युवाओं से बात की और रविवार 4 जुलाई को झूला पुल के नीच पैदल पुलिया जो लकड़ी की है, उसे तैयार कर दिया है।
उन्होंने कहा कि अब हमारी आवाजाही सुगम हो गई है। अब उस रास्ते से लोग बाजार जाकर राशन, पानी आदि ला रहे हैं। बीमार लोगों को भी अस्पताल ला सकेंगे। उन्होंने कहा कि 10 युवाओं की टीम ने 2 दिन में इस काम को पूरा कर दिया।
कुंभ ड्यूटी से नहीं लौटे फार्मासिस्ट
इराणी के प्रधान ने आगे कहा कि स्वास्थ्य को लेकर गांववालों की एक और दिक्कत है। अभी जो फार्मासिस्ट हैं, हरिद्वार कुंभ मेले में ड्यूटी लगी हुई थी, पर उन्हें वहां से रिलीव नहीं किया गया। ऐसे में गांव में कोई बीमार होता है तो उसे गोपेश्वर या चमोली जाना होता है।
एएनएम का काम टीकाकरण का है, जो चल रहा है और फार्मासिस्ट दवा देते हैं पर वह उपलब्ध नहीं हैं। उन्होंने कहा कि हमने सीएमओ के.के. अग्रवाल और जिला प्रशासन से भी बात की कि उन्हें वहां से जल्द अवमुक्त किया जाए जिससे यहां लोगों की परेशानी दूर हो सके लेकिन अब तक कुछ नहीं हुआ।
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