भगवान तुंगनाथ की चल विग्रह डोली चोपता प्रवास करेगी, 31 अक्टूबर को वनतोली होते हुए भनकुन प्रवास रहेगा। 1 नवंबर को उत्सव डोली शीतकालीन गद्दी स्थल मार्कंडेय मंदिर मक्कूमठ में विराजमान हो जाएगी। इसी के साथ भगवान तुंगनाथ जी की शीतकालीन पूजाएं भी शुरू हो जाएंगी।
पंच केदारों में प्रसिद्ध तृतीय केदार तुंगनाथ भगवान के कपाट शनिवार दोपहर 1बजे विधि-विधानपूर्वक शीतकाल के लिए बंद कर दिए गए। प्रात:काल से ही भगवान तुंगनाथ की पूजा-अर्चना, भोग प्रसाद भेंट किया गया। बड़ी संख्या में भक्तों ने बाबा तुंगनाथ के दर्शन किए। 11 बजे से कपाट बंद करने की प्रक्रिया शुरू हुई। मुख्य पुजारी अतुल मैठाणी ने अन्य आचार्यगणों एवं देवस्थानम बोर्ड के अधिकारियों की उपस्थिति में भगवान की समाधि पूजा पूर्ण की। इसके बाद भस्म, पुष्प पत्र आदि से ढककर स्वंयभू शिव लिंग को समाधि रूप दे दिया गया।
ठीक अपराह्न एक बजे भगवान तुंगनाथ के कपाट शीतकाल के लिए बंद कर दिए गए। भगवान तुंगनाथ की चल विग्रह डोली मंदिर परिसर में लाई गई। मंदिर की परिक्रमा करते भगवान तुंगनाथ के जयकारों के साथ प्रथम पड़ाव चोपता के लिए रवाना हुई। कपाट बंद होने के अवसर पर मठापति रामप्रसाद मैठाणी, देवस्थानम बोर्ड के वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी राजकुमार नौटियाल डोली प्रभारी प्रकाश पुरोहित, तुंगनाथ मंदिर के प्रबंधक बलबीर सिंह नेगी, आचार्य मुकेश मैठाणी, विनोद मैठाणी, प्रकाश मैठाणी मौजूद रहे।
भगवान तुंगनाथ की चल विग्रह डोली चोपता प्रवास करेगी, 31 अक्टूबर को वनतोली होते हुए भनकुन प्रवास रहेगा। 1 नवंबर को उत्सव डोली शीतकालीन गद्दी स्थल मार्कंडेय मंदिर मक्कूमठ में विराजमान हो जाएगी। इसी के साथ भगवान तुंगनाथ जी की शीतकालीन पूजाएं भी शुरू हो जाएंगी। देवस्थानम बोर्ड के मीडिया प्रभारी डा. हरीश गौड़ ने बताया कि इस यात्रा वर्ष कोरोना काल के बावजूद साढे पांच हजार तीर्थयात्री तुंगनाथ भगवान के दर्शन को पहुंचे।
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