उत्तराखंड के विधानसभा चुनाव के लिए भारतीय जनता पार्टी ने 70 विधानसभा सीटों में से 59 सीटों के लिए अपने प्रत्याशियों की घोषणा कर दी है। इन 59 प्रत्याशियों में से 10 विधायकों का टिकट काट दिया गया है तथा 21 नये उम्मीदवारों को पार्टी ने उतारा है। मुख्यमंत्री धामी खटीमा सीट से चुनाव लड़ेंगे।
उत्तराखंड राज्य गठन के बाद राज्य में चार बार के विधानसभा चुनाव हो चुके हैं इन चार विधानसभा चुनाव का इतिहास रहा कि इनमें मुख्यमंत्री रहते हुए जिसने चुनाव लड़ा, उसे पराजय का सामना करना पड़ा। इस बार क्या मुख्यमंत्री धामी इस मिथक को तोड़ने में कामयाब हो पायेंगे। हालांकि उत्तराखंड में पहली बार जो अंतरिम सरकार बनी थी उसके बाद हुए चुनाव में भगत सिंह कोश्यारी चुनाव जीत गये थे। उसके बाद भुवन चन्द्र खंडूडी और हरीश रावत मुख्यमंत्री रहते हुए अपना चुनाव हार गये थे।
इस समय पहाड़ों में बर्फबारी के कारण मौसम काफी ठंडा हो रहा है लेकिन यहां का चुनावी पारा काफी बढ़ गया है। भाजपा और आम आदमी पार्टी ने अपने काफी उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है इससे यहां का चुनावी माहौल भी गरमाने लगा है। जिन उम्मीदवारों को पार्टी ने टिकट दिया है उनके चेहरे और उनके समर्थकों में खुशी की लहर है लेकिन जिनको टिकट नहीं मिला है वह मायूस दिख रहे हैं। भाजपा ने कहा कि पार्टी में उम्मीदवार तो अनेक होते हैं लेकिन टिकट तो एक को ही उम्मीदवार को मिलेगा।
भाजपा ने कहा कि इन उम्मीदवारों का चयन पार्टी द्वारा कराया गया सर्वे और कार्यकर्ताओं का फीडबैक के आधार पर किया गया है। इसमें कई उम्मीदवार इसमें खरे उतरे तथा कई इस दौड़ से बाहर हो गए। माना जा रहा है कि अगले एक-दो दिन में शेष 11 सीटों पर प्रत्याशियों की घोषणा के बाद साफ हो जाएगा कि पार्टी ने कुल कितने विधायकों के टिकट काटे।
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री भी दिल्ली दौरे के बाद देहरादून पहंुच गये उन्होंने देहरादून के राजपुर रोड़ के एक कैफे में चाय की चुस्कियां ली और पार्टी के लोगों को चुनाव के बारे में रणनीति बनानी शुरू कर दी। उन्होंने कहा कि पिछले पांच साल में भाजपा ने लोगों के हित में अनेक निर्णय लिए हैं और उन्हें उम्मीद है कि लोग उनको फिर से सेवा करने का मौका देगी और वह लगातार लोगों की सेवा करते रहेंगे।
इन चुनावों में जहां भाजपा अपनी सरकार की उपलब्धियों को गिना रही है कि हमने रेलवे, आल वेदर रोड़, एयर कनेक्टिविटी, स्वास्थ्य, सड़क आदि काम गिना रही है तो विरोधी पार्टियां भी सरकार से सवाल पूछ रही है कि उन्होंने अपने पांच साल के कार्यकाल में तीन मुख्यमंत्री क्यों दिये। इस प्रकार से इन चुनावों में राजनीतिक पार्टियां अपनी अपनी तरह से मतदाताओं को अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रहे हैं। अब तो यह आने वाला समय ही बतायेगा कि वह इसमें कितने कामयाब होते हैं।
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