आखिर क्यों खतरे में है कहानी कहने वाले लड़के पंकज जीना का गांव?

आखिर क्यों खतरे में है कहानी कहने वाले लड़के पंकज जीना का गांव?

रेडियो से अपनी पहचान बनाने वाले पंकज जीना का गांव आज बड़े खतरे के साये में जी रहा है। जिसको लेकर पंकज जीना ने सोशल मीडिया और मदद की गुहार लगाई है।

उत्तराखंड जितनी अपनी खूबसूरती के लिए प्रख्यात है उतनी ही दर्दनाक यहां की आपदाएं है। हर साल हर बरसात ये आपदाएं पहाड़ की चट्टान जैसी चुनौतियां खड़ी कर देती है। और ऐसे न भरने वाले ज़ख्म दे जाती है जो रह रह कर कष्ठ देते है। एक ही दर्दनाक स्थिति से गुजर रहा है रेडियो पर बोलने वाला उत्तराखंड के बेटे पंकज जीना का गांव।

पंकज जीना ने रेडियो के माध्यम बहुत ख्याति पाई है।आज उन्हें सिर्फ उत्तराखंड ही नही बल्कि पूरे देश मे उनकी आवाज़ गूंजती है। लेकिन आज पंकज जीना व उनका गांव ऐसी स्थिति से गुजर रहा है जहां अपनी आवाज सरकार तक पहुँचाने के लिए उन्होंने काफी संघर्ष किये। जब कुछ हासिल न हुआ तब उन्होंने सोशल मीडिया की मदद ली। उन्होंने पोस्ट के जरिये अपनी बात रखी और कहा-

हमको आदत हो गयी है वादों की।मेरा घर, नैनीताल के चोपड़ा गाँव में है।अक्टूबर का महीना था और साल 2021, मेरे गाँव चोपड़ा में, जहाँ मेरा घर है, उसके ठीक ऊपर एक चट्टान का टूटना शुरु हुआ, दरअसल उस चट्टान के ऊपर बहुत बड़े पत्थर थे, जो टूटने लगे।बरसात के साथ उन चट्टानों के गिरने से, गाँव वालों से लेकर,प्रशाशन तक, सब परेशान हो गए थे।सबकी चर्चाओं में, वह गिरते पत्थर प्रमुख केंद थे।उन दिनों चुनाव होने वाले थे इसीलिए हमारे गाँव को आश्वासन देहरादून तक से मिल गए।ऐसा लग रहा था, कुछ ही दिनों में उन पत्थरों से बचाव के लिए क़दम उठाये जायेंगे।उम्मीद पर जैसे दुनिया क़ायम है, हम भी वैसे ही क़ायम थे।अधिकारी आए, बैठे और कुछ फाइलों में, रिपोर्ट दर्ज़ करके चले गए।वह बेमौसम बरसात गयी तो, अधिकारी भी कहीं ग़ायब हो गए।

देहरादून वालों ने तो, जवाब देना ही बन्द कर दिया।गाँव के कुछ लोग अधिकारियों और नेतागणों से मिलते रहे और राजनीति चलती रही।फ़ाइल बन्द हुई और रिपोर्ट में लिखा गया, घर को कोई ख़तरा नहीं है।कल से बारिशें पहाड़ों में फिर से शुरू हुई, पत्थरों का दुबारा गिरना शुरू हो गया।तबाही के मुहाने पर, अब पूरा गांव आ गया है।लोगों के, बरसों मेहनत से बसाए आशियाने पर, प्रकृति का प्रकोप गिरने वाला है लेकिन अफ़सोस की बात है, इस बात की किसी को फ़िक्र नहीं है।अब इलेक्शन नहीं हैं न, नहीं तो,मेरे गाँव की बातें भी hot टॉपिक होती।हम घर के बेटे गाँव से दूर, रोटियों के इंतज़ाम में, जब ख़ुद को गला रहे हैं, वहाँ हमारा गाँव बर्बाद होने की राह पर खड़ा है।घर के मवेशी परेशान हैं और साहेब लोग तो, वैसे भी इन चीज़ों की फ़िक्र नहीं करते।

यह सिर्फ पंकज की कहानी या उन्ही की समस्या नही है।आज पहाड़ के कई गांव कई क़स्बे इन्ही समस्याओं से गुजर रहे है। लेकिन उनकी सुध लेने वाला कोई नही। पंकज जीना ने सोशल मीडिया के माध्यम से मदद की गुहार लगाई। खानपुर विधानसभा के विधायक उमेश कुमार ने उनकी मदद के लिए सीएम धामी को पत्र भी लिखा है। जिससे एक उम्मीद जागी है की शायद जल्द कुछ निर्णय हो।

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