क्यों उत्तराखंड के जंगलों में बेकाबू हो जाती है आग ?

क्यों उत्तराखंड के जंगलों में बेकाबू हो जाती है आग ?

उत्तराखंड के जंगलों में बीते 24 घंटे में वनाग्नि की 43 घटनाएं रिपोर्ट हुई हैं। इसमें कुमाऊं के जंगलों में 33 जगहों पर आग लगने की घटनाएं सामने आई हैं। आठ घटनाएं गढ़वाल मंडल और दो वन्यजीव क्षेत्र में हुई हैं। इन घटनाओं में राज्य में करीब 75 हेक्टेअर क्षेत्रफल से ज्यादा की वन संपदा को नुकसान पहुंचा है।

हर साल उत्तराखंड के जंगलों में आग लगने की घटनाएं सामने आती हैं। साल-दर-साल जंगलों की ये आग विकराल होती जा रही है। गर्मी आते ही जंगलों में आग लगने की घटनाएं बढ़ जाती हैं। अप्रैल में एक दिन में ही सूबे के जंगलों में आग लगने की 54 घटनाएं हुईं। जिनमें कुल 75 हेक्टेयर वन क्षेत्र को भारी नुकसान पहुंचा। कुमाऊं और वन्यजीव आरक्षित क्षेत्र में दो व्यक्ति आग की चपेट में आने से झुलस भी गए। फायर सीजन में अब तक कुल 544 घटनाओं में 657 हेक्टेयर वन क्षेत्र जल चुके हैं, जिससे वन संपदा का भारी नुकसान हुआ है।

नई टिहरी, रानीखेत, अल्मोड़ा, बागेश्वर, पिथौरागढ़, चंपावत, नरेंद्रनगर, उत्तरकाशी, तराई पूर्वी, लैंसडौन, हल्द्वानी, रामनगर, रुद्रप्रयाग, केदारनाथ वन प्रभाग, कालागढ़ टाइगर रिजर्व और राजाजी टाइगर रिजर्व व नंदा देवी राष्ट्रीय पार्क में जंगल की आग की घटनाएं दर्ज की गई हैं। गढ़वाल में 211, कुमाऊं में 287 और वन्यजीव क्षेत्रों में अब तक 46 वनाग्नि की घटनाएं हुई हैं। अपर प्रमुख वन संरक्षक निशांत वर्मा का कहना है कि आरक्षित वनों में अब तक 376 और सिविल या वन पंचायतों में अब तक 168 वनाग्नि की घटनाएं हुई हैं। लैंसडौन, दुगड्डा व जयहरीखाल के जंगलों में भी आग लगने की घटनाएं सामने आई हैं।

सेना के जवानों को संभाला मोर्चा 

जयहरीखाल के सिविल जंगलों की आग लैंसडौन में छावनी क्षेत्र के जंगल तक पहुंच गई थी। भीषण गर्मी और तेज हवा के कारण एक जंगल से आग दूसरे जंगल में फैल जाती है। लैंसडौन में लगी आग को बुझाने के लिए सेना के जवानों को मोर्चा संभालना पड़ा। यही हाल कोटद्वार का भी रहा जहां के जंगलों की आग बुझाने के लिए पहुंचे सेना के जवानों को मोर्चा संभालना पड़ा। पौड़ी, बीरोंखाल, श्रीनगर, कुंडीगांव के सिविल वनों में भी आग लगने की घटनाएं सामने आईं। पौड़ी रेंज के सिगड़ व पोखड़ा के छांचरौ में आग की दो घटनाएं हुई जिसमें करीब 7 हेक्टेयर वन संपदा को नुकसान पहुंचा। गढ़वाल वन प्रभाग की पूर्वी अमेली रेंज थलीसैंण के अंतर्गत चौंरीखाल व पश्चिमी अमेली रेंज के घंडियाल धार, बाडियू में वनाग्नि की रोकथाम के लिए कंट्रोल बर्निंग की गई। डीएफओ स्वप्निल अनिरुद्ध ने बताया कि अभी तक वनाग्नि की 20 घटनाएं हो चुकी हैं।

सिणजी, पीपलकोटी और पुरसाड़ी के ऊपर चीड़ के जंगलों में भी आग लगने की घटनाएं हुई हैं। श्रीनगर व कीर्तिनगर क्षेत्र के ग्रामीण इलाकों के जंगलों में आग लगने वन संपदा जलकर राख हो गई। कीर्तिनगर के बडोन, बडोला, पाली व चौरास के समीपवर्ती जंगलों में भी आगजनी की घटनाएं हुई हैं। वन विभाग की ओर से मुख्यालय में कंट्रोल रूम स्थापित किया गया है। जंगल की आग की सूचना देने के लिए नंबर भी जारी किए गए हैं। जंगल में आग की घटना होने पर 18001804141, 01352744558 नंबर पर कॉल की जा सकती है या फिर 9389337488 व 7668304788 पर वाट्सएप के माध्यम से इसकी सूचना दी जा सकती है। राज्य आपदा कंट्रोल रूम देहरादून को भी 9557444486 और हेल्पलाइन 112 पर भी आग की घटना की सूचना दे सकते हैं।

हेलीकॉप्टर से बुझी नैनीताल के जंगलों की आग

गर्मी बढ़ने के साथ ही कुमाऊं के जंगलों में आग बेकाबू हो गई है। नैनीताल के जंगलों में लगी आग को वायु सेना के हेलीकॉप्टर के जरिए बुझाया गया। हेलीकॉप्टर ने 10 बार भीमताल झील से पानी भरा और उसे जंगलों में छोड़ा तब जाकर आग पर काबू पाया गया। वायु सेना के हेलीकॉप्टर एमाई-17 ने भीमताल झील से पानी भरकर लड़ियाकाटा के जंगलों में छोड़ा और आग पर काबू पाया। हफ्तेभर में ही कुमाऊं के जंगलों में आग लगने की 225 घटनाएं सामने आई हैं। इससे 288 हेल्टेअर वन संपदा को नुकसान पहुंचा है।

भवाली के पाइंस-लडियाकाटा एरिया में हेलीकॉप्टर के साथ-साथ ग्राउंड पर फॉरेस्ट टीम ने अभियान चलाया और जंगल में आग पर काबू पाने में मदद मिली। आग लगने की सबसे ज्यादा घटनाएं नैनीताल वन प्रभाग में हुई हैं।  नैनीताल वन प्रभाग में आग लगने की 28 घटनाएं सामने आई हैं। पिथौरागढ़ जनपद में 69, बागेश्वर में 11, चंपावत में 37, अल्मोड़ा 43 और ऊधम सिंह नगर में 41 घटनाएं हुई हैं। मंडलायुक्त दीपक रावत ने कहा कि सड़क किनारे आग की घटनाओं के लिए फायर ब्रिगेड की निगरानी संबंधित जिलों के डीएम और एसएसपी करेंगे। उन्होंने बताया कि वनाग्नि के प्रति संवेदनशील गांवों के ग्राम विकास अधिकारी एवं ग्राम पंचायत अधिकारी को नोडल अधिकारी के रूप में नामित किया गया है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की समीक्षा बैठक में शामिल होने के बाद आयुक्त ने वनाग्नि को लेकर अधिकारियों को दिशा निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि वनाग्नि की घटना पर वन विभाग, जिला प्रशासन व पुलिस अधिकारी आपसी समन्वय के साथ कार्य करें।

आग बुझाने वालों को मिलेगा एक लाख का पुरस्कार

उत्तराखंड के जंगलों में हर साल लगने वाली आग को बुझाने में ग्रामीणों की अहम भूमिका रहती है, लेकिन इसके एवज में उन्हें कुछ नहीं मिलता। पहली बार धामी सरकार इस काम के लिए ग्रामीणों को प्रोत्साहन राशि देने जा रही है।

उत्तराखंड के वन मंत्री सुबोध उनियाल का कहना है कि जंगल की आग बुझाने पर प्रदेश सरकार वनाग्नि प्रबंधन समितियों को 25 हजार रुपये से लेकर एक लाख रुपये तक का इनाम देगी। विशेष परिस्थितियों में जंगलों की आग बुझाने के लिए हेलिकॉप्टर की भी मदद ली जाएगी। उनका कहना है कि बिना जनसहभागिता के जंगल की आग से नहीं निपटा जा सकता। ग्राम प्रधानों की अध्यक्षता में 541 वनाग्नि प्रबंधन समितियों का गठन किया गया है, जिन्हें सीजन के लिए 30-30 हजार रुपये प्रोत्साहन राशि दी गई है, जबकि उत्कृष्ट काम करने वाली 13 वनाग्नि प्रबंधन समितियों को एक-एक लाख रुपये, 13 समितियों को 50-50 हजार रुपये एवं 13 वनाग्नि प्रबंधन समितियों को 25-25 हजार रुपये का पुरस्कार दिया जाएगा।

उन्होंने कहा जंगल में आग लगने की तीन प्रमुख वजह है। किसान खेतों में खरपतवार जलाते हैं। दूसरा जंगल में जलती बीड़ी, सिगरेट फेंकने एवं तीसरा शरारती तत्वों की ओर से जंगल में आग लगाने से वनाग्नि की घटनाएं होती हैं। शरारती तत्वों से सख्ती से निपटा जा रहा है। अब तक 23 मामलों में 29 लोगों के खिलाफ नामजद मुकदमा दर्ज किया गया है।

सरकार ने फॉरेस्ट फ्रेंडली पॉलिसी बनाई है। वन पंचायत भूमि पर कृषिकरण को मंजूरी दी गई है, जबकि ईको टूरिज्म के तहत लोगों को रोजगार दिया जा रहा है।

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