हिमालय की जड़ों को समझने हेतु पांगू-अस्कोट-आराकोट की यात्रा का महत्व

हिमालय की जड़ों को समझने हेतु पांगू-अस्कोट-आराकोट की यात्रा का महत्व

‘पहाड़’ द्वारा आयोजित की जा रही पांगू-अस्कोट-आराकोट यात्रा अभियान हेतु आनलाइन रजिस्ट्रेशन के माध्यम से देश दुनिया से करीब सौ लोगों ने यात्रा अभियान में भाग लेने हेतु रुचि दिखाई है। सु-विख्यात पर्यावरणविद स्व. सुंदरलाल बहुगुणा की प्रेरणा से संग्रामी श्रीदेव सुमन के जन्मदिन पर वर्ष 1974 से निरंतर प्रति दस वर्षो बाद आयोजित की जा रही इस महत्वपूर्ण यात्रा अभियान का यह 50वां वर्ष है।

सी एम पपनैं

उत्तराखंड पर्वतीय अंचल के पूर्वी कोने पर नेपाल सीमा पर स्थित पांगू, जिला पिथौरागढ़ के शंश्यै-गवला मंदिर प्रांगण से पांगू-अस्कोट-आराकोट की छठी यात्रा अभियान का शुभारंभ 25 मई को ‘पहाड़’ के संस्थापक व प्रसिद्ध इतिहासकार व लेखक पद्मश्री डॉ.शेखर पाठक के नेतृत्व, उत्तराखंड मुक्त विश्व विद्यालय के प्रोफेसर गिरजा पांडे के संचालन तथा सुविख्यात पर्यावरण विद व सर्वोदय गांधीवादी पद्मभूषण चंडी प्रसाद भट्ट, प्रोफेसर प्रकाश उपाध्याय (नेहरू मेमोरियल), ललित पंत (संस्थापक पहाड़), राजीव लोचन साह (संपादक नैनीताल समाचार) अखिल रमेश (कर्नाटक), भूपेन सिंह (हल्द्वानी), गजेन्द्र रौतेला (अगस्त मुनि), महेश पुनेठा (पिथौरागढ़), अल्का कौशिक, प्रोफेसर उमा पंत, आशुतोष उपाध्याय, चन्दन डांगी इत्यादि इत्यादि के सानिध्य में होने जा रहा है।

प्राप्त सूचना के मुताबिक ‘पहाड़’ द्वारा आयोजित की जा रही पांगू-अस्कोट-आराकोट यात्रा अभियान हेतु आनलाइन रजिस्ट्रेशन के माध्यम से देश दुनिया से करीब सौ लोगों ने यात्रा अभियान में भाग लेने हेतु रुचि दिखाई है। सु-विख्यात पर्यावरण विद स्व. सुंदरलाल बहुगुणा की प्रेरणा से संग्रामी श्रीदेव सुमन के जन्मदिन पर वर्ष 1974 से निरंतर प्रति दस वर्षो बाद आयोजित की जा रही इस महत्वपूर्ण यात्रा अभियान का यह 50वां वर्ष है, जिसका पहला चरण अधिक व्यापक रूप में आयोजित किया जा रहा है।

उत्तराखंड की विभिन्न संस्थाओं के कार्यकर्ता, विभिन्न विश्व विद्यालयों तथा उत्तराखंड व हिमाचल के इंटर कालेजों तथा हाई स्कूलों के शोधार्थी छात्र, प्राध्यापक, पत्रकार, चित्रकार, छायाकार, यूट्युबर, सोशल मीडिया ब्लागर, लेखक, रंगकर्मी, वैज्ञानिक, समाज वैज्ञानिक, आर्गेनिक काश्तकार, सामाजिक व राजनैतिक कार्यकर्ता, कर्नाटक, तमिलनाडु, तेलंगाना से खेतों, बीज और जलागम के विषयों में रुचि लेने वाले लोगों और देश के अन्य हिमालय प्रेमियों द्वारा बड़ी संख्या में आयोजित यात्रा अभियान से जुड़ने हेतु पुष्टि की गई है। यात्रा अनेक टोलियों में अनेक मार्गो में सम्पन्न होनी है। आयोजित यात्रा अभियान की थीम ‘स्त्रोत से संगम’ रखी गई है ताकि नदियों से समाज के रिश्ते को गहराई और समग्र जलागम के संदर्भ में समझा जा सके।

आयोजित अभियान के माध्यम से सामान्यतया उत्तराखंड की विगत पांच दशकों की और विशेष रूप से उत्तराखंड राज्य गठन के बाद पिछले ढाई दशक में क्या स्थिति बनी है? लंबे आंदोलनों और कुर्बानियों के बाद हासिल हुए नए राज्य में लोगों की आकांक्षाओं का क्या हुआ? क्या उन्हें उनके हिस्से का लोकतन्त्र और विकास नसीब हुआ? इत्यादि इत्यादि की समग्र स्थिति के साथ-साथ मिट्टी, पेड़, पानी, वन्य जीवन, खनिज, स्वास्थ्य, सफाई, सड़क, शिक्षा, कुटीर उद्योग, नशा, पर्यटन, प्राकृतिक संसाधनों में सिमटाव, नई आर्थिक नीति, उदारीकरण, पहाड़ों में शराब का अंत हित विस्तार, बांध तथा आपदा विस्थापितों की दशा, कैंसर और एड्स जैसे विभिन्न रोगों के साथ कोविड से उत्पन्न हुई स्थितियों को समझने तथा गैर सरकारी संस्थाओं की भूमिका जैसे तमाम विषयों की पड़ताल और उक्त विषयों पर केन्द्रित बातचीत स्थानीय जनमानस से आयोजित यात्रा अभियान के दौरान होनी है। उक्त आयोजित महत्वपूर्ण यात्रा अभियान से निष्कर्ष स्वरूप पचास सालों की समग्र स्थिति का एक जनोपयोगी तथा क्षेत्रपयोगी रपट तैयार करने में सहायता मिलेगी।

आयोजित अभियान के सदस्य 6 जिलों पिथौरागढ़ के गांवों में 25 मई से 1 जून, बागेश्वर के गांवों में 2 जून से 6 जून, चमोली के 7 से 18 जून, रुद्रप्रयाग के 19 जून से 21 जून, टिहरी के 22 जून से 26 जून, उत्तरकाशी के 27 जून से 6 जुलाई तथा देहरादून के गांवों में 7 जुलाई तथा 8 जुलाई को उत्तराखंड के पश्चिमी कोने में हिमाचल से लगी सीमा पर स्थित राजकीय इंटर कालेज आराकोट, जिला उत्तरकाशी में अध्ययन यात्रा अभियान समाप्त होनी है। आयोजित अभियान के विभिन्न पड़ाओं पर स्थानीय ग्रामीण जनों, स्कूली बच्चों व लोक कलाकारों द्वारा विभिन्न विधाओं के कार्यक्रम भी मंचित किए जाने हैं। यात्रा की इस अवधि में रैणी चिपको आंदोलन के 50 वर्ष पूरे होने पर रैणी, गोपेश्वर तथा गुप्तकाशी में आयोजन आयोजित होने हैं।

45 दिन की इस महत्वपूर्ण यात्रा में अभियान दल के सदस्य पांगू, अस्कोट, मुनस्यारी, नामिक, मानाटोली, रैणी, जोशीमठ, पीपल कोटी, गोपेश्वर, तुंगनाथ, मण्डल, उखीमठ, फाटा, त्रिजुगी नारायण, घुन्तु, बुढ़ा केदार, उत्तरकाशी, बड़कोट, पुरोला, त्युनी तथा आराकोट की इर्दगिर्द के लगभग 350 गांवों में प्रत्यक्ष जाएंगे। 35 नदियों, 16 बुग्यालों-दर्रो, 20 खरको, भूकंप और भूस्खलन से प्रभावित क्रमशः 15 क्षेत्रों और अनेक घाटियों, 15 उजड़ी चट्टियों, चिपको आंदोलन के 8 क्षेत्रों, 5 जनजातीय क्षेत्रों, 5 तीर्थ यात्रा मार्गों और 3 भारत-तिब्बत मार्गों से गुजरने वाली यह यात्रा लगभग 1150 किलोमीटर की होगी।

आयोजित किए जा रहे इस छठे यात्रा अभियान में इस बार कुछ नए मार्गो से यात्रा करने की योजना भी बनाई गई है। ये वे मार्ग हैं जिन मार्गो पर ह्वेंसांग (सातवी सदी के पूर्वार्ध), आन्द्रादे (1624), डैनियल चाचा भतीजे (1789), थामस हार्डविक (1796), विशप हैबर (1824), पी बेरन (1839-1842) इत्यादि इत्यादि द्वारा यात्राएं की गई थी। उक्त कालखंड की इन यात्रा अभियानों का तत्कालीन विवरण और यात्रा वृतांत पहले से उपलब्ध है।

पचास वर्ष पूर्व 25 मई 1974 को पहली बार मनोरंजन अथवा सैरसपाटे के भावों से विरक्त दूरस्थ-दुर्गम उत्तराखंड का आंखों देखा यथार्थ व्यापक रूप में आयोजित की गई जनाधारित 45 दिन की पांगू-अस्कोट-आराकोट यात्रा के दौरान सामने आया था। अभियान दल के सदस्य यात्रा के दौरान लगभग 750 किलोमीटर की यात्रा में 9 से 14 हजार फिट तक के तीन पर्वत शिखरों के साथ ही 200 से अधिक गांवों व कस्बों से गुजरे थे। आयोजित इस पहली यात्रा में अंचल के शिक्षा, स्वास्थ तथा पलायन को लेकर जो कमियां चिन्हित हुई थी ये सब कालांतर में ’पहाड़’ विमर्श का हिस्सा बनी थी।

बाद के दशक में यात्रा को और विस्तार दिया गया था। पांगू से अस्कोट, वान से रामणी, झिंझी, पाणा, कुंवारी पास, ढाक, तपोवन-रैणी, जोशीमठ होकर गोपेश्वर, घुन्तू-बूढ़ा केदार-उत्तरकाशी आदि आदि नए स्थान और मार्ग इस यात्रा अभियान में जोड़े गए थे।

संयोग से आयोजित यात्रा के पहले अभियान वर्ष 1974 में अंचल में ‘चिपको आंदोलन’ का जन्म हुआ था। उसके बाद प्रति दस वर्षो के अंतराल में आयोजित की गई अस्कोट-आराकोट यात्रा वर्ष में ही संयोग से 1984 में ‘नशा नहीं रोजगार दो आंदोलन’, 1994 में ‘उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलन’ के साथ ही यमुना घाटी में धूम सिंह नेगी के नेतृत्व में ‘बीज बचाओ आंदोलन’ इत्यादि इत्यादि चले थे। अवलोकन कर स्पष्ट तौर पर कहा जा सकता है, उक्त आंदोलन अस्कोट-आराकोट यात्रा को ऐतिहासिक अमरता प्रदान करते नजर आए हैं।

अवलोकन कर ज्ञात होता हैं, पद्मश्री डॉ. शेखर पाठक के नेतृत्व में ‘पहाड़’ के सभी क्रिया-कलाप जनहित से जुडे़ रहे हैं। हिमालय तथा पहाड़ों संबंधी अध्ययन तथा सामाजिक आंदोलनों में हिस्सेदारी और सहयोग में लगी यह एक गैर सरकारी, अव्यवसायिक तथा सदस्यों के अवैतनिक सहयोग से चलने वाली संस्था है। ‘पहाड़’ का कोई भी अभियान प्रोजेक्ट आधारित नहीं होता है।

‘पहाड़’ यात्राओं का आयोजन करती है। इन यात्राओं में अस्कोट-आराकोट यात्रा सबसे महत्वपूर्ण और हर दशक में आयोजित होने वाला यात्रा अभियान है। हिमालय के विविध क्षेत्रों, आपदा प्रभावित क्षेत्रों और उच्च हिमालयी क्षेत्रों में भी अध्ययन यात्राए होती रही हैं। आयोजित यात्राओं से ‘पहाड़’ के सदस्यों तथा यात्रा में भाग लेने वाले अन्य सदस्यों को हिमालय की प्रकृति और जीवन के यथार्थ को देखने और समझने का प्रत्यक्ष मौका मिलता रहा है। अभियान के प्रत्येक दशक में अंचल में हुए परिवर्तनों को समझने की कोशिश यात्रा अभियान दल सदस्यों द्वारा की जाती रही है।

‘पहाड़’ द्वारा आयोजित अन्य यात्रा अभियानों में 1975 में श्रीनगर-शिमला, 1976 अल्मोड़ा-श्रीनगर, 1977 नैनीताल-गोपेश्वर, 1984 कोटद्वार-कर्णप्रयाग तथा 1984-1994 के दौरान उत्तराखंड से अन्य हिमालयी राज्यों जम्मू-कश्मीर, हिमाचल, सिक्किम, अरूणाचल के साथ-साथ बाहरी हिमालयी देशों में नेपाल, भूटान तथा तिब्बत इत्यादि के साथ-साथ दुनिया के अन्य पहाड़ी क्षेत्रों की यात्राए भी की गई हैं। जिन्हें अभियान दल सदस्यों द्वारा लेखों व व्याख्यानों के माध्यम से लोगों के सामने समय-समय पर प्रस्तुत किया जाता रहा है।

2014 में आयोजित पांचवे अस्कोट-आराकोट यात्रा जिसे पांगू से सु-विख्यात पर्यावरणविद व पद्मभूषण चंडी प्रसाद भट्ट द्वारा रवाना किया गया था, उक्त यात्रा को जंगम विश्व विद्यालय नाम दिया गया था। इस यात्रा अभियान में अमरीका, कनाडा और जर्मनी से आए शोधार्थियों तथा प्राध्यापकों सहित भारत के आठ राज्यों के लगभग 200 से अधिक लोगों ने हिस्सेदारी की थी।

प्राप्त सूचना मुताबिक इस वर्ष 2024 के अंतिम महीनों में टनकपुर से डाक पत्थर (तराई-भावर-दून) यात्रा को अभियान के दूसरे चरण के रूप में आयोजित करने की योजना है। 2024 में ही हितैषिणी संस्था द्वारा गरुण गंगा घाटी में यात्रा अभियान आयोजित किया जाना है।

विगत पांच दशकों में खासकर नए राज्य गठन के ढाई दशक बाद उत्तराखंड का प्राकृतिक चेहरा जल, जंगल, जमीन, खनन, बांध, सड़क आदि के बहाने कितना घटा है? अर्थव्यवस्था किस बिन्दु पर है? सामाजिक तानाबाना किस स्थिति में है? सामाजिक राजनैतिक चेतना में कितना इजाफा हुआ है? अंचल में आर्थिक और सांस्कृतिक घुसपैठ कितनी बढ़ी है? पलायन का क्या रूप है? गांव के हाल कितने बदले हैं? शिक्षा, चिकित्सा, सड़क, पानी, शराब, विभिन्न आपदाओं तथा महिलाओं, बच्चों, सहित पर्वतीय जीवन के अन्य पक्षों की क्या स्थिति है? यह सब जानने समझने के लिए 25 मई से 8 जुलाई 2024 के बीच आयोजित ‘पांगू-अस्कोट-आराकोट’ 45 दिन की अध्ययन यात्रा का हिमालयी राज्य उत्तराखंड के परिप्रेक्ष्य में बहुत बड़ा महत्व नजर आता है। हिमालय की जड़ों व हो रहे हास को समझने की ठोस पहल नजर आती है।

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