उत्तराखंड देवभूमि में कई रहस्य देखने को मिलते है। जिनके बारे में कई कहानियां हमने बचपन से सुनी, पढ़ी हुई है। ऐसी ही एक रहस्यमई जगह उत्तराखंड के टिहरी में स्थिति है जिसका नाम है खैन्ट पर्वत। खैन्ट पर्वत परियों के देश के नाम से जाना जाता है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या सच में इस पर्वत पर परियां निवास करती है ?
खैंट पर्वत में आंछरियों यानी पारियों का वास है। आंछरियों को शोर शराबा, संगीत और चटकीले कपडे पसंद नही है इसलिए यहां पर इनकी मनाही है । खैंट पर्वत से संबंधित जीतू बगड़वाल की कहानी तो आपने सुनी ही होगी। जीतू की बांसुरी की धुन सुनकर आंछरियों जीतू पर मोहित हो गई थी जिसके बाद वे जीतू को अपने साथ ले गई।
खैट पर्वत इलाक़े में स्थित थात गांव से 5 किमी की दूरी पर खैटखाल मंदिर है, जिसे रहस्यमयी शक्तियों का केंद्र भी कहा जाता है। स्थानीय लोग इसे परियों या आंछरियों के मंदिर के रूप में भी पूजते है। यहां प्रतिवर्ष जून माह में मेला लगता है। कई लोगों ने इस पर्वत के असल रहस्य को जानने की कोशिश की। इसी पेश में अमेरिका के मैसासयुसेट्स विश्वविद्यालय ने इस पर्वत पर एक शोध किया था। इस शोध में उन्होंने पाया कि, यहां कुछ ऐसी शक्ति है, जो अपनी ओर आकर्षित करती है। स्थानीय लोगों का कहना है कि इस पर्वत पर 9 परियां रहती हैं। यहां पर आज भी आंछरियों के निशान पाए जाते है। जिनमें उनकी अनाज कूटने की ओखलियां भी पाई जाती है। आश्चर्यजनक बात यह है कि यहां अनाज कूटने वाली ओखलियां जो समतल पर बनी होती है, खैट पर्वत पर ये ओखलियां दीवारों पर बनी हैं।
खैट पर्वत से जुड़ी कहानी है प्रचलित
सदियों पहले टिहरी गढ़वाल के चौदाण गांव में राजा आशा रावत का राज हुआ करता था। राजा की छह पत्नियां थी, लेकिन उनका कोई पुत्र नहीं था। राजा इससे बेहद बहुत परेशान रहने लगे थे। राजा की परेशानी देखकर उनकी पहली पत्नी ने कहा कि आप राजा हो तो आप 7वां विवाह कर सकते हो। इसके बाद राजा आशा रावत पास ही के थात गांव गए तो वहां दीपा पवार नाम के एक शख़्स ने उनकी ख़ूब खातिरदारी की।
दीपा पवार ने जब राजा साहब से थात गांव आने का कारण पूछा तो राजा ने कहा, मैं आपकी छोटी बहन देवा से शादी करना चाहता हूं। यह सुन कर पूरा गांव उत्साहित हो उठा। इसके बाद राजा का विवाह देवा से हो गया और देवा चौदाण रानी बन गईं। इसके कुछ समय बाद रानी देवा ने एक के बाद एक पूरे 9 बच्चों को जन्म दिया, जिनका नाम राजा ने कमला रौतेली, देवी रौतेली, आशा रौतेली, वासदेइ रौतेली, इगुला रौतेली, बिगुल रौतेली, सदेइ रौतेली, गरादुआ रौतेली और वरदेइ रौतेली रखा था।
राजा आशा रावत और रानी देवा की ये बेटियां आम बच्चों की तरह नहीं थी, बल्कि चमत्कार से कम नहीं थीं। 12 वर्ष की उम्र तक सभी बेहद सुंदर दिखने लगी थीं। कहा जाता है कि एक रात सभी बहनें गहरी नींद में सोई हुई थीं इस दौरान उनके सपने में सेम नागराज आए और उन्होंने सभी बहनों को अपनी रानी बना लिया। लेकिन जब सुबह उठते ही सभी बहनें जल स्रोत गईं तो उन्होंने देखा कि उनके गांव में अंधेरा पसरा पड़ा है जबकि ऊंचे पर्वतों पर धूप खिली हुई है। सूरज की इसी तलाश में जब सभी बहनें खैट पर्वत पहुंचीं तो आंछरी (परियां) बन गईं। स्थानीय लोगों की मान्यता है कि ये आज भी खैट पर्वत पर परियां बनकर घूमती हैं।
दरअसल, उत्तराखंड में कुल देवता को प्रसन्न करने की पूजा विधि के दौरान भी राजा आशा रावत और रानी देवा की बेटियों का आंछरी (परियां) बनाने की ये कहानी उल्लेखित होती है। इसलिए भी इस कहानी को सच माना जाता है और खैट पर्वत को परियों का देश कहा जाता है।
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