अजीत डोभाल को लगातार तीसरी बार राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) नियुक्त किया गया है। अजीत डोभाल को पहली बार 31 मई 2014 को देश का राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार नियुक्त किया गया था। तब से अजीत डोभाल ही इस पद को संभाल रहे हैं। 1968 बैच के आईपीएस अधिकारी अजीत डोभाल को कूटनीतिक सोच और काउंटर टेरेरिज्म का विशेषज्ञ माना जाता है।
पीएम मोदी की आंख और कान’ कहे जाने वाले उत्तराखंड में जन्मे 1968 बैच के आईपीएस अफसर अजीत डोभाल को तीसरी बार भारत का एनएसए बनाया गया है। आईबी के चीफ रहे अजीत डोभाल 31 मई 2014 को पहली बार प्रधानमंत्री के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बने थे। उसके बाद 2019 में और अब तीसरी बार एनएसए बने हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद का मुखिया राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार होता है। जिसका मुख्य काम प्रधानमंत्री को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर सलाह देना होता है। एनएसए का यह पद 1998 में पहली बार उस वक्त बना था जब देश में दूसरी बार परमाणु परीक्षण किया गया था। यह सरकार में एक अत्यंत महत्वपूर्ण ओहदा है।
अजीत डोभाल का जन्म 20 जनवरी 1945 को पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड में हुआ। वह बेहद तेज तर्रार अधिकारी माने जाते हैं। उनकी विशिष्ट सेवाओं के लिए उन्हें 1988 में उन्हें कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गया जो कि आम तौर पर सैन्य बलों को वीरता के लिए दिया जाता है। इसके अलावा वह भारतीय पुलिस पदक पाने वाले सबसे युवा अधिकारी थे। वह गैर सरकारी संस्था विवेकानंद की शाखा विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन के निदेशक रह चुके हैं।
370, सर्जिकल स्ट्राइक, डोकलाम या फिर कूटनीति के फैसले देश की उम्मीदों पर अजीत डोभाल खरे उतरे हैं। पुलवामा का बदला, जिसे पाक नहीं भूल पाएगा। पुलवामा हमले के एक पखवाड़े के भीतर पाकिस्तान में घुसकर आतंकियों का सफाया करने की वायुसेना की रणनीति को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के नेतृत्व में तैयार किया गया था। वायुसेना, नौसेना के शीर्ष अधिकारियों से रणनीति पर चर्चा से लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पल-पल की जानकारी देने तक में उनकी अहम भूमिका रही।
काम ही उनकी पहचान
उरी हमले के बाद 2016 में हुए सर्जिकल स्ट्राइक के मुकाबले इस बार चुनौती और कड़ी थी क्योंकि पाकिस्तान ने पुलवामा हमले के तुरंत बाद अपनी सेना को अलर्ट कर दिया था। सीमा पर मौजूद लांचिंग पैड से आतंकियों को सुरक्षित स्थानों पर भेज दिया था। इलाके में बर्फबारी भी कमांडो कार्रवाई के लिए मुश्किलें खड़ी कर रही थी। तमाम चुनौतियों पर विचार करने के बाद हवाई हमले की योजना बनाई गई और लक्ष्य आतंकी संगठनों के गढ़ और ट्रेनिंग कैंप बालाकोट को बनाया गया।
दरअसल, डोभाल के एनएसए के पद पर रहते हुए कई ऐसी घटनाएं हुईं, जिसने मजबूत भारत की अवधारणा को आगे बढ़ाया। फिर वह साल 2016 की सर्जिकल स्ट्राइक हो या साल 2017 में 70 दिन तक चला डोकलाम गतिरोध। इसके शांतिपूर्ण हल में अजीत डोभाल की खास भूमिका रही। उनकी सलाह पर पूरे गतिरोध के दौरान भारत अपने रुख पर अड़ा रहा। भारत के बदले तेवर देखते हुए चीन को समाधान के लिए बाध्य होना पड़ा। अजीत डोभाल के बारे में कहा जाता है कि वह जैसे के साथ तैसा की रणनीति पर चलने वाले एनएसए हैं। इसका उदाहरण उनकी डोकलाम गतिरोध के दौरान चीन यात्रा से मिलता है। जब अजीत डोभाल बीजिंग में चीन के स्टेट काउंसिलर यांग जिएची से मिले थे तो उनसे पूछा गया था, ‘क्या ये आपका इलाका है?’ इस पर डोभाल ने कहा था, ‘क्या हर विवादित इलाका अपने आप चीन का हो जाता है?’ चीन को उनके जवाब के बाद भारत के रुख का अंदाजा हो गया था।
इसके अलावा डोभाल के एनएसए रहते भारत ने इस्राइल, यूएई और फ्रांस के साथ करीबी सामरिक रिश्ते विकसित किए हैं। पठानकोट एयरबेस अटैक को न्यूट्रलाइज करना हो या फिर अंडरवर्ल्ड डॉन छोटा राजन को गिरफ्तार करना। देश के अहम फैसलों में उनकी राय की अहमियत और खास जगहों पर उनकी मौजूदगी से यह जाहिर होता है। रक्षा, आंतरिक मामले और विदेश से जुड़े अहम मुद्दे डोभाल के जिम्मे हैं।
सुरक्षा नीति के चाणक्य
केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर के इतिहास में ऐतिहासिक अध्याय जोड़ दिया था। जम्मू-कश्मीर अब केंद्र शासित (यूटी) प्रदेश है। लद्दाख क्षेत्र को अलग यूटी बना दिया गया था। पिछले सत्तर साल से जिस अनुच्छेद 370 के तहत घाटी को विशेषाधिकार मिले थे, उसे एक ही मास्टरस्ट्रोक से बेअसर कर दिया गया था। अनुच्छेद 370 को हटाने का फैसला जितना अप्रत्याशित है, इसके पीछे की तैयारियां उतनी ही दिलचस्प हैं। बहुत ही पेशेवर तरीके से इस फैसले को अमलीजामा पहनाने का रणनीतिक खाका खींचा गया। सभी सुरक्षा एजेंसियों के साथ समन्वय कर ऐसी पुख्ता रणनीति बनाई गई कि किसी को कानोंकान खबर तक नहीं लगी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के एजेंडे में अनुच्छेद 370 को हटाना हमेशा से प्राथमिकता में था। मोदी-शाह की मजबूत इच्छाशक्ति वाले इस ऐतिहासिक फैसले को अमलीजामा पहनाने में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की भूमिका अहम रही। यही वजह है कि इसे ‘एमएसडी’ यानी मोदी, शाह, डोभाल का ‘मिशन कश्मीर’ कहा गया। इस एक रणनीतिक चाल की बदौलत कश्मीर में अलगाववादी सदमे में चले गए। अनुच्छेद 370 के हिमायती सियासी सूरमा हैरान-परेशान थे और पाकिस्तान बौखलाया हुआ था। उसे कुछ नहीं सूझ रहा था।
जब जम्मू-कश्मीर और केंद्र कारगिल युद्ध की 20वीं वर्षगांठ मनाने में व्यस्त थे, उसी दौरान एनएसए अजीत डोभाल ने 23 और 24 जुलाई को श्रीनगर का सीक्रेट दौरा किया था। इस ऑपरेशन को सफल बनाने के लिए अजीत डोभाल तब तक आर्मी, एयर फोर्स, एनटीआरओ, आईबी, रॉ, अर्द्धसैनिक बलों और राज्य की ब्यूरोक्रेसी के साथ सामंजस्य बना चुके थे। एनएसए ने इस प्लान को लागू करने के लिए बुनियादी इंफ्रास्ट्रक्चर जुटाए। पुलिस और सेना को कहा गया कि उनके पास जितने भी सैटेलाइट फोन हैं सभी को जमा किया जाए। आखिरकार 2000 सैटेलाइट फोन को सेना के अफसरों और राज्य सरकार के अफसरों के बीच बांटा गया ताकि इस फैसले को लागू करने के बाद जरूरत पड़ने पर इसका इस्तेमाल किया जाए। उस समय घाटी में लगभग 45 हजार जवान तैनात किए गए थे। इस पूरी कवायद के दौरान एनएसए और उनकी टीम ने पूरी गोपनीयता बनाए रखी।
पंजाब से नॉर्थ ईस्ट हो या कंधार से कश्मीर तक
डोभाल ने 1972 में इंटेलिजेंस ब्यूरो ज्वाइन कर लिया था। 46 साल की अपनी नौकरी में महज 7 साल ही उन्होंने पुलिस की वर्दी पहनी क्योंकि डोभाल का ज्यादातर वक्त देश के खुफिया विभाग में गुजरा है इसीलिए पहली नजर में डोभाल जितने सामान्य नजर आते हैं उनका करियर उतना ही करिश्माई रहा है। अजीत डोभाल एक ऐसे शख्स हैं जिन्हें देश की आंतरिक और बाह्य दोनों ही खुफिया एजेंसियों में लंबे समय तक जमीनी स्तर पर काम करने का लंबा अनुभव है। वह इंटेलिजेंस ब्यूरो के चीफ रह चुके हैं। उन्हें आंतरिक सुरक्षा के संदर्भ में काउंटर टेरेरिज्म का मास्टर माना जाता हैं क्योंकि पंजाब से लेकर नॉर्थ ईस्ट तक और कंधार से लेकर कश्मीर तक डोभाल ने देश और दुनिया में आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में अहम योगदान दिया है।
आतंकियों में फूट डालने की गजब की रणनीति
खुफिया ब्यूरो के पूर्व अफसर बताते हैं कि जब मिजोरम में उपद्रव चरम पर था, तब उस स्थिति को भी बदलने में अहम भूमिका निभाई थी। इसी तरह पंजाब और जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद को कुचलने में उनका खास रोल था। डोभाल ने पाकिस्तान स्थित भारतीय उच्चायोग में छह साल से ज्यादा समय तक काम किया। 90 के दशक में जब कश्मीर आतंकवाद की आग में झुलस रहा था तब डोभाल ने पाक समर्थित आतंकवादी संगठनों की कमर तोड़ने के लिए कुछ आतंकवादियों को भारत के पक्ष में तोड़ा था। इनमें कूका परे ने पाक समर्थित आतंकियों को चुन चुन कर मारना शुरू कर दिया था। यह और बात है कि कूका परे बाद में विरोधी आतंकियों की गोली का शिकार हो गया था।
6 साल के करियर में ही मिला पुलिस मेडल
मिजो नेशनल आर्मी को शिकस्त देकर डोभाल ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का भी दिल जीत लिया था। यही वजह है कि उन्हें महज 6 साल के करियर के बाद ही इंडियन पुलिस मेडल से सम्मानित भी किया गया जबकि यह पुरस्कार 17 साल की नौकरी के बाद ही दिया जाता है। डोभाल ने 1999 में वाजपेयी सरकार के दौरान अपहृत किए गए भारतीय विमान आईसी 814 के यात्रियों को कंधार से वापस लाने में भी बड़ी भूमिका निभाई थी। एनएसए अजीत डोभाल को पिछले साल पंत नगर यूनिसर्विटी ने मानद उपाधि से सम्मानित किया था।
नर्सों को आईएस के चंगुल से बचाया
ईराक में आतंकी संगठन आईएसआईएस ने 46 भारतीय नर्सों को बंधक बनाया था। नर्सों की वापसी को लेकर उस वक्त खूब हंगामा भी मचा था तब परदे के पीछे नर्सों की सुरक्षित वापसी के लिए जो ऑपरेशन चला उसके मास्टर माइंड अजीत डोभाल ही थे। पड़ोसी देशों के साथ रिश्तों की नई शुरुआत हो या फिर पश्चिमी देशों के साथ संबंधों का नया दौर, जानकार मानते हैं कि इन सारी कवायद के पीछे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार का ही दिमाग काम कर रहा है।
वेद पुराण और भारतीय संस्कृति में रूचि
अजीत डोभाल को मौजूदा भारतीय कूटनीति का चाणक्य कहा जाता है। वह एक ऐसे परिवार से आते हैं, जहां संस्कृत और ज्योतिष के प्रकांड ज्ञाता हुए हैं। खुद उनके दादा ने लाहौर कॉलेज से ज्योतिष का विधिवत अध्ययन किया था। अजीत डोभाल का झुकाव भी भारतीय वेद पुराणों, ग्रंथों और उपनिषदों की ओर रहा है। वह खुद भी इन ग्रंथों पर किताब लिखना चाहते थे, लेकिन खुफिया ब्यूरो जैसी सेवा की बाध्यता के चलते यह संभव नहीं हो सका।
देशसेवा परम धर्म
स्वभाव से बहुत धार्मिक अजीत डोभाल ने देशसेवा को सबसे बड़ा धर्म माना है। इसके लिए कई बार अपनी जान की बाजी लगाई है, कई बार मौत को चकमा देकर आए हैं। फील्ड में तैनात पुलिस अफसर से लेकर, पाकिस्तान और भारत में जासूसी तक, भारतीय वार्ताकार से लेकर एनएसए तक, अजीत डोभाल को जो भी जिम्मेदारियां दी गईं, उस पर खरे उतरे हैं। फादर प्रेम कुमार को आईएस के चंगुल से छुड़वाना या श्रीलंका में छह भारतीय मछुआरों को फांसी से एक दिन पहले माफी दिलवा देना, मसूद अजहर को आतंकवादी घोषित करने की राह में नौ साल से अंडगे लगा रहे चीन को मना लेना उनकी कूटनीतिक क्षमता का परिचायक है। देमचोक इलाके में स्थायी चीनी सैन्य कैपों को हटाना हो या डोकलाम का गतिरोध प्रभावी तरीके से हल करना हो, भारत के हिस्से में आई हर जीत का बड़ा श्रेय एनएसए अजीत डोभाल को जाता है। एनएसए अजीत डोभाल का 79 साल की उम्र में भी सुपरकॉप में वही जोश बरकरार है।
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