गर्मी और वनाग्नि ने बिगाड़ा पहाड़ी फलों का स्वाद, उत्पादन भी हुआ कम

गर्मी और वनाग्नि ने बिगाड़ा पहाड़ी फलों का स्वाद, उत्पादन भी हुआ कम

उत्तराखंड के नैनीताल जिले की रामगढ़, मुक्तेश्वर फल पट्टी अपने सीजनल फलों के लिए बेहद फेमस है। रामगढ़ का सेब, आड़ू, प्लम, खुमानी, नाशपाती की डिमांड पूरे देश में है।

डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

नैनीताल जिले के रामगढ़, धारी, भीमताल और ओखलकांडा ब्लॉक में आड़ू, खुमानी, पुलम आदि का बहुतायत से उत्पादन होता है। प्रदेश में उत्पादित होने वाले आड़ू में 70 प्रतिशत हिस्सेदारी केवल नैनीताल जिले की है। जहां करीब आठ हजार से अधिक काश्तकार फलों के उत्पादन से जुड़े हुए हैं। पहाड़ के फल स्वाद के साथ-साथ कई औषधीय गुणों से भरपूर हैं। जिस लोग बड़े चाव से खाते हैं। इन फलों में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के साथ-साथ एंटी ऑक्सीडेंट गुण भरपूर मात्रा में है।

भारत की कई बड़ी मंडियों में यहां के फल जाते हैं। जहां से ये फल विदेशों तक सप्लाई होते हैं। ऐसे में गर्मी का असर इन फलों की पैदावार में भी हुआ है। बीते साल बारिश के न होने और पहाड़ों में भी भीषण गर्मी पड़ने के कारण पिछले सालों के मुकाबले इस साल आड़ू, प्लम और नाशपाती की पैदावार बेहद कम हुई है। साथ ही फलों के दाने भी बेहद छोटे हुए हैं। ऐसे में काश्तकारों के सामने रोजी-रोटी का संकट आ चुका है।

नैनीताल जिले के ग्राम सभा सुनकिया के काश्तकार ने बातचीत के दौरान बताया कि इस बार समय से बारिश न होने के कारण फलों का उत्पादन बेहद कम हुआ है। यहां तक की पेड़ सूखने की कगार पर है। इस समय फलों का सीजन है। ऐसे में इस साल पिछले सालों के मुकाबले फलों का बेहद कम उत्पादन हुआ है। इस समय उगने वाला प्लम का दाना आकार में भी बेहद छोटा हो रहा है। जिस वजह से मंडी में भी उन्हें फलों का उचित दाम नहीं मिल पा रहा है। उन्होंने बताया की प्लम की मंडी में कीमत प्रति 10 किलो मात्र 400 रुपए है। ऐसे में फलों को मंडी तक पहुंचाने में ही इतनी लागत आ जाती है। उन्होंने बताया की ऐसे समय में काश्तकारों की कोई सुध लेने वाला नहीं है।

रामगढ फल पट्टी सिकुड़ रही है, जिसके कारण बागबानी और लघु कृषि पर निर्भर ग्रामीणों की आजीविका पर संकट बढ़ गया है। फल पट्टी क्षेत्र से विख्यात रामगढ़, मुक्तेश्वर, धानाचूली के सेब उत्पादक किसान इस बार बर्फबारी नहीं होने से सेब के उत्पादन को लेकर चिंतित हैं। बर्फबारी नहीं होने से सेब के बागानों में लगे पेड़ पर फूल कम मात्रा में आने से सेब का उत्पादन 40 प्रतिशत तक गिरने का अंदेशा है। इससे किसानों को आर्थिक रूप से नुकसान भी उठाना पड़ेगा।

मुक्तेश्वर, रामगढ़, हरतोला, नथुवाखान, धानाचूली क्षेत्र में सेब की बागवानी से किसान अपनी आजीविका चलाते हैं। जिले में 1027 हेक्टेयर भूमि पर 4543 मीट्रिक टन सेब का उत्पादन होता है लेकिन इस बार बर्फबारी नहीं होने पर सेब का उत्पादन गिरने की आशंका है। जिले में गाला, जीरो मान, रेडलम गाला, ग्रीन स्मिथ, रेवीड गाला, डेलीसस समेत अन्य प्रजातियों के सेब लगाया जाता है। इन प्रजातियों का सेब दिल्ली, मुंबई, हरियाणा, पंजाब, यूपी समेत अन्य बड़े राज्यों में 200 रुपये किलो तक बिकता है। सेब के बेहतर उत्पादन के लिए सेब के लिए 46 दिन की चिलिंग की जरूरत होती है।

सेब उत्पादक ने बताया कि सेब के लिए बर्फबारी का होना बेहद जरूरी है। बर्फबारी नहीं होने से सेब को नमी नहीं मिल पाई है। इससे सेब का उत्पादन, सेब के साइज के साथ आर्थिक रूप से नुकसान उठाना पड़ेगा। पेड़ में फूल नहीं टिक पाने से उत्पादन की समस्या बढ़ी है। महेश गलिया ने बताया कि बर्फबारी नहीं होने से सभी सेब उत्पादक चिंतित है। साथ ही बारिश नहीं होने से आडू और फसलों को भी नुकसान पहुंच रहा है। फलों का उत्पादन कम होने से आय पर असर पड़ेगा। समय से बर्फबारी और बारिश नहीं होने से दिक्कत आ रही है।

लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं और वह दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।

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