उत्तराखंड में मानसून की एंट्री ने डिजास्टर जोन में बढ़ाई चिंता

उत्तराखंड में मानसून की एंट्री ने डिजास्टर जोन में बढ़ाई चिंता

उत्तराखंड में आने वाली आपदाओं को रोकने के लिए केवल टेक्नोलॉजी से काम नहीं चल सकता। उत्तराखंड में 200 लैंडस्लाइड एक्टिव हैं ऐसे में सरकार को ये करना चाहिए कि साल में 10 या 12 को नहीं बल्कि 50-60 का टारगेट रखना चाहिए।

डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

उत्तराखंड में लैंडस्लाइड एक बड़ी समस्या रहा है। राज्य में मानसून की एंट्री हो चुकी है। मानसून सीजन में लैंडस्लाइड अपने पीक पर होता है। मानसून की बारिश में लैंडस्लाइड रिस्क एरिया में बसाए गए लोगों को विशेष खतरा है। राज्य के संवेदनशील इलाकों में अंधाधुंध निर्माण ने बड़ी चुनौती खड़ी की हुई है। ऐसे में पर्यावरणविद और वैज्ञानिक प्रतिष्ठित संस्थानों की रिपोर्ट को नजरअंदाज करने के बजाय, एक्शन प्लान के आधार पर ठोस उपाय लागू करने की सलाह दे रहे हैं। भूस्खलन क्षेत्र नासूर बनकर उभरते हैं। भूस्खलन जोन नेताला सहित लालढांग, हेलगूगाड़ सहित सुक्की के सात नाले वर्ष 2013 की आपदा के बाद से परेशानी का सबब बने हुए हैं।

हर वर्ष मानसून सीजन में गंगोत्री हाईवे पर उत्तरकाशी से सुक्की टॉप तक के भूस्खलन क्षेत्र नासूर बनकर उभरते हैं। लेकिन उसके बावजूद भी आज तक इन भूस्खलन जोन के लिए बॉर्डर रोड ऑर्गनाईजेशन और जिला प्रशासन की ओर से इनके ट्रीटमेंट के लिए कोई योजना तैयार नहीं की गई है। इस कारण यह भूस्खलन जोन इस वर्ष भी बरसात में आमजन और चारधाम यात्रियों के लिए मुसीबत बनेंगे। उत्तरकाशी जनपद मुख्यालय से सुक्की टॉप के बीच भूस्खलन ऐसे हैं, जो कि हर वर्ष मानसून सीजन में स्थानीय लोगों और तीर्थयात्रियों के लिए मुसीबत बनते हैं। इसके साथ ही अन्य भी छोटे-छोटे भूस्खलन जोन ऐसे हैं, जो कि कभी भी मुसीबत बन सकते हैं। इन खतरा संभावित क्षेत्रों में कई ऐसे स्थान हैं, जो कि विगत 10 से 15 वर्षों से हाईवे पर बड़ी मुसीबत बनकर टूटते हैं। प्रदेश में मानसून के दौरान होने वाले भूस्खलन के पीछे कई वजह है और इसको लेकर भी तमाम बातें अध्ययन के दौरान सामने आई हैं।

उत्तराखंड में भूस्खलन क्षेत्र के रूप में डिजास्टर जोन की गंभीरता को इस बात से ही समझा जा सकता है कि इसरो की एक रिपोर्ट में देश भर के करीब 147 शहरों में से उत्तराखंड के कई शहरों को टॉप टेन में जगह दी गई थी। यही नहीं पूरे देश में रुद्रप्रयाग और टिहरी जिला पहले और दूसरे नंबर पर दर्ज किया गया था। पर्यावरण संरक्षण से जुड़े तमाम रिकॉर्ड एनालिसिस करने वाले अध्ययन इन्हीं स्थितियों को जाहिर करते हैं। जिस तरह इसरो की रिपोर्ट के बाद उत्तराखंड में भूस्खलन को लेकर संवेदनशीलता सामने आई थी, उसके बाद राज्य सरकार को कई कदम उठाए जाने की जरूरत थी। लेकिन सरकार की तरफ से इतनी महत्वपूर्ण संस्थान की रिपोर्ट पर भी काम नहीं हो पाया। नतीजा यह रहा कि राष्ट्रीय स्तर पर उत्तराखंड के कई जिलों को लैंडस्लाइड जोन के रूप में दर्ज करने के बाद भी कोई हल नहीं निकल गया।

मानसून सीजन शुरू होने के साथ ही पर्यावरणविद नए खतरों को लेकर चिंता जाहिर कर रहे हैं। इसीलिए तमाम पर्यावरणविद और वैज्ञानिक एक मंच पर आकर इसके समाधान को लेकर सरकार से भी गुहार लगा रहे हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि अब तक जो अध्ययन हुए हैं, उसके आधार पर सरकार को कदम उठाने चाहिए और तमाम प्रतिष्ठित संस्थानों की रिपोर्ट को नजरअंदाज करने के बजाय, एक्शन प्लान के आधार पर ठोस उपाय लागू करने चाहिए।

चारधाम की यात्रा पर आने वाले तीर्थ यात्रियों के लिये नासूर बना हुआ है। सिरोबगड़ डेंजर जोन की पहाड़ी से बिना बरसात के ही बोल्डर गिरते रहते हैं, जबकि बारिश होने पर यहां घंटों तक आवाजाही बंद हो जाती है। जिससे चारधाम यात्रियों और चमोली व रुद्रप्रयाग की जनता को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। ऐसे में कलियासौड़ बाईपास का निर्माण कार्य किया जा रहा था, लेकिन बीते पांच से छह वर्षों में निर्माण कार्य पूर्ण नहीं हो पाया है, जबकि इन दिनों बाईपास का निर्माण कार्य बंद पड़ा हुआ है।

सिरोबगड़ की समस्या से निजात दिलाने के लिये ऑल वेदर सड़क परियोजना के तहत पपडासू बाईपास का निर्माण कार्य किया जा रहा है। इस बाईपास पर अलकनंदा नदी पर तीन मोटरपुल बनने हैं, लेकिन अभी तक एक भी पुल नहीं बन पाया है। इस बाईपास पर पुल बनने के बाद आवाजाही कलियासौड़ से सीधे बदरीनाथ हाईवे पर खांखरा से आगे नौगांव में होनी है। वर्ष 2017-18 से अलकनंदा नदी के ऊपर पहले मोटरपुल का निर्माण कार्य चल रहा है। कार्यदायी संस्था ने पुल का ढांचा तो खड़ा कर दिया है, लेकिन इससे आगे की कार्रवाई बंद है। पांच से छह वर्षों में जब एक पुल का निर्माण कार्य नहीं हो पाया है, तो तीन पुल बनने में कई और वर्ष लग सकते हैं। ऐसे में फिलहाल चारधाम यात्रियों और रुद्रप्रयाग समेत चमोली के लोगों को सिरोबगड़ की समस्या से निजात नहीं मिलने वाली है। कार्यदायी संस्था इन दिनों कार्य बंद करके चली गई है।

मानसून सीजन भी शुरू हो गया है। ऐसे में इस बार भी सिरोबगड़ डेंजर जोन परेशानी का सबब बनेगा। पूर्व जिला पंचायत सदस्य ने कहा कि सिरोबगड़ डेंजर जोन विगत कई सालों से नासूर बना हुआ है। बरसात के समय सिरोबगड़ की पहाड़ी से लगातार भूस्खलन होता रहता है, जिससे चारधाम तीर्थयात्री और चमोली समेत रुद्रप्रयाग की जनता परेशान रहती है। उन्होंने कहा कि सिरोबगड़ डेंजर जोन के विकल्प के रूप में कलियासौड़ बाईपास का निर्माण कार्य कर रही कार्यदायी संस्था का कुछ अता-पता नहीं है। छह सालों में एक भी पुल बनकर तैयार नहीं हो पाया है।

सबसे ज्यादा दिक्कतें चारधाम यात्रा के दौरान तीर्थयात्रियों को झेलनी पड़ती है। कई बार तो लैंडस्लाइड के कारण कई-कई घंटे रास्ता नहीं खुलता है। इसी बार भी चारधाम यात्रा के तीर्थयात्रियों को इस तरह की परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। क्योंकि अभी तक चिन्हित क्रोनिक लैंडस्लाइड जोन का ट्रीटमेंट नहीं हो पाया है, जो मानसून सीजन में बड़ी आफत बन सकते है। उत्तराखंड में आने वाली आपदाओं को रोकने के लिए केवल टेक्नोलॉजी से काम नहीं चल सकता। उत्तराखंड में 200 लैंडस्लाइड एक्टिव हैं ऐसे में सरकार को ये करना चाहिए कि साल में 10 या 12 को नहीं बल्कि 50-60 का टारगेट रखना चाहिए।

यह लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं और वह दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।

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