पर्यटन के लिए विश्वविख्यात सरोवर नगरी नैनीताल के सामने खतरे के बादल मंडरा रहे हैं। बारिश शुरू होते ही नैनीताल में लगातार भूस्खलन होने लग रहा है। जिससे नैनीताल के अस्तित्व पर प्रश्न उठने शुरू हो चुके हैं। शहर के अंदर और शहर की बुनियाद में लगातार तेजी से भूस्खलन हो रहा है। इससे प्रशासन समेत राज्य सरकार के सामने नैनीताल को बचाने के लिए चिंताएं बढ़ने लगी हैं।
डॉ हरीश चन्द्र अन्डोला
नैनीताल की खोज सन् 1841 में एक अंग्रेज चीनी (शुगर) व्यापारी ने की। बाद में अंग्रेजों ने इसे अपनी आरामगाह और स्वास्थ्य लाभ लेने की जगह के रूप में विकसित कर लिया। नैनीताल तीन ओर से घने पेड़ों की छाया में ऊंचे-ऊंचे पर्वतों के बीच समुद्रतल से 1938 मीटर की ऊंचाई पर बसा है। यहां के ताल की लंबाई करीब 1358 मीटर और चौड़ाई करीब 458 मीटर है। ताल की गहराई 15 से 156 मीटर तक आंकी गई है। हालांकि इसकी सही-सही जानकारी अब तक किसी को नहीं है कि ताल कितना गहरा है। ताल का पानी बेहद साफ है और इसमें तीनों ओर के पहाड़ों और पेड़ों की परछाई साफ दिखती है। आसमान में छाए बादलों को भी ताल के पानी में साफ देखा जा सकता है।
रात में नैनीताल के पहाड़ों पर बने मकानों की रोशनी ताल को भी ऐसे रोशन कर देती है, जैसे ताल के अंदर हजारों बल्ब जल रहे हों स्कंद पुराण के मानस खंड में इसे ’त्रि-ऋषि-सरोवर’ कहा गया है। ये तीन ऋषि अत्रि, पुलस्थ्य और पुलाहा ऋषि थे। इस इलाके में जब उन्हें कहीं पानी नहीं मिला तो उन्होंने यहां एक बड़ा सा गड्ढा किया और उसमें मनसरोवर का पवित्र जल भर दिया। उसी सरोवर को आज नैनीताल के रूप में जाना जाता है। इसके अलावा नैनीताल को 64 शक्ति पीठों में से एक माना जाता है। माना जाता है कि जब भगवान शिव माता सती के शव को लेकर पूरे ब्रह्मांड में भटक रहे थे, तो यहां माता की आंखें (नैन) गिर गए थे। माता की आंखें यहां गिरी थीं, इसलिए इस जगह का नाम नैनीताल पड़ा। माता को यहां नैना या नयना देवी के रूप में पूजा जाता है।
नैनीताल शहर के लिए 96 करोड़ रुपये की लागत से सीवर ट्रीटमेंट परियोजना के तहत रूसी में बन रहे प्लांट की तलहटी में एक बार फिर भूकटाव शुरू हो चुका है। जिसके चलते बरसात में एसटीपी के साथ रूसी गांव को खतरा होने की आशंका बनी हुई है। हांलाकि बचाव के लिए भूकटाव प्रभावित क्षेत्र को तिरपाल से ढंक दिया है। लेकिन ग्रामीणों में भय का माहौल बना हुआ है। उत्तराखंड अर्बन सेक्टर डेवलपमेंट एजेंसी की ओर से नैनीताल के सीवर ट्रीटमेंट के लिए 96.15 करोड़ की लागत से कार्य किया जा रहा है। जिसके तहत नगर में नई सीवर लाईन बिछा दी गई है। साथ ही रूसी गांव में एसटीएपी प्लांट का कार्य जारी था। लेकिन बीते वर्ष भूस्खलन के चलते प्लांट खतरे की जद में आ गया।
ग्रामीणों के विरोध के बाद कार्यदायी संस्था को एसटीपी का काम भी बंद करना पड़ा। जिसके बाद कार्यदायी संस्था ने एसटीपी के लिए पटवाडांगर में जमीन खोजकर प्रस्ताव बनाकर शासन को भेज दिया। लेकिन मंगलवार रात भारी बारिश के चलते एक बार फिर प्लांट की तहहटी में भूकटाव शुरू हो चुका है। जो भारी बरसात के दौरान बड़ी समस्या बन सकता है और प्लांट के साथ रूसी गांव को भी नुकशान पहुंचा सकता है। वहीं ग्रामीणों की ओर से क्षेत्र की सुरक्षा की मांग की गई है। एडीबी परियोजना प्रबंधक ने बताया कि प्लांट के बचाव के लिए स्टाफ क्वाटर की तलहटी में सुरक्षा दीवारें लगाई गई थीं। बारिश को देखते हुए भूकटाव संभावित क्षेत्र को तिरपाल से ढंक दिया है।
शासन को एसटीपी के बचाव कार्य के लिए 40 करोड़ का स्टीमेट बनाकर भी भेजा गया है जो शासन स्तर पर लंबित है। भूस्खलन के चलते क्षेत्र में एक बार फिर लैंडस्लाइड का खतरा मंडराने लगा है। प्रशासन ने 18 परिवारों को घर खाली करने के नोटिस जारी कर दिए हैं। जिसके बाद कई लोगों ने अपने घर खाली कर दिए हैं। चार्टन लॉज क्षेत्र में बीते साल हुए भूस्खलन के बाद इस बार मानसून सीजन की शुरुआत में ही क्षेत्र में एक बार फिर से भूस्खलन का खतरा बढ़ने लगा है। धंसाव को रोकने के लिए अस्थाई रूप से लगाई गई कट्टों की दीवार नीचे खिसकने से ऊपर स्थित आवासीय भवन खतरे की जद में आ गए हैं, जिससे क्षेत्रवासियों में दहशत का माहौल है। वहीं एक साल पहले हुए भूस्खलन के बाद भी प्रशासन की नींद नहीं खुली और भूस्खलन वाले इलाके को सिर्फ तिरपाल से ढक दिया। जिसके बाद एक बार फिर से मानसून की शुरुआत में ही आसपास के घरों में खतरा मंडराने लगा।
हर साल सरकार द्वारा आपदा से निपटने के तमाम दावे किए जाते हैं, मगर धरातल में कोई प्रयास नजर नहीं आते। इसका उदाहरण नैनीताल का चार्टन लॉज का भूस्खलन प्रभावित क्षेत्र है। बीते साल सितंबर में चार्टन लॉज इलाके में भारी भूस्खलन हुआ था, जिसमें एक दो मंजिला मकान पूरी तरीके से ध्वस्त हो चुका था। तीन अन्य भवन भी क्षतिग्रस्त हो गए थे। साथ ही आसपास के अन्य घरों में भी बड़ी-बड़ी दरारें आ चुकी थीं। जिसके बाद दर्जनों परिवारों को अन्यत्र विस्थापित किया गया था। लोक निर्माण विभाग द्वारा भूस्खलन वाले इलाके में अस्थाई जियो बैग की दीवार लगा दी गई थी, जिससे भूस्खलन तो रुक गया लेकिन कोई स्थाई समाधान नहीं हो पाया। वहीं 10 माह बाद दोबारा मानसून की शुरुआत होने के साथ ही अस्थाई जियो बैग की दीवार भी नीचे गिरने लगी, जिससे आसपास के घरों में अब खतरा मंडराने लगा है।
हिमालयी पहाड़ एक बच्चे की तरह है और यह बहुत कमजोर है। यही कारण है कि उत्तराखंड में जरा सी बारिश के चलते भूस्खलन की घटनाएं बढ़ जाती हैं और सड़कें बाधित हो जाती हैं। भूस्खलन अब इतना बढ़ गया है कि इस बार नैनीताल नगर के अंदर भी दो जगह भूस्खलन होने लगा है। डीएसबी पहाड़ी और स्नो व्यू की पहाड़ी की तरफ शुरू हुए भूस्खलन ने नैनीताल के अस्तित्व को खतरा पैदा कर दिया है। उन्होंने कहा कि इसका स्थाई समाधान नहीं ढूंढा गया, जिस कारण हालात और बिगड़ते जा रहे हैं।
(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं और वह दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।)
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