आजकल बारिश का मौसम चल रहा है उत्तराखंड में चौमासे, यानी वर्षाकाल के चार महीनों में अतिवृष्टि, भूस्खलन, भूधंसाव, बादल फटना, नदियों में बाढ़ आना जैसी आपदाओं में भारी वृद्धि हो जाती है। हर साल उत्तराखंड को इससे बड़े पैमाने पर जान-माल का नुकसान झेलना पड़ता है।
प्रदेश में मलबा एवं अतिवृष्टि से फसलों को जो नुकसान हुआ है, उसने अन्नदाता की आर्थिक परेशानी बढ़ा दी है। पौड़ी, रुद्रप्रयाग, ऊधमसिंह नगर और चंपावत जिले में सिंचित और असिंचित क्षेत्र की फसल खराब हुई है। सबसे अधिक नुकसान ऊधमसिंह नगर जिले में हुआ है। इस जिले के सात विकासखंडों खटीमा, सीतारगंज, रुद्रपुर, गदरपुर, बाजपुर, काशीपुर एवं जसपुर में अतिवृष्टि से फल, सब्जी एवं धान की 2345 हेक्टेयर फसल प्रभावित हुई है। पौड़ी जिले के जयहरीखाल में मंडुवे की .3 हेक्टेयर, रुद्रप्रयाग जिले के अगस्त्यमुनि में धान की .04 हेक्टेयर फसल को नुकसान हुआ है। इसके अलावा चंपावत में धान की पांच हेक्टेयर फसल खराब हो गई है।
एक रिपोर्ट में कहा गया कि तीन जुलाई को रुद्रप्रयाग के अगस्त्यमुनि में बादल फटने और आठ जुलाई को पौड़ी के जयहरीखाल में अतिवृष्टि से फसलों को नुकसान हुआ है। विस्तृत क्षति के आकलन के लिए कृषि, उद्यान एवं राजस्व विभाग की ओर से सर्वे का काम किया जा रहा है। प्रदेश में आपदा और अतिवृष्टि से फसलें खराब होने से अन्नदाता जहां आर्थिक परेशानी से जूझ रहे हैं, वहीं, कृषि विभाग का कहना है कि प्रभावितों को अभी मुआवजे का मरहम नहीं लग पाएगा। कृषि विभाग के निदेशक बताते हैं कि फसलों को हुए नुकसान का विस्तृत सर्वे कराया जा रहा है। विभाग को अभी जो रिपोर्ट मिली है, उसमें फसलों की क्षति 33 प्रतिशत से कम है, जबकि केंद्र सरकार का मुआवजे को लेकर मानक 33 फीसदी से अधिक के नुकसान का है।
कृषि विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक, हरिद्वार, देहरादून, नैनीताल, अल्मोड़ा, बागेश्वर, टिहरी, उत्तरकाशी और चमोली प्रदेश के ऐसे जिले हैं, जिनमें आपदा और अतिवृष्टि से अभी कोई नुकसान नहीं हुआ। आपदा और अतिवृष्टि से फसलों को हुए नुकसान का आकलन किया जा रहा है। 33 फीसदी से अधिक के नुकसान पर प्रभावित किसानों को मुआवजा दिया जाएगा। जिनका बीमा है, उन्हें संबंधित कंपनी बीमा राशि देगी, जबकि अन्य प्रभावितों की किस तरह से मदद की जा सके, इसके लिए रास्ता निकाला जाएगा।
विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाले उत्तराखंड में चौमासे, यानी वर्षाकाल के चार महीनों में अतिवृष्टि, भूस्खलन, भूधंसाव, बादल फटना, नदियों में बाढ़ जैसी आपदाएं भारी पड़ रही हैं। हर साल ही इसमें बड़े पैमाने पर जान-माल का नुकसान झेलना पड़ रहा है। इस समय देश में महंगाई अहम मुद्दा है। वर्तमान समय में अगर बात करें तो देश के किसानों को खेती करना काफी महंगा पड़ रहा है। बीज, खाद और डीजल के दामों में तेजी के बाद किसानों के लिए खेती करना बड़ा मुश्किल हो गया है। बढ़ती हुई महंगाई से किसानों की रुचि खेती के प्रति दिन-प्रतिदिन कम होती जा रही है क्योंकि किसानों के लिए खेती अब घाटे का सौदा लग रहा है।
किसानों का मानना है कि अब खेती से लागत निकलना भी असंभव सा हो रहा है। बता दें डीजल की कीमत बढऩे से किसान पहले ही परेशान हैं। खेती-किसानी का ज्यादातर काम ईंधन पर निर्भर है। खेत की जुताई से लेकर कटाई और फसल को मंडी ले जाने तक किसान ट्रैक्टर का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन महंगा डीजल किसानों के सामने पहले से ही बड़ी समस्या बना हुआ है। ऐसे में खराब मानसून से हालात और जटिल हो सकते थे। कम पैदावार से अनाज, फल-सब्जी और दूध जैसी रोजमर्रा के इस्तेमाल की चीजों के दाम और बढ़ सकते हैं। लेकिन अच्छे मानसून से महंगाई पर लगाम लग सकती है। साथ ही खाद, बीज, ऑटोमोबाइल, कंज्यूमर गुड्स और फाइनांस कंपनियों के शेयर भी डिमांड में रहते हैं।
इस तरह अच्छा मानसून शेयर बाजार पर भी प्रभाव डालता है। मानसून के कारण जलाशय लबालब भर जाते हैं जो हाइड्रोपावर तथा सिंचाई के लिए अहम हैं। साफ है, जिस तरह मानसून देश की अर्थव्यवस्था के लिए बेहद अहम है, उसी तरह कॉरपोरेट कंपनियों से लेकर आम कंज्यूमर तक हर किसी की पर्सनल इंकम और सेविंग्स पर भी इसका गहरा असर पड़ता है। यकीनन देश की अर्थव्यवस्था के साथ ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए एक सुकून भरा परिदृश्य उभरता मानसून तो ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ ही है।
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