उत्तराखंड के सु-विख्यात लोकगायक, ‘रुद्रवीणा’ संस्था संस्थापक शिवदत्त पंत द्वारा दस रात्रियों तक मंचित होने वाली रामलीला को मात्र चार घंटे की अवधि में करीब पचास कलाकारों के निष्ठा पूर्ण सहयोग से रामलीला की विभिन्न प्रचलित शैलियों में मंचित करने का चुनौतीपूर्ण व सराहनीय प्रयास 02 अक्टूबर को श्रोताओं से खचाखच भरे आईटीओ स्थित प्यारे लाल भवन सभागार में सम्पन्न किया गया।
सी एम पपनैं, नई दिल्ली
जनमानस की आस्था का सबसे बडा सिम्बल रहा, मंचित रामलीला का श्रीगणेश उत्तराखंड के प्रबुद्ध प्रवासी जनों में प्रमुख सेवा निवृत दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल एसीपी ललित मोहन नेगी, एसीपी त्रिलोक चन्द्र, एसीपी राजेन्द्र सिंह सजवान, एमडी जेडीएस ग्रुप ऑफ़ कंपनीज एवं जोधा फिल्म्स मैनेजिंग डायरेक्टर संजय जोशी, एमडी हिमसत्वा संजय भैसोड़ा, आरएमएल के प्रो. (डॉ) शरद पांडे, वरिष्ठ अधिवक्ता सर्वोच्च न्यायालय मनोज गोरकेला, भारतीय उद्योग जगत से जुड़े पी सी नैलवाल, हिन्दी अकादमी पूर्व सचिव डॉ. हरिसुमन बिष्ट, निगम पार्षद रवि नेगी, ट्रेंभलर हरीश बिष्ट, वरिष्ठ पत्रकार चारू तिवारी व चंद्र मोहन पपनै, समाजसेवी हरदा उत्तरांचली, गोपाल उप्रेती, परमानन्द पपनै, रमेश कांडपाल, गिरीश कड़ाकोटी इत्यादि इत्यादि द्वारा दीप प्रज्ज्वलित कर किया गया। संस्था पदाधिकारियों द्वारा सम्मानित प्रबुद्धजनों को दुपट्टा ओढ़ा कर व स्मृति चिन्ह प्रदान कर स्वागत अभिनंदन किया गया।
मंचित रामलीला का मनोहारी शुभारंभ श्रीगणेश नृत्य व वंदना गायन से किया गया। हिमालय में शिव तपस्या कर रावण, कुंभकरण तथा विभीषण द्वारा वरदान हासिल करना सन्तान विहीन दशरथ का चिंता व्यक्त कर मुनि आज्ञानुसार यज्ञ हेतु सहमत होना। दशरथ दरबार में विश्वामित्र का आगमन व राम-लक्ष्मण को मुनि की रक्षा हेतु वन भेजना तथा ताड़िका बध। सीता स्वयंवर, लक्ष्मण-परशुराम संवाद तथा सीता की भावपूर्ण विदाई। कैकयी-मंथरा व दशरथ-कैकयी संवाद। राम-लक्ष्मण-सीता को केवट द्वारा गंगा पार कराना। पंचवटी में सूर्पनखा का लक्ष्मण द्वारा नासिका छेदन। सूर्पनखा द्वारा रावण को राम, लक्ष्मण व सीता के बावत तथा उसके साथ किए गए व्यवहार से अवगत कराना। पंचवटी में कपटी मृग आगमन, रावण द्वारा सीता हरण व जटायु मरण। किष्किंधा पर्वत में राम-हनुमान मिलन। रावण-अंगद संवाद, राम-रावण युद्ध तथा राजतिलक तक की रामलीला का मंचन चार घंटे की चुनौती पूर्ण अवधि में सफलता पूर्वक रुद्रवीणा संस्था कलाकारों द्वारा सम्पन्न की गई।
शिवदत्त पंत के निर्देशन, वीरेन्द्र नेगी ’राही’ के संगीत निर्देशन व दीपा पंत तथा पुष्कर शास्त्री द्वारा पर्दे के पीछे से किया गया प्रभावशाली गायन तथा व्यक्त संवाद उत्तराखंड की परंपरागत गीत नाट्य शैली के साथ-साथ रामलीला की अन्य अनेकों प्रचलित विधाओं व शैलियों का तानाबाना बुन कर चार घंटे की अवधि में सम्पूर्ण रामलीला मंचित करने का शिवदत्त पंत का यह एक नया प्रयोग कहा जा सकता है। मंचित रामलीला में मानस की चौपाइयों व दोहों के गायन, संवाद व संगीत के साथ-साथ सामूहिक नृत्य जो रिकार्डेड गीत-संगीत पर मंचित किए गए, मंचित रामलीला के अन्य मुख्य आकर्षण रहे।
हिमालय पर्वत में शिव दर्शन के दृश्य ने रामलीला को जहां भव्य शुरुआत दी, वही जनक दरबार सीता स्वयंवर में धनुष तोड़ने आए पहाड़ी राजा द्वारा कुमांऊनी बोली-भाषा में हास्य पुट लिए संवाद बोल दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया तथा परशुराम-लक्ष्मण संवाद ने श्रोताओं को प्रभावित किया। सीता की विदाई दृश्य में कुछ श्रोताओं को भाव विभोर होता देखा गया। कैकई-मंथरा व कोप भवन में कैकयी-दशरथ संवाद प्रभावशाली व अंगद-रावण संवाद व राम-रावण युद्ध श्रोताओं पर आंशिक प्रभाव डालने तक ही सीमित रहे।
मंचीय व्यवस्था आकर्षणशील थी। पर्दे के पीछे से व्यक्त रामलीला कथासार, संवाद व कही-कही वाद्यसंगीत में तालमेल का अभाव दृष्टिगत था। कभी कभार पात्रों द्वारा किए जा रहे गायन व व्यक्त संवादों में साउंड की गड़बड़ी खलल डालती नजर आ रही थी। पात्रों की वस्त्र सज्जा, आभूषण व श्रृंगार रामकथा के अनुकूल व प्रभावशाली थी। प्रकाश व्यवस्था तथा एलईडी के माध्यम से रामलीला के दृश्यों को भव्य बनाया गया था जो मंचित दृश्यों के अनुकूल था।
रामलीला उत्तराखंड के जनमानस की आस्था का सबसे बड़ा सम्बल रहा है। जिसको मंचित करना, देखना, सुनना और जीवन में उतारना उत्तराखंडी लोगो की मानसिकता का आदर्श रहा है। दस रात्रियों तक मंचित होने वाली उत्तराखंड की पारंपरिक भीमताली शैली रामलीला की गायन शैली व रागों की महत्ता को देखते हुए, जो प्रत्येक उत्तराखंडी में आत्मसात है, इस परंपरा से थोड़ा हट कर ’रुद्रवीणा’ ग्रुप द्वारा मंचित रामलीला को समग्र रूप में मात्र चार घंटों में मंचित करने का प्रयोग किसी चुनौती से कम नही कहा जा सकता है। एक स्वागत योग्य व दूरदर्शी कदम माना जा सकता है।
राम दीप पाण्डेय, लक्ष्मण भुवन शर्मा, रावण दिनेश कांडपाल, राजा दशरथ महेश उपाध्याय, राजा जनक मोहन सती, अंगद एवं ताड़का ललित मोहन, सुमंत भुपाल सिंह बिष्ट, सुर्पनखा बबीता भंडारी, मंथरा एवं शबरी संजय रावत, परशुराम शिवराज अधिकारी तथा विश्वामित्र की भूमिका में महेंद्र लटवाल द्वारा सधे व सशक्त गायन, प्रभावशाली अंदाज में व्यक्त संवादों तथा अभिनय से दर्शकों के मध्य यादगार छाप छोड़ी गई।
मंचित एक दिवसीय सम्पूर्ण रामलीला का निर्देशन व पार्श्वगायन शिवदत्त पंत तथा संगीत निर्देशन वीरेंद्र नेगी ‘राही’ द्वारा किया गया। हारमोनियम पर पुष्कर शास्त्री, तबला गौरव पंत, आक्टो पैड द्वारिका नौटियाल तथा बांसुरी पर अरुण तिवाड़ी द्वारा संगत की गई। पार्श्व गायिका दीपा पंत तथा पार्श्व गायक पुष्कर शास्त्री (कथावाचक) के गायन को श्रोताओं द्वारा सराहा गया।
मंचित संपूर्ण रामलीला का प्रभावशाली मंच संचालन खुशाल सिंह रावत द्वारा रुद्रवीणा महासचिव दिनेश फुलारा, सचिव हरीश बिष्ट तथा किशना नन्द पंत इत्यादि के सानिध्य में बखूबी किया गया।
रामकथा को देखना, सुनना और जीवन में उतारना उत्तराखंड के जनमानस की मानसिकता का आदर्श रहा है। इस आदर्श को प्राथमिकता प्रदान कर ‘रुद्रवीणा’ संस्थापक व सु-विख्यात लोकगायक शिवदत्त पंत जो लोकगायन विधा में एक विलक्षण प्रतिभा के धनी रहे हैं, दस रात्रियों तक मंचित होने वाली रामलीला को अपनी सूझबूझ से मात्र चार घंटे की अवधि में मंचित करने लायक बनाया है, जो एक दूरदर्शी सराहनीय प्रयास कहा जा सकता है।
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