विगत चार सदियों से कुमाऊं और गढ़वाल अंचल के जनमानस के मध्य व्याप्त मनभेद और कटुता का पूर्ण रूपेड उन्मूलन करने तथा जनमानस को एक नया आयाम देने के उद्देश्य से निर्मित कुमांऊनी और गढ़वाली आंचलिक बोली-भाषा में निर्मित फिल्म ‘गढ़ कुमौ’ उत्तराखंड आंचलिक फिल्मों के इतिहास में एक अमिट यादगार व प्रेरक अध्याय रच, चर्चा का विषय बनी हुई है।
सी एम पपनैं
दिसंबर 2024 के दूसरे सप्ताह में आंचलिक बोली-भाषा में निर्मित फिल्म ‘गढ़ कुमौ’ का देहरादून के सेंट्रियो मॉल में भव्य प्रीमियर मुख्य अतिथि उत्तराखंड सरकार कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी, सुप्रसिद्ध लोकगायक पद्मश्री प्रीतम भरतवाण तथा दर्जा राज्यमंत्री मधु भट्ट के सानिध्य में खचाखच भरे सभागार में आयोजित किया गया था।
देहरादून में मिली अपार सफलता के बाद आंचलिक फिल्म ‘गढ़ कुमौ’ 3 जनवरी 2025 से नई दिल्ली द्वारका स्थित विगास मॉल तथा गाजियाबाद के इंदिरापुरम स्थिति जयपुरिया मॉल में प्रदर्शित की गई। पहली बार कुमाऊनी, गढ़वाली बोली-भाषा में निर्मित इस आंचलिक फिल्म ने अपने पहले शो के दिन से ही निरंतर दो सप्ताह तक फिल्म के कथानक, पिरोए गए गीत-संगीत तथा उत्तराखंड पर्वतीय अंचल की हरी भरी प्रकृति व हिमालय के मनोरम दृश्यों से ओतप्रोत दृष्यांकन तथा कलाकारों के बेहतरीन अभिनय व फिल्म के प्रभावशाली प्रस्तुतीकरण ने दिल्ली एनसीआर में प्रवासरत प्रवासी दर्शकों की अंतरात्मा को झकझोरने का काम किया है।भावनाओं को प्रभावित कर सोचने को मजबूर किया है। कुमाऊं और गढ़वाल के जनमानस के मध्य उभरे मनभेद को दूर करने और त्यागने का प्रभावी ऐतिहासिक कार्य किया गया है।
करीब 50-60 लाख रुपयों के बजट आधारित तथा सवा दो घंटे अंतराल वाली ‘गढ़ कुमौ’ आंचलिक फिल्म का कथानक वर्तमान में अति शिक्षित नौजवान पीढ़ी की सोच तथा उक्त युवा पीढ़ी के बुजुर्गो व माता-पिता के जेहन में पीढ़ी दर पीढ़ी व्याप्त कुमाऊनी व गढ़वाली मनभेद की सोच पर आधारित तथा समाज के जागरूक प्रबुद्धजनों द्वारा उक्त सोच से परे हट कर अंचल के दोनों समाजों के लोगों के परिजनों की भावनाओं को जागृत कर उन्हें एकजुट करने के सफल प्रयास पर निर्मित फिल्म की समाप्ति पर दर्शकों की अपार भीड़ को फिल्म के हर पहलू की प्रशंसा करते हुए देखा गया। विगत चार सदियों से राजनैतिक तौर पर स्वार्थवश उभारे और लादे गए मनभेद की सच्चाई और गहराई को समझते हुए देखा गया। अपार खुशी और संतोष के भाव लेकर दिल्ली एनसीआर के कोने-कोने से आए दर्शकों को लादे गए आपसी मनभेदों को भुला कर घरों को लौटते हुए देखा गया, आदर्श और दोस्ती के भावों के साथ।
अति प्रेरणादाई आंचलिक फिल्म ‘गढ़ कुमौ’ का कथासार सुप्रसिद्ध लेखक व निर्देशक अनुज जोशी द्वारा गहरी समझ व सूझ-बूझ का परिचय देते हुए गढ़वाली व कुमांउनी बोली-भाषा में पिरोया गया है। लेखक ने अपने सामाजिक अनुभव और अपनी शुद्ध लेखनी के माध्यम से अंचल के दोनों समाजों के मध्य गहरी पैंठ जमाए मनभेदों व कटुता को सदा के लिए समाप्त करने का एक प्रभावी सामाजिक प्रयास किया गया है। फिल्म के कथानक ने दर्शकों के मध्य गहरा प्रभाव डाला है, गहरी छाप छोड़ी है। उपजी सदियों पुरानी कटुता पर अंकुश लगाने तथा उत्तराखंड के आंचलिक फिल्मों को एक नया आयाम देने का गम्भीर प्रयास किया गया है।
हरित अग्रवाल द्वारा निर्मित उत्तराखंड पर्वतीय अंचल के लोगों की लोकसंस्कृति आधारित पारिवारिक फिल्म ‘गढ़ कुमौ’ के प्रमुख किरदारों में अभिनेत्री अंकिता परिहार व अभिनेता संजू सिलोड़ी के साथ-साथ अभिनेता के गढ़वाली पिता की भूमिका में राकेश गौड़, माता की भूमिका में गीता गुसाईं नेगी तथा अभिनेत्री के कुमाऊनी पिता व ईजा की भूमिका में क्रमशः हेम पंत व पुष्पा जोशी द्वारा व्यक्त संवादों तथा अभिनय ने दर्शकों को गुदगुदाने और भाव विभोर कर निर्मित फिल्म को अपार सफलता की राह पर खड़ा करने का कार्य किया गया है। फिल्म के अन्य किरदारों में हरि सेमवाल, सुशील पुरोहित, गोकुल पंवार, गिरीश पहाड़ी, गोपा नयाल, गम्भीर जायरा, राजीव शर्मा, शम्भू साहिल, मोहन जोशी, आशा पांडे,अनिल शर्मा, डॉ.सुनीत नैथानी व बिनीता नेगी की भूमिका भी सराहनीय रही है।
निष्कर्ष स्वरुप, कुमाऊं और गढ़वाल के जनमानस के मध्य कथित मनभेद की ऐतिहासिक और सामाजिक परतों को खोलती निर्मित फिल्म ‘गढ़ कुमौ’ अंचल के प्रवासी जनों को प्रभावित करती नजर आती है। अंचल के दोनों पहाड़ी समाजों में भाषाई, सांस्कृतिक, भौगोलिक और ऐतिहासिक समानताओं को सिद्ध करती नजर आती है। बॉक्स ऑफिस पर धीरे-धीरे रंग जमा कर कारनामा करती नजर आती है।
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