दिल्ली में जॉब में नहीं दिखी ग्रोथ, पहाड़ लौट मुर्गी पालन में कर रहे अच्छी कमाई

दिल्ली में जॉब में नहीं दिखी ग्रोथ, पहाड़ लौट मुर्गी पालन में कर रहे अच्छी कमाई

कोरोना काल में लोगों को मजबूरन रिवर्स पलायन करना पड़ा है लेकिन कुछ ऐसे युवा भी हैं, जिन्हें दिल्ली जैसे बड़े शहर भी रास नहीं आए। वहां 12-12 घंटे की नौकरी के बाद भी ग्रोथ मिलती न देख उन्होंने गांव लौटने का फैसला किया। पढ़िए सफल रिवर्स माइग्रेशन की यह कहानी…

उत्तराखंड में स्वरोजगार का दायरा बहुत बड़ा है। पर्यटन से जुड़े रोजगार के क्षेत्रों के आलावा कृषि, मछली पालन और मुर्गी पालन जैसे क्षेत्रों में भी अब युवा रुचि दिखा रहे हैं। #UttarakhandPositive में इस अगली कड़ी में हम ऐसे ही एक और युवा की सक्सेस स्टोरी लेकर आए हैं, जिन्होंने मुर्गी पालन में खुद को एक ‘ब्रांड’ के तौर पर स्थापित कर लिया है।

जिंदगी तब बदलने लगती है जब आपका चीजों को देखने का नजरिया बदलने लगता है। काम को छोटा समझकर टाल देना, फायदा होगा या नहीं, लोग तो नहीं कहेंगे, ये क्या काम कर रहे हो। ऐसी तमाम बातें हैं जो शुरुआत में दिमाग में आती हैं, लेकिन अगर इरादा मजबूत हो और खुद पर भरोसा हो तो सफलता की गारंटी पूरी है।

पौड़ी गढ़वाल के कल्जीखाल ब्लॉक के डांग गांव के अनुज बिष्ट की गिनती आज इस पूरे क्षेत्र में एक सफल कारोबारी के तौर पर होती है और यह सिर्फ पांच साल में मुमकिन हो गया है। आज वह न सिर्फ खुद कमा रहे हैं बल्कि कई लोगों को ट्रेनिंग देकर उन्हें स्वरोजगार के काबिल बना रहे हैं। करीब 5 साल पहले उन्होंने छोटे स्तर पर ब्रायलर फार्मिंग से शुरुआत की थी। आज उनका मुर्गी फॉर्म चर्चा का केंद्र बन गया है।

हिल-मेल से बातचीत में अनुज ने बताया कि दिमाग में एक चीज साफ थी कि जो करना है आर्गेनिक करना है। उन्होंने बताया कि करीब 5 साल पहले वह दिल्ली में नौकरी करने गए थे। वहां यमुना विहार से मैंने हार्डवेयर और नेटवर्किंग का कोर्स CCNA, CCNP किया था। उसके बाद नौकरी लग गई थी लेकिन वह मैंने सिर्फ 3 महीने की थी। उन्होंने आगे कहा कि प्राइवेट जॉब में हम कितना भी काम कर लें, हमारी ग्रोथ पक्की नहीं रहती पर अपना काम शुरू करने में थोड़ी परेशानी जरूर आती है पर बाद में सफलता मिल जाती है।

ऑर्गेनिक मुर्गी पालन के पीछे बड़ी वजह

मुर्गी पालन के बारे में उन्होंने दूसरे तरीके के बारे में बताया कि उसमें एंटीबायोटिक होता है, ओवरडोज और केमिकल का भरपूर इस्तेमाल होता है। यह समझ लीजिए कि 1 दिन का बच्चा डेढ़ महीने में ही मार्केट में आ जाता है और उसका वजन 2 से 3 किलो का हो चुका रहता है। लोग उसे न्यूट्रीशन के लिए लेते हैं लेकिन उससे कुछ मिलता नहीं है।

ऐसे में अनुज ने ऑर्गेनिक काम शुरू किया। वह कहते हैं कि इसमें हम पूरा पोषण और केमिकल फ्री होने का ख्याल रखते हैं। इस फील्ड में कई लोग काम कर रहे हैं लेकिन स्थानीय कच्चे माल, अनाज आदि का इस्तेमाल नहीं करते। हमने यहीं पर एग्रीकल्चर के सेटअप लगा रखे हैं। उससे ही हमारा मक्का, बाजरा, पॉल्ट्री का बीज आदि मिल जाता है। हम इसे फ्री रेंज में करते हैं। मतलब कि मुर्गी को खुले में रखते हैं, जिससे वे कीड़े वगैरह खा सकें। हम प्रकृति के साथ मिलकर काम कर रहे हैं।

2000 मुर्गियों का सेटअप

उन्होंने बताया कि हमारे पास अभी 2000 मुर्गियों का सेटअप है। कोरोना काल में अब लोगों को आर्गेनिक काम का महत्व समझ में आ गया है। आर्गेनिक खाने-पीने से हमारी लाइफस्टाइल अच्छी रहेगी और हम लंबा जिएंगे। मार्केट में आज हम केमिकल पर आधारित हो गए हैं। काम करने वाले लोग नेचर के खिलाफ जाकर काम कर रहे हैं। ओवर ग्रोथ कराकर बाजार में मुर्गों को उतारा जा रहा है।

कितने पैसे से की शुरुआत

अनुज ने बताया कि शुरू में करीब 4 लाख रुपये हमने इसमें लगाए थे। नाबार्ड से लोन भी हुआ था। उसकी सब्सिडी भी मिल चुकी है। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में पशुपालन विभाग के लोग काफी मददगार रहे हैं। हमने पौधे और खेती में भी जैविक काम शुरू कर दिया है। पहले जमीन बंजर थी।

अनुज ने कहा कि उत्तराखंड में ट्रांसपोर्टेशन की बड़ी समस्या है। छोटी सी चीज सस्ती होती है पर उसे दूर से लाने में पैसा ज्यादा खर्च हो जाता है। ऐसे में स्थानीय स्तर पर काम करने से हर तरह से फायदा होता है।

10 रुपये की चीज में 100 रुपये का किराया लग जाता है। खेती को हमने शुरू किया है और लोगों को भी प्रशिक्षण दे रहा हूं। उन्होंने कहा कि पहाड़ में काफी काम है लेकिन उसके लिए नजरिया बदलना होगा। ऐसा किया तो किसी को भी दूर जाने की जरूरत नहीं होगी।

आगे की क्या तैयारी

अनुज ने बताया कि अभी उनके पास 2000 मुर्गियों का बेस है और उसका प्रोडक्ट लोकल में ही खत्म हो जाता है। अब हमें काम बड़ा करना है तो प्रोडक्शन बढ़ाना होगा। इसके लिए हम चेन बनाने पर काम कर रहे हैं। 2-4 लोगों को स्वरोजगार भी दिलाने की कोशिश है।

कमाई भी जान लीजिए

उन्होंने कहा कि बिजनस शुरू करने से पहले हमें नुकसान के लिए भी तैयार रहना चाहिए। अब फिक्स तो कुछ भी नहीं है पर 50 से 60 हजार रुपये महीने आराम से कमा लेते हैं जबकि शुरूआत में दिक्कत तो होती ही है। अनुज हर सेक्टर में प्रशिक्षण केंद्र खड़ा करने की बात कहते हैं। उन्होंने कहा कि जब लोग काम देखते हैं तब जाकर वह काम करने के बारे में सोचते हैं। यहां के लोग भी अब मुर्गी पालन के बारे में रुचि बढ़ा रहे हैं।

1 comment
Hill Mail
ADMINISTRATOR
PROFILE

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked with *

1 Comment

विज्ञापन

[fvplayer id=”10″]

Latest Posts

Follow Us

Previous Next
Close
Test Caption
Test Description goes like this