मनोज रावत का जन्म पौड़ी गढ़वाल जिले के बोनसाल मल्ला में हुआ। उन्होंने रुहेलखंड यूनिवर्सिटी से मास्टर डिग्री हासिल करने के बाद असिसटेंट कमांडेंट के तौर पर साल 1986 मेंं ITBP ज्वाइन की। उन्हें बीएसएफ अकादमी टेकनपुर में सीधे जीओ कोर्स के लिए चुन लिया गया।
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार में उत्तराखंड के सपूतों को अहम जिम्मेदारियां दिए जाने का सिलसिला जारी है। कैबिनेट की नियुक्ति समिति ने मनोज सिंह रावत के भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में बतौर एडीजी नियुक्त किए जाने को मंजूरी दे दी है। वह ITBP से इस रैंक पर प्रोन्नति पाने वाले बल के पहले अधिकारी हैं।
1986 बैच के आईटीबीपी कैडर के अधिकारी मनोज सिंह रावत के पास देश, विदेश में फील्ड और प्रशिक्षण का व्यापक अनुभव है। वह नई दिल्ली स्थित मुख्यालय में आईटीबीपी की ऑपरेशन ब्रांच को लीड कर रहे थे। उन्हें हाल ही में नवगठित ITBP की पश्चिमी कमान की जिम्मेदारी दी गई थी। चंडीगढ़ में मुख्यालय वाली ITBP की इस पश्चिमी कमान पर ही लद्दाख, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में चीन के साथ लगती भारत की सीमाओं की सुरक्षा की जिम्मेदारी है। ऐसे में एडीजी मनोज रावत की भूमिका काफी महत्वपूर्ण हो जाती है। इस नई कमान का मकसद ITBP की ऑपरेशन, प्रशिक्षण क्षमता को बढ़ाना और फील्ड फॉर्मेशंस से संबंधित प्रशासनिक मसलों में सुधार शामिल है।
ADG का रैंक ग्रहण करने के बाद घर पहुंचने पर हुआ जोरदार स्वागत
मनोज रावत का जन्म पौड़ी गढ़वाल जिले के बोनसाल मल्ला में हुआ। उन्होंने रुहेलखंड यूनिवर्सिटी से मास्टर डिग्री हासिल करने के बाद डायरेक्ट एंट्री ऑफिसर (असिसटेंट कमांडेंट) के तौर पर साल 1986 में ITBP ज्वाइन की। उन्हें बीएसएफ अकादमी टेकनपुर में सीधे जीओ कोर्स के लिए चुन लिया गया। यहां नौ जुलाई, 1986 से 18 जुलाई, 1987 तक हुई ट्रेनिंग में मनोज रावत को ओवरऑल बेस्ट ट्रेनी चुना गया। उन्हें बेस्ट ट्रेनी की ट्रॉफी प्रदान की गई। इसके बाद वह 34 साल लंबे सेवाकाल में ITBP के सभी सेंटरों मसलन, शिमला, कुल्लू, बानू, लेह, टिगरी, लुधियाना, गौचर, मसूरी, दिल्ली, तेजपुर, शिलांग और ईटानगर में तैनात रहे।सीमा पर विपरीत परिस्थितियो में पूरे समर्पण और तन्मयता से मुस्तैदी के साथ मनोज रावत ने अपने सेवाकाल को आगे बढ़ाया।एडीजी रावत को सराहनीय सेवा के लिए साल 2007 में पुलिस मेडल और 2012 में विशिष्ट सेवा के लिए राष्ट्रपति पुलिस पदक प्रदान किया गया।
कोलंबो में की कमांडो दस्ते की अगुवाई
साल 2012 में मनोज रावत को ऐसे समय में श्रीलंका के कोलंबों में भारतीय उच्चायोग की सुरक्षा में तैनात होने वाले कमांडो दस्ते का नेतृत्व सौंपा गया जब दोनों देशों के संबंध काफी खराब हो चुके थे। भारतीय उच्चायोग के अधिकारी और उच्चायुक्त को भीषण खतरा था। 1993-94 में श्रीलंका के राष्ट्रपति प्रेमदासा और उनके दो महत्वपूर्ण नेताओं को बेहरमी से मार दिया गया। इसी दौरान विभिन्न सूत्रों यह सूचना मिली की कई ऐसी जानकारियों का आदान-प्रदान हुआ है जिन्हें देखकर लगता है कि भारतीय उच्चायोग एक बड़े खतरे के मुहाने पर खड़ा है। अपने सुरक्षा दल का नेतृत्व कर रहे मनोज रावत ने बहुत ही सूजबूझ का परिचय देते हुए उच्चायोग और उसके अधिकारियों की विपरीत परिस्तिथियों में फूलप्रूफ सुरक्षा सुनिश्चित की।
एनएसजी में किया जबरदस्त काम
फील्ड ट्रेनिंग, ऑपरेशन, सीमा की सुरक्षा, खेल और प्रशासन के क्षेत्र में अनुकरणीय प्रदर्शन को देखते हुए साल 2007 में उन्हें एनएसजी में डेप्यूटेशन पर भेजा गया। एनएसजी में अपने सेवाकाल के दौरान मनोज रावत ने कई वीआईपी की सुरक्षा जिम्मेदारी निभाई। उन्होंने एनएसजी में प्रतिनियुक्ति के दौरान किसी काम में समय-समय पर पेश आने वाली चुनौतियों का सच्ची श्रद्धा और समर्पण के साथ सामना किया। उन्होंने एनएसजी के आदर्श वाक्य शौर्य, दृढ़ता और कर्मनिष्ठा के अनुरूप इस विशिष्ट बल के उच्च मानदंडों को बनाए रखा।मनोज रावत के परिवार में पत्नी ममता रावत के अलावा दो बेटियां हैं।
Leave a Comment
Your email address will not be published. Required fields are marked with *