Exclusive ले. जनरल (रिटा.) अनिल भट्ट : कोरोना से हालात मुश्किल लेकिन यह एक अवसर है, फायदा उठाना चाहिए

Exclusive ले. जनरल (रिटा.) अनिल भट्ट : कोरोना से हालात मुश्किल लेकिन यह एक अवसर है, फायदा उठाना चाहिए

कोरोना काल में ‘ई-रैबार’ के बाद अब हिल-मेल टीवी लेकर आया है उत्तराखंड पर आधारित लाइव चैट शो- बात उत्तराखंड की। यहां आप किसी भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से जुड़कर कनेक्ट हो सकते हैं।

हिल-मेल टीवी ने अपना नया शो ‘बात उत्तराखंड की’ शुरू किया है। कार्यक्रम के पहले एपिसोड में हमारे मेहमान रहे हाल ही में सेना से रिटायर हुए उत्तराखंड के सपूत लेफ्टिनेंट जनरल अनिल भट्ट। भारतीय सेना के बेहतरीन अधिकारी रहे जनरल भट्ट का रिटायरमेंट के बाद किसी मीडिया हाउस को दिया यह पहला इंटरव्यू है। चीन के साथ डोकलाम विवाद के समय डीजीएमओ रहे ले. जनरल अनिल भट्ट श्रीनगर में सेना की 15वीं कोर के कमांडर भी रहे। उनके नेतृत्व में साल 2018 में सेना ने रिकॉर्ड संख्या में वांटेड आतंकी कमांडरों का सफाया किया। वह सेना मुख्यालय से सैन्य सचिव के बाद 30 जून को ही सेवानिवृत्त हुए हैं।

राज्य की तरक्की की बात करते हुए लेफ्टिनेंट जनरल भट्ट ने कहा कि जब 20 साल पहले उत्तराखंड राज्य बना तो वह बहुत बड़ा मौका था कि आइए अलग तरीके से पहाड़ के विकास के लिए काम किया जाए। उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश जैसे छोटे पहाड़ी राज्य काफी सफल रहे हैं। उत्तराखंड के लोग अपनी ईमानदारी, वफादारी, कर्मठता और मेहनत के लिए जाने जाते हैं। यह हमारे खून में है और इसी का फायदा उठाकर हमें अपने राज्य और अपने लोगों को आगे ले जाना है।

उत्तराखंड डबल क्राइसिस से जूझ रहा है। कोविड-19 तो है ही, इसके साथ ही बड़ी संख्या में प्रवासी भी लौटे हैं। अब चिंता यह है कि उन्हें रोजगार कैसे उपलब्ध कराया जाए। ले. जनरल भट्ट ने कहा कि हमारे राज्य, देश और पूरी दुनिया के लिए यह मुश्किल वक्त है। उत्तराखंड के लिए विशेषतौर पर पलायन की चुनौती का एक समाधान छोटे समय के लिए वापस आया है। हमारे लोग वापस अपने गांव, अपने इलाके में आए हैं। इस मुश्किल वक्त में यह एक मौका आया है कि मैदानी इलाकों में काम कर रहे लोग वर्षों बाद अपने गांव आए हैं।

उन्होंने कहा, ‘जिस गांव में 2-3 परिवार ही थे, आज कई परिवार पहुंचे हैं। अब यह मौका आया है कि जिन लोगों को वापस लाने के बारे में हम सोच रहे थे, वे लौट आए हैं। मेरा यह विचार है कि हमें इसका फायदा उठाना चाहिए। हमारी ताकत अगर देखें तो धार्मिक पर्यटन के साथ ही हिमालय की आबोहवा भी है। पर्वत की सुंदरता, जंगल और पानी को हम ईकोटूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए बहुत काम कर सकते हैं।’

उन्होंने कहा कि अगर हम अपने पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश को देखें तो पहले वहां उतने ही सेब होते थे जितने उत्तराखंड में होते थे लेकिन आज की तारीख में वह कश्मीर से बड़ा सेब सप्लायर हो गया है। इसका विश्लेषण किया जाए तो इसमें पूरे राज्य का योगदान है। पहले धान, गेहूं और दूसरे मोटे अनाज उगाए जाते थे लेकिन बाद में पूरे हिमाचल प्रदेश में इतना सेब होने लगा कि पूरी इकॉनमी ही एपल बेस्ड हो गई है।

ले. जनरल भट्ट ने कहा, हमें हिमाचल के उदाहरण की स्टडी करनी चाहिए, जिससे हर गांव के लोग इस काम में जुटें। उन्होंने उत्तराखंड के अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि जब मैं वहां था तो जनरल रावत के गाइडेंस में हमने ऊंचे इलाकों में अखरोट और चिलगोंजे के पौधे लगाने की पहल की थी। हमें लोगों को प्रोत्साहित करना है। भट्ट ने कहा कि मैं कश्मीर के हर घर में देखता हूं वहां 4-5 पेड़ अखरोट के होते हैं और कम से कम उस घर की 2-3 लाख रुपये की इनकम इसी से हो जाती है। हमें भी कुछ वैसा ही देखना होगा और एक मूवमेंट बनाना होगा।

उन्होंने कहा कि इस काम में अभी कोई देरी नहीं हुई है। मेरा यही मानना है कि जिस दिन सही विचार आ जाए वही अच्छा है। आज से भी अगर हम सेब पर केंद्रित हों तो हो सकता है आनेवाले 5-6 या 10 सालों में हमारा सेब पूरी दुनिया में पॉपुलर हो जाए।

पूरा कार्यक्रम देखने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

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