उत्तराखंड की भौगोलिक परिस्थितियां या कोई और वजह यहां की शिक्षा प्रणाली को कैसे बेहतर किया जा सकता है, इसी पर बात करने के लिए हिल मेल की लाइव चर्चा में प्रदेश की कई हस्तियां शामिल हुईं। क्या कमी, कैसे सुधारें, पहले से अब का हाल, जैसे कई सवालों पर हुई चर्चा।
हिल मेल टीवी के ‘बात उत्तराखंड की’ कार्यक्रम में शिक्षा की चुनौतियां और समाधान विषय पर चर्चा के लिए शामिल हुईं दीप्ति रावत भारद्वाज, राज्य मंत्री उत्तराखंड और प्रोफेसर गोविंद सिंह, उत्तराखंड ओपेन यूनिवर्सिटी और तिमली विद्यापीठ चला रहे युवा आशीष डबराल। कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ पत्रकार ओपी डिमरी ने किया।
दीप्ति ने समझाई उत्तराखंड की शिक्षा के लिहाज से नई पहल
दीप्ति रावत ने कहा कि शिक्षा में हमेशा नई चीजें आती रहनी चाहिए क्योंकि पुरानी चीजें तो हम साथ लेकर चलते हैं, साथ में इनोवेशन की बहुत जरूरत होती है। कोविड के काल में शिक्षा के सामने अलग चुनौतियां खड़ी हो गई हैं। जितने भी शिक्षण संस्थान हैं, अब उनके सामने समस्या है कि बच्चे वहां कैसे जाएं और पढ़ाई कैसे जारी रखा जाए।
इसमें कई तरह की थिअरी है कि बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाया जाए, घर बैठे पढ़िए, घर से असाइनमेंट कीजिए। जेएनयू समेत कई प्रमुख यूनिवर्सिटी ने ओपन बुक सिस्टम अपनाया है। उन्हें एक हफ्ते का समय दिया कि चाहे आप मेल कीजिए, व्हाट्सएप या पोस्ट से भी अपना उत्तर भेज सकते हैं। अब फिजिकली छात्रों को बुलाने पर हर राज्य और संस्थानों ने अपने स्तर पर निर्णय लिए हैं।
40 दिन में ब्रॉडबैंड से जुड़ेंगे सभी कॉलेज
अमेरिका में तो विश्वविद्यालयों को खोलने की चर्चा हुई। राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा कि छात्रों को तो आना ही पड़ेगा, बाहर के छात्रों को कहा कि आप नहीं आएंगे तो अपने-अपने देश लौटिए। राज्य मंत्री ने कहा कि उत्तराखंड में कनेक्टिविटी की समस्या है, ऐसे में हमारे लिए ऑनलाइन परीक्षा कराना आसान नहीं है। बहुत से कॉलेज ऐसे हैं जो ब्रॉडबैंड से जुड़े नहीं है। ऐसे में हमने निर्णय लिया कि प्रदेश के कॉलेजों को 40 दिन के भीतर ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी से जोड़ा जाए ताकि ऑनलाइन परीक्षा की स्थिति आती है तो समस्या न आए। उन्होंने कहा कि सरकार अपनी तरफ से हर स्थिति के लिए तैयार हो रही है, जिससे कोई दिक्कत न आए।
प्रदेश सरकार की मंत्री ने कहा कि पहले हमारे सुदूर क्षेत्रों में टीचर नहीं होते थे लेकिन आज हर कॉलेज में टीचर हैं। अब ब्रॉडबैंड और इन्वर्टर सुविधा देने के लिए कदम बढ़ाए गए हैं।
शिक्षा में क्वालिटी पर फोकस नहीं…
प्रोफेसर गोविंद सिंह ने कहा कि उत्तराखंड की आज की जो स्थिति है उससे 4-5 साल पहले तक की बात करें तो उत्तराखंड में शिक्षा व्यवस्था को लेकर सरकारों ने क्वांटिटी बढ़ाने पर फोकस किया, क्वालिटी पर ध्यान नहीं दिया गया। अल्मोड़ा के गरुड़ाबाज में डिग्री कॉलेज की घोषणा हो गई और दो कमरों में या समझिए कि दो दुकानें थीं उनमें कॉलेज चल रहा था। जहां भी डिग्री कॉलेज खुल रहे थे, हालत बहुत खराब थी।
उन्होंने कहा कि क्वालिटी पर ध्यान न देने से शिक्षा से छात्रों का मोहभंग हो गया। टीचर नहीं आते हैं। बड़े शहरों में कॉलेज और छात्र भी नहीं आते हैं। प्रोफेसर सिंह ने बताया, ‘एक डिग्री कॉलेज के सेमिनार में मैं गया था तो पूछा कि स्टूडेंट्स कहां हैं तो बताया गया कि जो 2-4 लोग यहां दिख रहे हैं वही हमारे स्टूडेंट्स हैं। जीप में विद्यार्थी आते हैं, उन्होंने टीचर के साथ साठगांठ कर ली है। हफ्ते में एक दिन आते हैं और हाजिरी लगाकर चले जाते हैं, एक तरह से डिग्री पाने के लिए कॉलेज में इनरोलमेंट हो रहा है।’ उन्होंने कहा कि इससे बच्चे भी खुश हैं और टीचर भी। यह स्थिति दयनीय है। कोरोना तो तीन महीने से है लेकिन शिक्षा की व्यवस्था पर बहुत ध्यान देने की जरूरत है।
बेहतर शिक्षा के कुछ टिप्स
प्रोफेसर सिंह ने कहा कि अनौपचारिक शिक्षा का जो नया दौर शुरू हुआ है, जिसमें ओपन यूनिवर्सिटी या दूरस्थ शिक्षा की बड़ी भूमिका हो सकती है। उसे मजबूत करने की जरूरत है। हर एक कॉलेज में कम से कम एक वर्चुअल क्लासरूम बनाया जाए और टीचर को भी प्रशिक्षित किया जाए। छात्र तो नई तकनीक से परिचित हैं पर टीचर उससे दूर हैं। हर कॉलेज में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की सुविधा होनी चाहिए। एजुसेट का काम उत्तराखंड में शुरू हुआ था पर, बाद में जाले लगते गए क्योंकि नई टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल नहीं हो रहा था।
आज की तारीख में कई तरह की तकनीक आ गई है, लर्निंग सिस्टम आ गए हैं। छात्रों को भी प्रेरित किया जाए। जब राष्ट्रीय स्तर पर स्वयंप्रभा नाम के लगभग 33 चैनल चल रहे हैं। राष्ट्रीय स्तर पर उच्च शिक्षा का एक बैंक है, अब दूरस्थ इलाकों में बैठे छात्र इसका इस्तेमाल कर सकें, यह जरूरी है। जूम, गूगल क्लासरूम जैसे ऐप्स का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करने की जरूरत है।
ज्यादा फीस लेने वाले प्राइवेट स्कूल तो ऑनलाइन पढ़ाई को फॉलो कर रहे हैं लेकिन सरकारी और अन्य कॉलेजों में खानापूर्ति हो रही है। पढ़ाई में जो गंभीरता खत्म हो गई थी, उसे वापस लाने की जरूरत है। सरकार भी अगर क्वांटिटी बढ़ाने की बजाय क्वालिटी पर जोर दे तो सुधार हो सकता है।
पौड़ी के आशीष चला रहे अपना संस्कृत विद्यालय
पौड़ी-गढ़वाल के तिमली गांव से जुड़े आशीष डबराल ने बताया कि 1882 में उनके परदादा ने तिमली संस्कृत पाठशाला की स्थापना की थी। अंग्रेजों की तरफ से तब विद्यालय को मदद दी जाती थी। यहां से कई जानेमाने लोगों ने शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने कहा, ‘मैं गुड़गांव में जॉब करता हूं। फिर मुझे लगा कि हमें अपनी धरोहर को मजबूत करने के बारे में सोचना चाहिए। मैंने 2014 से गांव में ही श्री तिमली विद्यापीठ के नाम से विद्यालय चलाना शुरू किया। अभी यह प्राथमिक विद्यालय है, जहां 30 विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। हमने नई तकनीकी और रोबोटिक्स जैसी चीजों के बारे में जानकारी दी है। हमारी धरोहर, पुरानी विरासत को न छोड़ते हुए हमें नई चीजों के बारे में सोचना चाहिए।
पूरी चर्चा देखने के लिए नीचे दिए गए वीडियो लिंक पर क्लिक करें…
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