गढ़वाल स्काउट के जवान प्राकृतिक आपदाओं और विषम परिस्थितियों को अच्छी तरह जानते समझते हैं। यही वजह है कि चाहे बाढ़ राहत कार्य हों या फिर भूस्खलन-हिमस्खलन से उपजे गंभीर हालात, गढ़वाल स्काउट के जवान हर आपदा में खुद को साबित करते रहे हैं। पहाड़ के लोग इन्हें देवदूत कहते हैं।
उत्तराखंड में प्राकृतिक आपदाएं लगातार आती रहती हैं। संकट की घड़ी में सबसे पहले घटनास्थल पर पहुंचकर पीड़ितों को मदद पहुंचाने की भूमिका निभाने के चलते ही गढ़वाल स्काउट को ‘देवदूत’ कहा जाता है। उत्तराखंड के चमोली जिले में आई आपदा के बाद सबसे पहले रिस्पांस करने वालों में गढ़वाल स्काउट भी रहा। तपोवन में एनटीपीसी की टनल में फंसे 35 लोगों को बचाने के लिए दिन और रात युद्ध स्तर पर काम चल रहा है। अपनी गौरवशाली सैन्य परंपरा को निभाते हुए जोशीमठ में सेना की आईबेक्स बिग्रेड के तहत गढ़वाल स्काउट के जवान 7 फरवरी को सुबह 11 बजे सबसे पहले तपोवन में एनटीपीसी की टनल पर पहुंचे। गढ़वाल स्काउट के कमांडिंग आफिसर कर्नल डी एस नेगी के नेतृत्व में 60 जवानों की टीम ने टनल के पास मोर्चा संभाला। टनल के बाहर 15 मीटर तक मलबा जमा था। ऐसे में पहाड़ के ऊपर से रस्सी के सहारे ये जवान नीचे उतरे। उसके बाद राहत और बचाव का काम शुरू हुआ।
मेजर अभिनव अवस्थी के मुताबिक, 7 तारीख सुबह 10.30 बजे हमने रिस्पांस किया। जितना जल्दी संभव था, हम यहां पर पहुंचे। यहां पर मलबा बहुत ज्यादा था और विजिबिलिटी बिल्कुल भी नहीं थी। हमने टनल का मुहाना देखा और पूरी कोशिश की कि अंदर कहां तक जाया जा सकते हैं। शुरुआत में बिल्कुल भी कुछ पता नहीं चल रहा था कि कैसे क्या करना है, रास्ता नहीं था कुछ भी विजिबल नहीं था। ऐसे में हमें रस्सी के सहारे नीचे आना था जिससे कि हम अंदर जा सके और यही एक रास्ता दिख रहा था जिससे कि हम अंदर आ पाए।
गढ़वाल स्काउट के जवानों ने बातचीत में बताया कि अंदर काफी मलबा पड़ा हुआ था। जब तक हम अंदर लोगों तक जा सके तब तक हमारी कोशिश जारी रहेगी। माउंटेन इलाके में क्लाइंबिंग करके हम लोग काम करते हैं। बहुत ही मुश्किल हालात होते हैं जिसमें हम काम कर रहे होते हैं। गढ़वाल स्काउट के जवानों ने तबाही के बीच लोगों की जान बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। बात चाहे देश सेवा की हो या जन सेवा की गढ़वाल स्काउट के जवान के जांबाज सिपाही हमेशा अपना फर्ज निभाते रहे हैं।
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गढ़वाल स्काउट के जवान प्राकृतिक आपदाओं और विषम परिस्थितियों को अच्छी तरह जानते समझते हैं। यही वजह है कि चाहे बाढ़ राहत कार्य हों या फिर भूस्खलन-हिमस्खलन से उपजे गंभीर हालात, गढ़वाल स्काउट के जवान हर आपदा में खुद को साबित करते रहे हैं। पहाड़ के लोग इन्हें देवदूत कहते हैं और ये बात काफी हद तक सही भी है। मौत के मुंह में जाकर लोगों की जान बचाने का साहस केवल एक सैनिक ही कर सकता है।
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