चंडीगढ़ पीजीआई की प्रोफेसर मीनू सिंह एम्स ऋषिकेश में निदेशक नियुक्त

चंडीगढ़ पीजीआई की प्रोफेसर मीनू सिंह एम्स ऋषिकेश में निदेशक नियुक्त

ऋषिकेश एम्स में निदेशक के तौर पर मीनू सिंह को नियुक्त किया गया है। मीनू सिंह चंडीगढ़ पीजीआई में प्रोफेसर रह चुकी है।

उत्तराखंड की आज की बड़ी खबर  पीजीआइ चंडीगढ़ की प्रोफेसर मीनू सिंह को शुक्रवार को एम्स ऋषिकेश का निदेशक नियुक्त किया गया। प्रोफेसर मीनू सिंह पीजीआइ चंडीगढ़ में पीडियाट्रिक पल्मोनोलाजी विभाग की हेड और टेलीमेडिसिन विभाग की इंचार्ज के तौर पर कार्यरत थीं। बच्चों में टीबी के निदान को लेकर उन्होंने कई शोध व परियोजनाओं पर काम किया है। उन्हें कई बार इस प्रोजेक्ट के लिए सम्मानित भी किया जा चुका है। इसके अलावा बच्चों में टीबी के निदान को लेकर मापदण्ड तैयार करने, पहचान और इस रोग से बच्चों को बचाने के लिए दवाईयों और वैक्सीनेशन के क्षेत्र में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और आइएसआरओ के साथ भी काम किया है।

पीजीआइ चंडीगढ़ की प्रो. मीनू सिंह एम्स ऋषिकेश की निदेशक नियुक्त, बच्चों में टीबी के निदान पर कर चुकीं काम
पीजीआइ के पीडियाट्रिक पल्मोनोलाजी विभाग और टेलीमेडिसिन विभाग की हेड प्रो. मीनू सिंह ऋषिकेश एम्स की निदेशक होंगी। प्रो. मीनू सिंह ने बच्चों में टीबी के निदान को लेकर उन्होंने कई शोध व परियोजनाओं पर काम किया है।प्रोफेसर मीनू सिंह पीजीआइ चंडीगढ़ में एडवांस पीडियाट्रिक सेंटर और पीडियाट्रिक पल्मोनोलाजी विभाग की हेड की जिम्मेदारी भी निभा चुकी हैं।

शोध के क्षेत्र में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उन्होंने पल्मोनोलाजी के क्षेत्र में पीएचडी और एमडी छात्रों का मार्गदर्शन किया है। उनका महत्वपूर्ण योगदान बच्चों में अस्थमा, तपेदिक (टीबी) और सिस्टिक फाइब्रोसिस के क्षेत्र में रहा है।बचपन की एलर्जी और अस्थमा में बीसीजी की भूमिका पर आईसीएमआर के साथ उनकी टास्क फोर्स परियोजना ने एलर्जी की स्थिति के लिए इस टीके के उपयोग की अवधारणा को आगे बढ़ाया है।

उन्होंने बीसीजी टीकाकरण और अस्थमा, खाद्य एलर्जी और अस्थमा पर आईसीएमआर परियोजनाओं का नेतृत्व किया है। मौजूदा प्रोफेसर मीनू सिंह आइसीएमआर की एक प्रोजेक्ट एलर्जी ब्रोंकोपल्मोनरी एस्परगिलोसिस पर काम कर रही हैं।

तपेदिक के क्षेत्र में डा. मीनू ने संदिग्ध तपेदिक वाले बच्चों में गैस्ट्रिक लैवेज और ब्रोन्कोएलेवोलर लैवेज की नैदानिक ​​​​उपज की तुलना की थी, जो बचपन के तपेदिक के नैदानिक ​​आयुध में ब्रोन्कालवीलर लैवेज की स्थापना करने वाले पहले पेपर में से एक था।

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