नैनीताल के वीरेंद्र मनराल हत्याकांड मामले में दर्शन सिंह दोषमुक्त, हाईकोर्ट ने निरस्त किया सेशन कोर्ट का फैसला

नैनीताल के वीरेंद्र मनराल हत्याकांड मामले में दर्शन सिंह दोषमुक्त, हाईकोर्ट ने निरस्त किया सेशन कोर्ट का फैसला

बहुचर्चित वीरेंद्र मनराल हत्याकांड मामले में आरोपी बनाए गए दर्शन सिंह को नैनीताल हाईकोर्ट से बड़ी राहत मिली है। हाईकोर्ट ने जिला एवं सत्र न्यायाधीश नैनीताल की अदालत के निर्णय को निरस्त कर दोषमुक्त कर दिया है। जबकि, जिला एवं सत्र न्यायालय ने दर्शन सिंह को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।

मुख्य न्यायाधीश जी नरेंद्र और न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ ने सेशन कोर्ट नैनीताल की ओर से पारित 15 जून 2023 के निर्णय को निरस्त कर दर्शन सिंह की अपील स्वीकार कर ली है। इस मामले में दर्शन सिंह को धारा 120 बी और 302 आईपीसी के तहत आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी, लेकिन हाईकोर्ट ने सबूतों में विरोधाभास और अभियोजन की कमजोरियों को देखते हुए उसे बरी करने का आदेश दिया है।

पूरा मामला साल 2018 का है, जब रामनगर कोर्ट के बाहर दिनदहाड़े बीडीसी मेंबर वीरेंद्र मनराल की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। शिकायतकर्ता दीवान सिंह ने अपनी प्राथमिकी में चार लोग देवेंद्र सिंह उर्फ बाऊ, सोनू कांडपाल, हरीश फर्त्याल और संजय नेगी के नाम दर्ज कराए थे। पुलिस जांच में दर्शन सिंह और गुरप्रीत सिंह उर्फ गोपी का नाम भी सामने आया। ऐसे में उनके खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई।

अभियोजन पक्ष ने इस मामले में 19 गवाह पेश किए, जिन्होंने दर्शन सिंह को घटना में शामिल बताया। जबकि, बचाव पक्ष ने तर्क दिया कि उसका नाम बाद में जोड़ा गया और उसकी संलिप्तता को साबित करने के लिए कोई ठोस साक्ष्य नहीं हैं। अपीलकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता पुष्पा जोशी ने दलील दी कि दर्शन सिंह को प्राथमिकी में नामजद नहीं किया गया था। बाद में गवाहों के बयानों के आधार पर आरोप पत्र में शामिल किया गया।

उन्होंने ये भी कहा कि अभियोजन पक्ष की ओर से पेश मोबाइल नंबर, जिसके आधार पर उसे घटनास्थल के पास बताया गया, वास्तव में उसके नाम पर पंजीकृत नहीं था। बल्कि, किसी अन्य व्यक्ति धर्मेंद्र के नाम पर था। इसके बावजूद पुलिस ने धर्मेंद्र से पूछताछ नहीं की और न ही उसे गवाह के रूप में पेश किया।

हाईकोर्ट ने ये भी पाया कि ट्रायल कोर्ट में दर्शन सिंह की नाबालिग होने की दलील को नजरअंदाज कर दिया गया था। कोर्ट ने किशोर न्याय बोर्ड से आयु प्रमाण रिपोर्ट मंगवाई, जिसमें पुष्टि हुई कि घटना के समय दर्शन सिंह 17 वर्ष 3 माह और 13 दिन का था।

सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के आधार पर यह स्पष्ट है कि किसी भी चरण में किशोर होने का दावा किया जा सकता है और यदि आरोपी नाबालिग पाया जाता है तो उस पर किशोर न्याय अधिनियम के प्रावधान लागू होंगे। इन तथ्यों और साक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष यह साबित करने में असफल रहा कि दर्शन सिंह हत्या की साजिश में शामिल था।

गवाहों के बयानों में विरोधाभास थे और मोबाइल लोकेशन संबंधी सबूत अविश्वसनीय पाए गए। अदालत ने सेशन कोर्ट के फैसले को रद्द करते हुए दर्शन सिंह को दोषमुक्त कर दिया और जेल प्रशासन को निर्देश दिया है कि यदि वो किसी अन्य मामले में वांछित नहीं है तो उसे तत्काल रिहा किया जाए।

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