लॉकडाउन में गांव लौटे इंजीनियर ने पेश की मिसाल, जल संरक्षण के लिए बनाया चाल-खाल

लॉकडाउन में गांव लौटे इंजीनियर ने पेश की मिसाल, जल संरक्षण के लिए बनाया चाल-खाल

कोरोना काल में उत्तराखंड के गांवों में बड़ी संख्या में युवा लौटे हैं। इनमें से कुछ युवाओं ने खाली समय बिताने की जगह अपने समय का सदुपयोग कर मिसाल कायम की है। #uttarakhandpositive सीरीज में आज ऐसे ही एक आईटी इंजीनियर की कहानी।

रोहित नेगी नोएडा में एक आईटी इंजीनियर हैं। लॉकडाउन में घर लौटे तो खाली समय बिताने की जगह वह गांव की साफ-सफाई में जुट गए। उन्होंने कुलदेवता के मंदिर की सफाई की। इसके साथ ही सभी मंदिरों को साफ किया, पानी के पुराने टैंक और झाड़ियों को साफ किया। इसी दौरान उनके मन में पुराने तरीके से जल-संरक्षण करने का ख्याल आया। रोहित ने अपने गांव कांडा मल्ला, ब्लॉक- बीरोंखाल, पौड़ी गढ़वाल के युवाओं को साथ लिया और जल-संरक्षण के लिए चाल-खाल का डिज़ाइन तैयार किया।

 

50 हज़ार लीटर की क्षमता वाला खाल गांव के युवाओं ने अभी तक बनाया है। हाल में बारिश हुई तो पानी भी इकट्ठा हो गया। पूरा गांव इन पर नाज कर रहा है। हिल-मेल से बातचीत में रोहित ने बताया कि फीलगुड संस्था के साथ हम कई साल से काम कर रहे थे। हर गांव में एक युवा संगठन बनाकर 25-30 चाल-खाल तैयार कराए गए हैं। रोहित ने उससे जुड़कर छुट्टी के दिन श्रमदान भी किया था। अब लॉकडाउन में जब वह घर आए तो उन्होंने उसी आइडिया पर काम करने का फैसला किया।

 

उन्होंने बताया कि मैंने अपने गांव में एक संगठन बनाया और युवाओं के साथ जल संरक्षण के विचार साझा किए। यह कोई नया काम नहीं था। वहां सालों पहले खाल थी जो रिपेयर न होने के कारण खराब हो गई थी। इससे 3-4 गांवों को फायदा होता है। इसके चलते कई जल स्रोत सूख चुके थे। ऐसे में खाल-चाल जरूरी हो गया था। इससे पानी के स्रोत रिचार्ज होते रहते हैं। रोहित ने कहा कि वह 2 लाख लीटर की क्षमता का बनाना चाहते थे, लेकिन रेंजर राखी जुयाल ने बताया कि वहां चीड़ के पौधे हैं, ऐसे में 50 हजार लीटर का ही खाल-चाल पास हुआ। नियम के तहत वहां पेड़ नहीं होने चाहिए।

 

गांव की इस टीम में अनिल रावत, मोहित रावत, धीरेंद्र पवांर, अरुण नेगी, कृष्णा रावत, हरजीत सिंह, सूरज नेगी, भुपी नेगी, सोनी पवांर, पूर्व प्रधान महिपाल रावत, पंकज पटवाल, शैलेश शामिल थे। युवाओं के साथ ही गांव के बच्चों ने भी पूरा सहयोग किया। 3 दिन तक श्रमदान किया और 5 दिनों में वन विभाग का सहयोग मिला और यह प्रयास पूरा हुआ। इलाके के लोग रोहित के प्रयास को देखकर यही कह रहे हैं – गांव को दो चार इंजीनियर ऐसे और चाहिए।

 

एक सवाल के जवाब में रोहित ने बताया कि चीड़ के जंगलों में आग न लगे इसके लिए भी वे प्रयास कर रहे हैं और लोगों को जागरूक कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि लॉकडाउन के दौरान हम खाली बैठकर समय काटते इससे बढ़िया है कि कुछ समाज के लिए काम हो गया।

 

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