उत्तराखंड साल 2000 में 13 जिलों के साथ अस्तित्व में आया था। 15 अगस्त, 2011 को तत्कालीन मुख्यमंत्री ने चार नए जिलों के निर्माण की घोषणा की। इनमें उत्तरकाशी जिले में यमुनोत्री, पौड़ी में कोटद्वार, अल्मोड़ा में रानीखेत और पिथौरागढ़ में डीडीहाट को नया जिला घोषित किया गया। लेकिन सीएम पद से हटते ही ये मामला ठंडे बस्ते में चला गया।
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड राज्य बनने के बाद से ही छोटी-छोटी प्रशासनिक इकाइयों के गठन की मांग समय-समय पर उठती रही है। बावजूद, इसके करीब 24 साल का लंबा समय बीत जाने के बाद भी धरातल पर कोई कार्य नहीं हो पाया है। विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाले इस पहाड़ी प्रदेश के नए जिलों के गठन का मामला जहां हर बार सियासत की भेंट चढ़ता रहा उत्तराखंड अलग राज्य गठन के बाद से ही यहां नए जिलों की मांग उठने लगी थी, उत्तराखंड साल 2000 में 13 जिलों के साथ अस्तित्व में आया था। 15 अगस्त, 2011 को तत्कालीन मुख्यमंत्री ने चार नए जिलों के निर्माण की घोषणा की। इनमें उत्तरकाशी जिले में यमुनोत्री, पौड़ी में कोटद्वार, अल्मोड़ा में रानीखेत और पिथौरागढ़ में डीडीहाट को नया जिला घोषित किया गया। लेकिन सीएम पद से हटते ही ये मामला ठंडे बस्ते में चला गया।
वर्ष 2012 में कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री ने नए जिलों की भाजपा सरकार की घोषणा को दरकिनार कर राजस्व परिषद के अंतर्गत पुनर्गठन आयोग बनाकर ये मामला सौंप दिया। वर्ष 2016 में सीएम नए जिलों को लेकर कदम बढ़ाए। उन्होंने एक साथ आठ नए जिलों के निर्माण का इरादा जताया। यह बात अलग है कि तब उन्होंने नए जिलों के नाम सार्वजनिक नहीं किए। इसके बाद सीएम ने अपने दूसरे कार्यकाल में इस बात के संकेत दिए हैं कि नये जिलों की मांग पर कदम आगे बढ़ाया जाएगा। इस बीच भाजपा सरकार में रुड़की, रामनगर, कोटद्वार, काशीपुर और रानीखेत को जिला बनाए जाने की चर्चा हुई। अब एक बार फिर पुराने चार जिलों को बनाने की मांग तेज होने लगी है।
देश आज 78वीं वर्षगांठ पूरे धूमधाम से मना रहा है। वहीं पिथौरागढ़ जिले के डीडीहाट में लोगों ने स्वतंत्रता डीडीहाट को जिला बनाने के लिए स्थानीय लोगों ने प्रदर्शन करते हुए 14 पाउंड का केक काटते हुए कहा कि 14 साल पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री 15 अगस्त के दिन डीडीहाट को जिला बनाने की घोषणा की थी। लेकिन आज तक डीडीहाट जिला नहीं बन पाया है। जिसके चलते गुस्साए क्षेत्रवासियों ने रामलीला मैदान में जिला बनाओ संयुक्त मोर्चा के आह्वान पर विरोध जताते हुए केक काट कर विरोध प्रदर्शन किया। इस प्रदर्शन में भारी संख्या में स्थानीय लोगों के साथ-साथ पूर्व सैनिक संगठन के लोग भी मौजूद रहे। स्थानीय लोगों ने प्रदर्शन करते हुए कहा कि साल 1962 से डीडीहाट को जिला बनाने की मांग चली आ रही है। जिसके चलते साल 2011 में तत्कालीन निशंक सरकार ने रानीखेत, डीडीहाट, यमुनोत्री और कोटद्वार को जिला बनाने की घोषणा की थी। लेकिन कुछ समय बाद निशंक मुख्यमंत्री पद से हट गए और मामले में आगे कोई कार्रवाई नहीं हुई।
जिला बनाने को लेकर सभी सरकारों के मुख्यमंत्री के साथ-साथ अधिकारियों को भी अवगत कराया गया। लेकिन आज तक डीडीहाट को जिला नहीं बनाया गया। जिसके चलते लोग कई सालों से आंदोलन कर रहे हैं और आज केक काट कर विरोध प्रदर्शन किया। संघर्ष समिति के लोगों का कहना है कि डीडीहाट की जनता ने केक काट कर विरोध दर्ज करने का अनूठा काम किया है और सरकार को आईना दिखाया है। डीडीहाट की जनता ने जिले की मांग को लेकर आर-पार की लड़ाई करने का संकल्प लिया है। उत्तराखंड में नए जिलों के गठन की मांग यूं तो नई नहीं है, लेकिन राजनीतिक रूप से समय-समय पर आवाज उठने के चलते यह मुद्दा वक्त के साथ गर्म होता चला जाता है।
सूबे में विधानसभा चुनावों के दौरान नए जिलों के गठन का वादा किया जाता रहा है। न केवल बीजेपी और कांग्रेस की तरफ से नए जिलों के गठन के वादे किए जाते रहे हैं, बल्कि 2022 के विधानसभा चुनाव में तो पहली बार चुनाव लड़ने वाली आम आदमी पार्टी के मुखिया ने भी राज्य में 6 नए जिलों के गठन का सपना दिखाया था। उन्होंने काशीपुर को जिला बनाने के लिए सार्वजनिक घोषणा की थी तो वहीं उनकी इच्छा यमुनोत्री, कोटद्वार, रुड़की, डीडीहाट और रानीखेत को भी जिला बनाने की थी।
गौरतलब रहे कि साल 1962 से ही पिथौरागढ़ से अलग डीडीहाट जिला बनाने की मांग उठती रही है। लगातार उठती मांग को देखते हुए यूपी में मुलायम सरकार ने जिले को लेकर दीक्षित आयोग बनाया था। निशंक सरकार में 15 अगस्त 2011 को डीडीहाट समेत रानीखेत, यमुनोत्री और कोटद्वार को जिला बनाने की घोषणा की थी। चुनावी साल में हुई इस घोषणा का शासनादेश भी जारी कर दिया गया था, लेकिन गजट नोटिफिकेशन नहीं हुआ। उत्तराखंड राज्य इसलिए बना था ताकि सत्ता का विकेंद्रीकरण किया जा सके। शुरू से यही मांग उठती रही है कि राज्य की भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार प्रशासनिक इकाइयां छोटी हों ताकि, प्रशासनिक इकाइयों तक जनता की पहुंच आसान हो सके।
हालांकि, सरकार ने सत्ता में काबिज होने से पहले अपने मेनिफेस्टो में 4 नए जिले बनाने की बात कही थी, लेकिन वह इस बात को भूल गई है। अब राज्य सरकार के पास समय भी नहीं है। उत्तराखंड में अल्मोड़ा से अलग रानीखेत जिले (की मांग 1954 से चली आ रही है। रानीखेत के लोगों को सिर्फ यूपी से लेकर उत्तराखंड तक आश्वासन ही मिला। जिले की मांग अब भी जस की जस है। चुनावों में एक बार फिर उम्मीद है कि लोगों को जिले की सौगात मिल जाए या फिर सिर्फ राजनीति होगी। उत्तराखंड में नए जिले गठन की मांग के पीछे की मुख्य वजह ये है कि प्रदेश के 10 पर्वतीय जिलों में विकास और मूल भूत जरूरतों की अलग-अलग मांग रही है। इसे देखते हुए राज्य गठन के दौरान ही छोटी-छोटी इकाइयां बनाने की मांग की गई। जिससे न सिर्फ प्रशासनिक ढांचा जन-जन तक पहुंच सके, बल्कि प्रदेश के विकास के अवधारणा के सपना को भी साकार किया जा सके।
(लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं और वह दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं।)
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