कोरोना की दूसरी लहर में सामाजिक संगठनों ने संभाला मोर्चा, हंस फाउंडेशन ने पहाड़ों पर पहुंचाई मदद

कोरोना की दूसरी लहर में सामाजिक संगठनों ने संभाला मोर्चा, हंस फाउंडेशन ने पहाड़ों पर पहुंचाई मदद

उत्तराखंड में कोरोना की दूसरी लहर के दौरान मई 2021 को कोरोना मामलों के महाविस्फोट के लिए याद किया जाएगा। मई के महीने ने उत्तराखंड के हेल्थ सिस्टम की सारी परतें उधेड़ कर रख दी। तमाम कोशिशों के बावजूद राज्य सरकार के प्रयास नाकाफी रहे। ऐसे में सामाजिक संगठनों ने मदद का हाथ आगे बढ़ाया और राज्य सरकार को बड़ा संबल मिला। हंस फाउंडेशन हमेशा की तरह सबसे बड़ा योगदान देने वाला परोपकारी संगठन रहा।

कोरोना के प्रकोप ने पूरी मानव जाति को झकझोर कर रख दिया। सरकारी व्यवस्थाएं और संसाधन कम पड़ने लगे। एक इंसान से दूसरे इंसान को संक्रमण का खतरा था तो लोगों ने खुद को घरों में कैद कर लिया। पर उनका क्या, जिन्हें दो जून की रोटी के लाले पड़ गए। जिन्हें इलाज की जरूरत थी लेकिन अस्पतालों मरीजों से पटे पड़े थे, जिनकी सांसे उखड़ रही थीं और ऑक्सीजन सिलेंडर नहीं थे। ऐसे में मदद के लिए ‘देवदूत’ बनकर सामाजिक संगठन आगे आए।

उत्तराखंड के सुदूर गांवों में लोगों को दवाएं, मास्क, सैनिटाइजर, खाने-पीने के सामान और दूसरी अहम चीजें पहुंचाई गईं। कोरोना पीक पर था लेकिन अपनी जान की परवाह किए बगैर सामाजिक संगठनों के योद्धा गरीब, बेसहारा और असहाय लोगों की मदद को दौड़ पड़े। सामाजिक संगठनों के साथ-साथ कुछ लोगों के व्यक्तिगत कार्यों ने भी लोगों को काफी राहत दी। कोई ऑक्सीजन सिलेंडर कंधे पर लेकर मरीजों को बचाने निकल पड़ा, किसी ने कई किलोमीटर पहाड़ी पगड़ंडियों पर चलकर जरूरतमंदों को राशन पहुंचाया, किसी ने ग्रामीण इलाकों में लोगों को कोरोना संक्रमण के खतरे को लेकर जागरुक किया तो किसी ने पहाड़ों पर सरकार से पहले दवा पहुंचाने का अभियान चलाया।

कई संगठनों ने ऐसे मृतकों का अंतिम संस्कार किया जिनके अपनों ने दूरी बना ली थी। कई लोग ऐसे भी थे, जिन्होंने लोगों की सांसों को उखड़ने नहीं दिया और तमाम संसाधन झोंककर ऑक्सीजन सिलेंडर, कंसनट्रेटर, वेंटिलेटर, ऑक्सीजन प्लांट की व्यवस्था कराई। कोरोना संक्रमण के इस दौर में सरकार को इन सामाजिक संगठनों के प्रयासों से बड़ी राहत मिली और आज स्थिति काबू में नजर आती दिख रही है। साथ ही सरकार तीसरी लहर के खतरे को कम करने के लिए प्रयास करने में जुट गई है।

हंस फाउंडेशन बना सबसे बड़ा मददगार

उत्तराखंड का शायद ही कोई ऐसा हिस्सा होगा जहां हंस फाउंडेशन के परोपकार की छाया न पहुंची हो। माताश्री मंगला और भोले जी महाराज की प्रेरणा से हंस फाउंडेशन ने कोरोना काल में उत्तराखंड में सबसे बड़ा राहत अभियान शुरू किया। देश के सबसे बड़े दानदाता संगठनों में से एक हंस फाउंडेशन ने कोरोना की पहली और दूसरी लहर में उत्तराखंड के लोगों की काफी मदद की। वंचित समुदाय के सशक्तीकरण के मूल मंत्र और ‘सेवा भी, सम्मान भी’ के ध्येय के साथ हंस फाउंडेशन के सदस्यों ने उत्तराखंड के कोने-कोने में कोरोना राहत अभियान चलाया।

 

घर-घर जाकर जरूरतमंदों को कोविड किट उपलब्ध कराई। हंस फाउंडेशन के संस्थापक माताश्री मंगला और भोले जी महाराज के निर्देशन में उत्तराखंड के गांवों में कोरोना से बचाव का सबसे बड़ा अभियान चल रहा है। कोरोना संक्रमण के दौर में हंस फाउंडेशन ने सबसे बड़ा सहयोग स्वास्थ्य सेवाओं के लिए दिया। सतपुली में चल रहे अस्पताल के साथ-साथ हंस फाउंडेशन की ओर से उत्तराखंड के विभिन्न अस्पतालों को 42 वेंटिलेटर, 40 मल्टी पैरामीटर उपकरण, 30 बाइपेप, 500 ऑक्सीजन कंसनट्रेटर, 200 बड़े ऑक्सीजन सिलेंडर, 3000 स्टीमर, 250 बीपी मशीन, 700 ऑक्सीजन मास्क कैन्यूला, 350 नेबुलाइजर, 9000 पीपीई किट और 31,200 कोविड मेडिसिन किट उपलब्ध कराई गई हैं। यही नहीं आने कुछ दिनों में हंस फाउंडेशन की ओर से राज्य को 15 एंबुलैंस भी दी जी रही हैं।

इसके अलावा हंस फाउंडेशन ने आशा वर्कर के लिए 8000 सर्जिकल गाउन, 12500 ऑक्सीमीटर, 7500 डिजिटल थर्मामीटर, 1300 इंफ्रारेड थर्मामीटर, 2,25,000 मास्क, 2000 ग्लब्स, 1,70,000 सैनिटाइजर भी उपलब्ध कराए हैं। सुदूर इलाकों में लोगों को खाने की कोई किल्लत न हो इसका ध्यान रखते हुए अभी तक उत्तराखंड के विभिन्न हिस्सों में 4000 से ज्यादा राशन किट भी बांटी गई हैं। इसके अलावा फाउंडेशन की ओर से आशा कार्यकर्त्रियों, स्वास्थ्य कर्मियों और ग्राम प्रधानों को कोरोना किट और दवाएं पहुंचाई जा रही हैं। यह 1 जून तक का आंकड़ा है।

आने वाले दिनों में हंस फाउंडेशन की ओर से उत्तराखंड के हेल्थ सेक्टर में बड़े पैमाने पर योगदान देने की तैयारी है। कोरोना की पहली लहर के दौरान जरूरतमंदों को राशन वितरित करने के लिए हंस फाउंडेशन ने ऑपरेशन नमस्ते चलाया था। इसके अलावा देश के कोने-कोने में फंसे लोगों की मदद के लिए पैसे और खान-पीने के सामान पहुंचाए गए थे।

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