जीवन में सफलता के लिए ईमानदारी, मेहनत और कर्मठता अनिवार्य : महावीर प्रसाद भट्ट

जीवन में सफलता के लिए ईमानदारी, मेहनत और कर्मठता अनिवार्य : महावीर प्रसाद भट्ट

महावीर प्रसाद भट्ट कहते हैं कि जीवन में जवाबदेही का होना महत्वपूर्ण है। जवाबदेही इंसान को परिवार, गांव, प्रदेश एवं संपूर्ण समाज को जोड़े रखती है। जब हम अपने कार्यों को पूरी लग्न, मेहनत व ईमानदारी से करते हैं, तभी हम अपनी गलतियों के बोझ को कम कर सकते हैं और आगे बढ़ सकते है।

मैं बचपन से कृषक बनना चाहता था क्योंकि पहाड़ में मैंने खेती को करीब से देखा था। मां भी कहती थी कि एक किसान को नमक एवं कपड़ा के अतिरिक्त सभी चीजें खेती से प्राप्त हो जाती हैं। महावीर प्रसाद भट्ट कहते हैं – मैंने अपनी नौकरी हिमाचल प्रदेश से शुरू की। दो साल तक मेरी ट्रेनिंग चली और अपनी ईमानदारी और परिश्रम की बदौलत मैं 1977 में पार्ले एक्सपोर्ट चंडीगढ़ में लग गया। फिर मुझे बेवरेज पेय पदार्थ पर कुछ शोधकार्य करने के लिए चुन लिया गया। चयनकर्ताओं का भी कहना था कि तुम कर सकते हो क्योंकि तुम गढ़वाली हो और पहाड़ी लोग परिश्रम से पीछे नहीं हटते हैं। एक साल तक बिना छुट्टी लिए मैंने काम किया और अपने कार्य में सफल हुआ। ‘हिल-मेल’ ने महावीर प्रसाद भट्ट से कई मुद्दों को लेकर बातचीत की और उनकी सफलता के मंत्र जानें, साथ ही उनकी बचपन से लेकर अभी तक की यात्रा, संघर्ष और सफलता के बारे में संवाद किया। बातचीत के प्रमुख अंश इस प्रकार से हैं :—

महावीर प्रसाद भट्ट और उनकी पत्नी पुष्पा भट्ट बिजनेसमैन हैं और कृषि के क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं। उनकी कई कंपनियां हैं। जिनमें टेक्नो लैब-आर एंड डी यूनिट, टेक्नोलैब इंडियाडॉटकॉम, सुयष न्यूट्रास्ट्रटिकल फूडस प्राइवेट लिमिटेड, एसएनएफपीएलडॉटकॉम, एम. सी. बी (मां चन्द्ववदनी) फार्म एण्ड फूडस, एम. सी. बी. एग्रोफूडस प्रा. लि. और मैकबैग्रोडॉटकॉम (mcbagro.com) प्रमुख हैं। महावीर प्रसाद भट्ट टिहरी गढ़वाल के मद्रासू (पुजार गांव) के रहने वाले हैं। उनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव में प्राइमरी व जूनियर हाईस्कूल से हुई है। स्नातक की पढ़ाई उन्होंने श्रीनगर गढ़वाल विश्वविद्यालय से की, और फिर ट्रेनिंग एवं फूड टेक्नोलोजी में महारत हिमाचल एवं पंजाब से ली। उनकी पत्नी पुष्पा भट्ट हैं, गार्गी, गरिमा व सुपुत्र सुयष भट्ट हैं।

महावीर प्रसाद भट्ट कहते हैं कि उन्होंने और उनकी पत्नी पुष्पा भट्ट ने अपने बच्चों को बचपन से ही जीवन मूल्य सिखाया ताकि वो जमीन से जुड़े रहें। बचपन से ही बच्चों को हमने ईमानदारी, लग्न, मेहनत, न्याय एवं आत्म अनुशासन का पाठ पढ़ाया। इस समय उनकी बड़ी बेटी मस्कट में इंजीनियर और रिनाउन्ड फेमली काउन्सलर है। दूसरी बेटी सफल सर्जन है। बेटे ने लंदन में शिक्षा एवं फूड से सम्बधित स्टार्टअप प्रांरभ किया है। वह कहते हैं कि बचपन में उन्होंने भी पहाड़ों का संघर्ष देखा और उसे जीया है। अपने पहाड़ से संघर्ष के दौरान के मित्र दीवान सिंह से जब मस्कट में 53 साल बाद उनकी मुलाकात हुई तो वो उनके लिए बेहद भावुक क्षण था। यह साल 2023 की बात है। मस्कट में उत्तराखंड जनसमुदाय के भव्य कार्यक्रम हो रहा था। जहां उनके बचपन के दोस्त दीवान सिंह से उनकी भेंट हुई। वह कहते हैं कि दीवान सिंह ने जब मेरा सरनेम सुना तो उन्हें थोड़ा आश्चर्य हुआ और वो बोले कि उनका भी एक मित्र महावीर है, जिसने मुझे बचपन में अक्षर लिखना सिखाया था। उसके ऐसा पूछते ही मैंने कहा कि क्या आप दीवान सिंह हैं, तो उसका चेहरा चमक उठा और इस तरह कई सालों के बाद बचपन के दो दोस्त मिले और हमने बचपन की स्मृतियों और संघर्षों को ताजा किया।

महावीर प्रसाद भट्ट कहते हैं कि उनका और दीवान सिंह का बचपन से ही अगाध प्रेम रहा और दोनों ने 6 से लेकर 8वीं कक्षा तक साथ पढ़ा। वह अभावों का समय था और उस दौरान हम मंडवे की रोटी और धनिये के नमक के साथ खाना खाते थे। घर से 7 किलोमीटर दूर स्कूल था जहां पढ़ने के लिए जाते थे। महावीर कहते हैं कि पहाड़ी की खासियत ही है कि जो वह ठान लेता है उसे करके रहता है। समय का पहिया बदला और अब दीवान सिंह के दो बेटे भारत सरकार में क्लास वन ऑफिसर हैं और मेरे परिवार में पत्नी शिक्षाविद हैं एवं कृषि के क्षेत्र में उद्यान रत्न अवॉर्ड विजेता हैं। मेरे जीवन में मां और पिता द्वारा दी गई सीख हमेशा काम आई। मैं बचपन से ही सच्चे मन से कृषक बनना चाहता था क्योंकि पहाड़ में मैंने खेती को करीब से देखा था। मां भी कहती थी कि एक किसान को नमक एवं कपड़ा के अतिरिक्त सभी चीजें खेती से प्राप्त हो जाती हैं। वह कहते हैं- मैंने अपनी नौकरी हिमाचल प्रदेश से शुरू की। दो साल तक मेरी ट्रेनिंग चली और अपनी ईमानदारी और परिश्रम की बदौलत मैं 1977 में पार्ले एक्सपोर्ट चंडीगढ़ में लग गया। फिर मुझे बेवरेज पेय पदार्थ पर कुछ शोधकार्य करने के लिए चुन लिया गया। एक साल तक कोई भी अवकाश नहीं था। चयनकर्ता का भी कहना था कि तुम कर सकते हो क्योंकि तुम गढ़वाली हो और पहाड़ी लोग परिश्रम से पीछे नहीं हटते हैं। एक साल तक बिना छुट्टी लिए मैंने काम किया और अपने कार्य में सफल हुआ।

1980 में मेरी शादी हुई। पत्नी पंजाब यूनिवर्सिटी की टापर और नेशनल स्कॉलरशिप होल्डर थीं। उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में काम करना चुना। वह डी. ए. वी. में सबसे कम आयु की प्रधानाचार्य रहीं। पार्ले एक्सपोर्ट के बाद कई जगहों पर कार्य करने के बाद आखिर में मुझे भी लखनऊ में वृंदावन ग्रुप इंडस्ट्रीज में बतौर जीएम की पोस्ट मिल गई। जहां मैंने लगन और मेहनत के साथ कंपनी के लिए कार्य किया और बड़ी चुनौती को संभाला। बड़ी चुनौती अपनी वर्तमान कंपनी को कोका कोला में शामिल कराने की रही। प्रथम कोका प्लांट बनाने में सफलता हाथ आई और मैं सीईओ बना। मेहनत, लग्न और ईमानदारी से काम करते हुए पैसा और सम्मान सब कुछ मिला। हमने सुयष न्यूट्रास्ट्रटिकल की स्थापना 2004 में की। आज इस कंपनी में 28 लोग परमानेंट कार्यरत हैं और कई लोग कॉन्ट्रैक्ट पर हैं। यूपी में केले का पहला संयत्र लगाना भी चुनौतीपूर्ण रहा। मेरी इस सफलता में जैन इरिगेश के संस्थापक स्व. भवरलाल जैन साहब और पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूडी जी के ओएसडी जे. पी. ममगांई का भी सहयोग रहा। जीवन में कभी भी कुछ ऐसी परिस्थितियां आती हैं, जहां मैं फंसता हूं तो अपनी पत्नी से सलाह जरूर लेता हूं।

महावीर प्रसाद भट्ट कहते हैं कि जीवन में जवाबदेही का होना महत्वपूर्ण है। जवाबदेही इंसान को परिवार, गांव, प्रदेश एवं संपूर्ण समाज को जोड़े रखती है। जब हम अपने कार्यों को पूरी लग्न, मेहनत व ईमानदारी से करते हैं, तभी हम अपनी गलतियों के बोझ को कम कर सकते हैं और आगे बढ़ सकते है। मुझे एक लाइन याद आ रही है कि सशक्त परिवार सशक्त लोगों से बनते हैं। वह कहते हैं कि उत्तराखंड में उन्नत खेती की तकनीक विकसित करने और इसे बढ़ावा देने के लिए सरकार ने कई कार्यक्रम चला रखे हैं। पर इसका फायदा कम ही लोगों को मिल रहा है। जबकि और ज्यादा लोग इसका फायदा उठा सकते हैं। उत्तराखंड में कृषि की अनेक संभावनाएं हैं। सरकार भी अनेक प्रयास कर रही है कि यहां रहने वाले किसानों को इसका फायदा मिल सके और उनकी आमदनी बढ़ सके। टिहरी के सीडीओ डॉ अभिषेक त्रिपाठी ने हाल ही में तहसील देवप्रयाग के भद्रासु और झन्नू गांवों का दौरा किया। जहां उन्होंने एक क्षेत्रीय विकास बैठक की अध्यक्षता की जिसमें स्थानीय उन्नति और स्थायी कृषि प्रथाओं पर ध्यान केंद्रित किया गया। जिसमें हम भी थे। डॉ त्रिपाठी ने मेरी और मेरी पत्नी के निर्णय की प्रशंसा भी की। उन्होंने हमारी तारीफ इसलिए की हम अपनी कुछ वाणिज्यिक गतिविधियों को अपने पूर्वजों की भूमि पर वापस ला रहे हैं। इस गोष्ठी में बांस की खेती की तकनीक पर भी विचार-विमर्श हुआ।

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1 Comment

  • Manrise Healthcare Mukesh dandriyal
    July 19, 2024, 1:40 pm

    Want to talk Mr mahavir Prasad Bhatt 🙏💐

    REPLY

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