एम्स में हेली सेवा, इमरजेंसी में वरदान! आम आदमी को फायदा पहुंचाने के लिए ये फैसला ले सकते हैं त्रिवेंद्र

एम्स में हेली सेवा, इमरजेंसी में वरदान! आम आदमी को फायदा पहुंचाने के लिए ये फैसला ले सकते हैं त्रिवेंद्र

ऋषिकेश में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान यानी एम्स में किसी हादसे में गंभीर रूप से घायल व्यक्ति अथवा इमरजेंसी में किसी मरीज को समय पर अस्पताल पहुंचाने के लिए हेलीकॉप्टर सेवा शुरू हो गई है। एम्स ऋषिकेश देश का पहला ऐसा अस्पताल है, जिसके परिसर में हेलीकॉप्टर से मरीज को पहुंचाने की व्यवस्था है। उत्तराखंड जैसे आपदा संभावित क्षेत्र में इस तरह की पहल किसी वरदान से कम नहीं है

उत्तराखंड में भौगोलिक चुनौतियों के चलते कई बार जरूरतमंद को इलाज के लिए तुरंत अस्पताल पहुंचाने में ज्यादा समय लग जाता है। समय पर इलाज न मिल पाने के कारण घायल व्यक्ति की जान भी चली जाती है। लेकिन अब उत्तराखंड में किसी आपदा या दुर्घटना में घायल हुए लोगों को समय पर इलाज मुहैया कराने के लिए एक बड़ी पहल हुई है। दरअसल, ट्रामा के केस में हादसे का पहला घंटा गोल्डन ऑवर होता है, इस समयावधि में अस्पताल पहुंचने पर गंभीर रूप से जख्मी किसी व्यक्ति के बचने की संभावना बढ़ जाती है। यानी दुर्घटना या आपदा के पीड़ित का फौरन बचाव करना ट्रामा मृत्यु दर को घटा सकता है। ऐसे में उत्तराखंड के सुदूर पहाड़ी इलाकों में किसी इमरजेंसी के समय हेलीकॉप्टर सेवाओं की भूमिका को समझा जा सकता है।

अब सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि इस योजना का लाभ आम लोगों को कैसे मिलेगा, क्योंकि एयरलिफ्ट कराने के लिए काफी पैसे की जरूरत होगी। इस संबंध में हिल-मेल ने एम्स ऋषिकेश के हेली सर्विस इंचार्ज डा. मधुर उनियाल से बात की। उन्होंने बताया कि हेली सर्विस से दो तरह से पीड़ित को लाभ पहुंचाया जा सकता है। एक उसे अस्पताल लाकर और दूसरा स्पेशलिस्ट डॉक्टर को उसके पास पहुंचाकर। दोनों ही मामलों में हेलीकॉप्टर सेवा महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। जहां तक उत्तराखंड की भौगोलिक स्थिति है तो भले ही यहां सड़क मार्ग से यात्रा करने में समय लगता हो लेकिन एक हिस्से से दूसरे हिस्से तक पहुंचने में हवाई मार्ग से महज एक घंटे का समय लगता है। यानी आप किसी आपात स्थिति में ‘गोल्डन ऑवर’ में गंभीर रूप से घायल व्यक्ति को अस्पताल पहुंचा सकते हैं। जहां तक कितना पैसा खर्च होता होगा, तो डा. उनियाल ने बताया कि एक घंटे की इमरजेंसी मेडिकल हेली सर्विस पर 70-80 हजार रुपये का खर्च आता है।

पर्वतीय राज्य होने के कारण उत्तराखंड की भौगोलिक परिस्थितियां अलग है। राज्य में आपदाएं अधिक होती हैं। पहाड़ी क्षेत्र होने से दुर्घटनाएं भी अधिक होती है। हेलीकॉप्टर सेवा शुरू होने से किसी आपात स्थिति में गंभीर रूप से घायल लोगों को हेली सेवा से उपचार के लिए जल्द एम्स लाने में सुविधा होगी। पिछले 03 साल में प्रदेश में 100 से अधिक लोगों की जान हेलीकॉप्टर के जरिये तुरंत अस्पतालों पहुंचाकर बचाई गई। इसके लिए सरकारी हेलीकॉप्टर और किराए पर हेलीकॉप्टर की व्यवस्था की गई। – त्रिवेंद्र सिंह रावत, मुख्यमंत्री उत्तराखंड

 

हिल-मेल टीवी के लाइव शो ‘बात उत्तराखंड की’ में भी विशेषज्ञों ने इस सेवा के महत्व को विस्तार से समझाया। उत्तराखंड के पूर्व मुख्य सचिव राकेश शर्मा कहते हैं, उत्तराखंड का जो भौगोलिक परिवेश है, उसमें हेली सेवा एक जरूरत है। जब हम पहाड़ों में रहते हैं तो हमें इसकी सख्त जरूरत पड़ती है। । पर्यटन के लिहाज से एक स्थान से दूसरे स्थान जाना हो या फिर आपदा के समय बचाव अभियान के लिए हेली सेवाओं की उपयोगिता बढ़ जाती है। पिथौरागढ़, चमोली, उत्तरकाशी जैसे जिलों में बॉर्डर पर रहने वाले लोगों को अगर अपने घर जाना-आना है तो उनके लिए एक अहम सुविधा हेली सेवाओं से मिलती है। 2007 में हमने एक चारधाम में केदारनाथ के लिए हेली सेवा शुरू की थी। 2013 में केदारनाथ आपदा के समय हेली सेवाओं की सही उपयोग समझ में आया। उसके बाद व्यापक प्लान बना। 2013-2020 के बीच उत्तराखंड में हेली सेवाओं का बढ़िया नेटवर्क तैयार हो गया है। हालांकि यह आगे और बढ़ेगा।

हमारे पास 45 हेलीपैड हैं, जिनकी नींव 2013 की आपदा के बाद रखी गई थी। उत्तराखंड सरकार से अनुरोध है कि इन हेलीपैड को पूरी तरह से ऑपरेशनल करने के लिए कदम उठाए जाएं। आज के समय हेलीपैड को अच्छी तरह से सुरक्षित करने की जरूरत है, वेदर स्टेशन, एक शेल्टर होम, आपदा के लिए प्रशिक्षित जवानों की तैनाती हो। उड़ान के अंतर्गत सेवाएं हम अकेले ज्यादा समय तक जारी नहीं रख सकते। इसके लिए जरूरी है कि हम लाभ वाले रूट से पैसे निकालें और छूट वाले रास्ते पर उनका प्रयोग करें। – राकेश शर्मा, पूर्व मुख्य सचिव, उत्तराखंड

 

राकेश शर्मा के मुताबिक, हेली सेवाओं का ग्रोथ सिस्टम अगर आप उत्तराखंड का देखें तो 2007 में हमने इसकी शुरुआत की थी और उस साल हमने मात्र 40 लाख का बिजनेस किया था और 2013 से पहले 100 करोड़ का बिजनेस कर रहे थे। सारी ग्रोथ प्राइवेट सेक्टर के जरिये हुई है न कि सरकार के जरिये। सरकार ने एक फैसिलिटेटर का रोल अदा किया है। सरकार ने हेली पैड बनाए, सुविधाएं प्रदान कीं, प्राइवेट ऑपरेटर के जरिये ग्रोथ को मूर्त रूप दिया। आज की तारीख में सबसे पहली जरूरत यह है कि हमारे पास 45 हेलीपैड हैं, जिनकी नींव 2013 की आपदा के बाद रखी गई थी। मेरा उत्तराखंड सरकार से अनुरोध होगा कि इन 45 हेलीपैड को पूरी तरह से ऑपरेशनल करने के लिए हमें कदम उठाने चाहिए। अभी हम चारधाम के हेलीपैड का रखरखाव कर पा रहे हैं। केदारनाथ में हमने 11000 फीट की ऊंचाई पर एक एकड़ में हेलीपैड बनाया। 2013 में एमआई-26 हेलीकॉप्टर वहां उतरा था। आज के समय अब हेलीपैड को अच्छी तरह से सुरक्षित करने की जरूरत है, वेदर स्टेशन, एक शेल्टर होम, आपदा के लिए प्रशिक्षित जवानों की तैनाती हो। उड़ान के अंतर्गत सेवाएं हम अकेले ज्यादा समय तक जारी नहीं रख सकते। इसके लिए जरूरी है कि हम लाभ वाले रूट से पैसे निकालें और छूट वाले रास्ते पर उनका प्रयोग करें।

मुख्यमंत्री के नागरिक उड्डयन सलाहकार कैप्टन दीप श्रीवास्तव ने कहा कि अगर कोई मुंबई या बेंगलुरु से आ रहा है तो वह हेलीकॉप्टर से नहीं, प्लेन से आएगा तो हमने सबसे पहले कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिए फ्लाइंग की नेटवर्किंग बढ़ाई। हमको फायदा यह मिला कि देश के जितने भी सीनियर अफसर मिनिस्ट्री ऑफ सिविल एविएशन में हैं, जहां-जहां हमें मदद की जरूरत हो रही है, वो दे रहे हैं क्योंकि वह भी उत्तराखंड के हैं। मुंबई से अगर किसी को हरिद्वार जाना है तो वह दो दिन रुककर बनारस, वहां से कोलकाता और फिर मुंबई लौट सकता है। यह नेटवर्किंग प्लानिंग अच्छी हो गई है। 45 हेलीपैड पर काम हो रहा है, जिसमें से 30 पर काम शुरू हो गया है। 18 ऑपरेटर्स हैं। एक महत्वपूर्ण बात हेली सेवाओं की यह है कि इससे हादसे में गंभीर रूप से घायलों के बचने की उम्मीद बढ़ जाएगी क्योंकि वे जल्दी से अस्पताल पहुंच सकेंगे। कोरोना काल में पर्यटन का ग्राफ गिरा है। हेलीकॉप्टर का इस्तेमाल प्लेन की तरह सामाजिक दूरी के नियम का पालन करते हुए नहीं कर सकते इसलिए इसे सीमित रखा जा रहा है।

…यहां समझिये आम आदमी को कैसे मिलेगा हेली सेवा का लाभ

 


मेडिकल एक्सपर्ट कहते हैं कि अगर राज्य सरकार इमरजेंसी की स्थिति में किसी गंभीर रूप से घायल अथवा बीमार शख्स को एयरलिफ्ट करने के अनुमानित खर्च (80 हजार) को आयुष्मान योजना में शामिल कर देती है तो उसे इसके लिए कोई भुगतान नहीं करना होगा। इसे उसे खर्च की चिंता किए बगैर एयरलिफ्ट किया जा सकेगा और समय पर इलाज मिलने से उसकी जान बच सकेगी। हालांकि यह तभी हो सकता है जब राज्य सरकार ऐसी व्यवस्था कर दे। हिल-मेल को मिली जानकारी के मुताबिक, इस संबंध में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को सुझाव दिया गया था, जिस पर उन्होंने अपनी सहमति दे दी है। माना जा रहा है कि जल्द ही इसकी व्यवस्था की जा सकता है।

 

एम्स ऋषिकेश में शुरू हुई हेली सेवाओं के इंचार्ज डॉ. मधुर उनियाल ने बताया कि हेली सर्विस उत्तराखंड के लोगों का अधिकार है। उत्तराखंड के लोग स्वभाव से ही संतोषी होते हैं। हमने अपने क्षेत्र की दुर्गमताओं से भी संतोष कर लिया है। उदाहरण के लिए चमोली जिले में कोई गिरता है तो उसके परिवार वाले यह सोचकर लाते हैं कि शायद ही बचेगा पर देहरादून पहुंचा दें। दून में या तो प्राण जाने वाले होते हैं या नर्सिंग होम वाले कहते हैं कि दिल्ली ले जाओ और कुछ देर बाद उसकी मौत हो जाती है। ट्रांसपोर्टेशन टू हॉस्पिटल तो लोगों का अधिकार है। उत्तराखंड के पहाड़ों में रहने वाले लोग वैसे तो फिजिकली फिट होते हैं लेकिन ट्रामा और गर्भवर्ती माताओं के मामलों में हेली सेवा वरदान बनकर आई है।

एम्स ऋषिकेश परिसर में हेलीकॉप्टर सेवा की शुरुआत के अवसर पर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत, विधानसभा अध्यक्ष प्रेम चंद्र अग्रवाल, ऋषिकेश की मेयर श्रीमती अनीता ममगाईं और एम्स हेली सेवा के इंचार्ज डॉ. मधुर उनियाल।

किसी भी बड़ी दुर्घटना या इमरजेंसी के मामले में प्री हॉस्पिटल केयर, इन-हॉस्पिटल केयर और तीसरा अहम हिस्सा रिहैबिलिटेशन होता है। अगर डॉक्टर के पास मरीज जीवित ही नहीं पहुंचेगा तो वह उसका इलाज कहां से कर पाएगा या डॉक्टर के पास मरीज उस स्थिति में पहुंचेगा कि उसे फिर से ठीक न किया जा सकेगा तो डॉक्टर उसकी मदद नहीं कर पाएगा। इसके लिए पहले पार्ट का उतना बेहतर होना जरूरी है जितना कि दूसरी हिस्सा। उदाहरण के तौर पर अगर ट्रामा का मरीज 6 घंटे के अंदर अस्पताल में आता है तो कुछ करने की संभावना रहती है। ऐसे ही स्ट्रोक का मरीज टाइम पर नहीं पहुंचा तो डॉक्टर ज्यादा कुछ नहीं कर पाते हैं। हेली सेवाओं के साथ जो लोग यात्रा कर रहे हैं उन्हें पेशेंट को शिफ्ट करना, उस स्थिति को संभालना आना चाहिए। हमारे यहां प्री-हॉस्पिटल केयर के कई कोर्स यहां चल रहे हैं। एम्स इसे फ्री में कराता है।

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